20 मार्च को है गौरैया दिवस, घरों के वास्तुदोष दूर करती है गौरैया
विचार। गोरैया पक्षी दिखने में सुंदर, छोटी सी और बेहद आकर्षक होती है, चूंकि गौरैया मानव सभ्यता के साथ जीना, रहना पसंद करती हैं इसलिए यह पारिस्थितिक तंत्र के लिए अति आवश्यक है। हमें इसकी सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाने चाहिए, जिससे पर्यावरण संतुलित बन सके। गोरैया के विलुप्त होने से बचाने और इसके प्रति जागरूकता के लिए विश्व में 20 मार्च को गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक समय था जब बबूल के पेड़ पर सैकड़ों घोंसले लटके होते और गौरैया के साथ उसके चूजे चीं-चीं-चीं का शोर मचाते। माना जाता है गौरैया का जीवनकाल तीन वर्ष तक होता है। पर्यावरण संरक्षण में गौरैया की खासी भूमिका है। गौरैया एक घरेलू और पालतू पक्षी है। पूर्वी एशिया में यह बहुतायत पायी जाती है। यह अधिक वजनी नहीं होती हैं, यह पांच से छह अंडे देती है। गौरैया पासेराडेई परिवार की सदस्य है। इसे वीवरपिंच परिवार का भी सदस्य माना जाता है। इसकी लम्बाई 14 से 16 सेमी. होती है। इसका वजन 25 से 35 ग्राम तक होता है। यह अधिकांश झुंड में रहती है। यह अधिक दो मील की दूरी तय करती है। शहरी हिस्सों में इसकी छह प्रजातियां पायी जाती हैं। इनमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश, सिंउ स्पैरो, रसेट, डेड और टी स्पैरो शामिल हैं। यह यूरोप, एशिया के साथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में पाई जाती है। पहले गांवों में कच्चे मकान बनाए जाते थे, उसमें लकड़ी और दूसरी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता था। कच्चे मकान गौरैया के लिए प्राकृतिक वातावरण और तापमान के लिहाज से अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराते थे। आधुनिक मकानों में यह सुविधा अब उपलब्ध नहीं होती है। यह पक्षी अधिक तापमान में नहीं रह सकता है। गगनचुंबी ऊंची इमारतें और संचार क्रांति इनके लिए अभिशाप बन गई। शहर से लेकर गांवों तक मोबाइल टावर एवं उससे निकलते रेडिएशन से इनकी जिंदगी संकट में है। खेती-किसानी में रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता प्रयोग बेजुबान पक्षियों और गौरैया के लिए सबसे बड़ा खतरा है। कीड़े, मकोड़े भी विलुप्त हो हो रहे हैं, जिससे गौरैया के लिए भोजन का भी संकट खड़ा हो गया है। इसके अलावा पंतगबाजी से भी काफी संख्या में पक्षियों की मौत हो रही है। वहीं, गौरैया के संरक्षण के लिए सरकारों की तरफ से कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखती है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में 20 मार्च को गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में रखा गया है। पक्षियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले फैसलों में शहरों में हरित नीतियों का अभाव है। उदाहरण के लिए, कृत्रिम घास के बजाय प्राकृतिक घास रखना, पार्कों पर पत्थर के फर्श लगाने से बचना और घर की टाइलों को अपनाना ताकि वे घोंसला बना सकें। गौरैया को लेकर कुछ मान्यताएं भी हैं। गौरैया का घोंसला घर के पूर्वी भाग में बनता है तो मान-सम्मान में वृद्धि होती है, आग्नेय कोण पर घोंसला बनाने से पुत्र का विवाह शीघ्र होता है। दक्षिण दिशा में गौरैया घोंसला बनाए तो धन की प्राप्ति होती है, दक्षिण-पश्चिम कोण का घोंसला बनाएं तो परिवार वालों को दीर्घ आयु देता है। घरों में प्राय: गौरैया और कबूतर ही अपना घोंसला बनाते हैं। कबूतर माँ लक्ष्मी के भक्त माने जाते हैं, उनके निवास से घर में सुख शान्ति आती है। कबूतरों के निवास को उजाड़ना अशुभ माना जाता है, इसलिए उनके निवास को कभी उजाड़ना नहीं चाहिए। वहीं गौरैया का घोंसला बनाना तो अत्यंत शुभ माना जाता है। गौरैया से कई तरह के वास्तुदोष दूर होते हैं। गौरैया का घोंसला घर के पूर्वी भाग में बनता है तो मान-सम्मान में वृद्धि होती है, आग्नेय कोण पर घोंसला बनाने से पुत्र का विवाह शीघ्र होता है, दक्षिण दिशा में ये घोंसला बनाए जाए तो धन की प्राप्ति होती है। दक्षिण-पश्चिम कोण का घोंसला बनाएं तो परिवार वालों को दीर्घ आयु देता है। पश्चिमी भाग में घोंसला बनाएं तो लक्ष्मी की कृपा बरसती है। उत्तर-पश्चिमी कोण पर गौरैया का घोंसला बनता है तो सुख देने वाला होता है। इसी तरह उत्तर दिशा और ईशान कोण का घोंसला बनने से सुख-सुविधाएं मिलती है, यानि यह कह सकते हैं कि गौरैया हमारी प्राकृतिक सहचरी है।
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