नारियल और पत्थर
प्रेरक कथा। पेड़ की ऊंची डाली पर लटके नारियल ने नीचे नदी में पड़े पत्थर को देखकर घृणापूर्वक कहा कि घिस-घिसकर मर जाओगे, लेकिन नदी के पैर न छोड़ोगे, अपमान की भी कोई हद होती है। मुझे देखो, स्वाभिमानपूर्वक कैसे उन्नत स्थिति में मौज कर रहा हूं। पत्थर ने चुपचाप नारियल की बात सुन ली, कोई उत्तर न दिया। कुछ समय बाद पूजा की थाली में रखे उसी नारियल ने देखा कि नदी का वही पत्थर शालिग्राम के रूप में पूजा-पीठ पर प्रतिष्ठित है, जिसकी पूजा के लिये उसे नैवेद्य के रूप में लाया गया है। नारियल ने महसूस किया कि घिस-घिसकर परिमार्जित होने का परिणाम क्या होता है और अभिमान के मद में मतवाले रहने वालों की गति क्या हुआ करती है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें