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वृष राशि वालों के लिए बेहतर है दिसम्बर 2020

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ज्योतिष : शास्त्र में 12 राशियां हैं, जिसमें वृष राशि दूसरे स्थान पर है। वैसे तो वृष राशि वालों के लिए दिसम्बर 2020 उत्तम महीना है लेकिन कुछ परेशानियां भी आ सकती हैं। 10 दिसंबर के बाद से दांपत्य जीवन में टकराव की आशंका बनेगी। जीवनसाथी के साथ मतभेद बढ़ेंगे। इस कारण मानसिक तनाव भी उत्पन्न होगा। कार्य और धन संबंधी बातों पर विचार करें तो 10 दिसंबर तक जो भी बड़ी योजनाएं हैं उन्हें पूरा करने का प्रयास करें। इसके बाद काम की गति मंद हो जाएगी और बनते हुए कार्यो में बाधाएं आने लगेंगी। कारोबार और नौकरीपेशा लोगों को दिक्कत आ सकती है। इस माह अपनी सेहत को लेकर थोड़े सजग रहें। गले, श्वांस और फेफड़े संबंधी रोग परेशान कर सकते हैं। वृष राशि के अधिकतर लोग दृढ़ इच्छाशक्ति वाले होते हैं। इनका स्वभाव मित्रतापूर्ण होता है, सोच रचनात्मक होता है।   वृष राशि वाले दयालु, तथ्यों के आधार पर बात करने वाले, भौतिकवादी, ख्याल रखने वाले, सख्त और धैर्य रखने वाले होते हैं। वे अपने कार्यों को लेकर प्रेक्टिकल होते हैं, जमीन से जुड़े होते हैं, कलात्मक व रचनात्मक सोच, अच्छे इंसान, दूसरों के प्रति वफादार और स्थाई सोच रखने...

शिष्य ने गुरु के लिये लाया जल

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प्रेरक कथा : एक बार की बात है कि गुरु आश्रम से एक शिष्य कहीं दूर जा रहा था कि उसे प्यास लगी। शिष्य ने कुएं से पानी निकाला और अपनी प्यास बुझाई, उसे अति तृप्ति मिली। शिष्य को कुएं का जल मीठा और शीतल लगा। शिष्य के मन में एक बात सूझी और उसने अपनी मशक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा। वह आश्रम पहुंचा और गुरुजी को सारी बात बताई। गुरुजी ने शिष्य से मशक लेकर जल पिया और शिष्य से कहा. वाकई जल तो गंगाजल के समान है, शिष्य को अति प्रसन्नता हुई। गुरुजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्य आज्ञा अपने कार्य के लिए चला गया। थोड़ी देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्य गुरुजी के पास पहुंचा और उसने भी वह जल पीने की इच्छा जताई। गुरुजी ने मशक शिष्य को दी। शिष्य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्ला कर दिया। शिष्य ने कहा कि गुरुजी इस पानी में तो कड़वापन है और न ही यह जल शीतल है। आपने अनावश्यक ही उस शिष्य की इतनी प्रशंसा की। गुरुजी बोले कि मिठास और शीतलता इस जल में नहीं है तो क्या हुआ। इसे लाने वाले के मन में तो है। जब उस शिष्य ने जल पीया होगा तो उसके मन में मेरे लिए प्रेम उमड़ा, यही महत्वपूर्ण है। मुझे भी ...

अध्यात्म से बड़ा सुख नहीं

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बोधकथा : एक बार शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि गुरुजी उपासना में मन नहीं लग रहा है। बहुत कोशिश करके भी भगवान की ओर चित्त स्थिर नहीं हो रहा। गुरु थोड़ी देर बाद बोले कि सच ही कहते हो वत्स, यहां ध्यान लगेगा भी नहीं। कहीं और चलकर साधना  करेंगे। हो सकता है वहां ध्यान लग जाए। आज शाम में ही वहां चल देंगे। सूर्य अस्त होते ही दोनों एक ओर चल पड़े। गुरु के हाथ में एक कमंडल था, शिष्य के हाथ में थी एक झोली, जिसे वह बड़ी मुश्किल से संभाले हुए चल रहा था। रास्ते में एक कुआं आया। शिष्य ने शौच जाने की इच्छा व्यक्त की। दोनों रुक गए।   बहुत सावधानी से शिष्य ने झोला गुरु के पास रखा और शौच के लिए चल दिया। जाते-जाते उसने कई बार झोले पर नजर डाली, एक तीव्र प्रतिध्वनि सुनाई दी और झोले में पड़ी कोई वस्तु कुएं में जा गिरी। शिष्य दौड़ा हुआ आया और चिंतित स्वर में बोला कि भगवन झोले में सोने की ईंटें थी, वो कहां गईं, गुरु बोले कि वो कुएं में चली गईं। अब तुम्हारा ध्यान लग जाएगा। क्योंकि उसे भटकाने वाली चीज अब नहीं रही। अब कहो तो आगे बढ़ें या फिर वहीं लौट चलें, जहां से आए हैं। अब चित्त न लगने की चिंता नहीं र...

'कर बुरा तो हो बुरा'

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बोधकथा : प्राचीन समय की बात है एक गांव में एक वैद्यजी रहते थे। वैद्यजी के पास कभी कभार कोई मरीज आता था क्योंकि उस गांव में अधिकतर लोग बीमार नहीं पड़ते थे। इससे वैद्यजी की आजीविका में बहुत समस्या आती थी। एक दिन वैद्यजी अपनी झोपड़ी से बाहर निकले और एक पेड़ के नीचे जाकर बैठे। तभी उन्हें उस पेड़ के कोटर में एक सांप दिखाई दिया। वैद्यजी सोचने लगे कि अगर यह सांप किसी को काट खाए तो कितना अच्छा हो। मैं उसे ठीक करके अच्छा खासा धन कमा सकता हूं। तभी वैद्यजी की नजर सामने खेल रहे बच्चों पर पड़ी। उन्होंने बच्चो के पास जाकर कहा–देखो! बच्चों उस पेड़ के कोटर में मिट्टू मिया बैठे हैं। बच्चे तो बच्चे होते हैं, उनमें से एक बच्चा दौड़ा और सीधे जाकर कोटर में हाथ डाल दिया। संयोग से सांप की मुण्डी उसके हाथ में आ गई। जैसे ही उसने बाहर निकाला तो डर के मारे उछाल दिया। नीचे अन्य बच्चों के साथ वैद्यजी खड़े थे। सांप सीधा वैद्यजी के ऊपर आकर गिरा और कई जगह डंस लिया। तड़पते हुये वैद्यजी की जान निकल गई। इस बोधकथा से सीख मिलती है कि हमेशा दूसरों का भला सोचना चाहिए और भला न हो सके तो कमसे कम बुरा तो नहीं सोचना चाहिए। यानि कर बुरा ...

राष्ट्र चेतना के अमर गायक रामनरेश त्रिपाठी

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परिचय : उत्तर भारत के अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में एक प्रार्थना बोली जाती है— हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिये शीघ्र सारे दुगुर्णों को दूर हमसे कीजिये। लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीरव्रतधारी बनें। यह प्रार्थना एक समय इतनी लोकप्रिय थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद जब शाखाएं प्रारम्भ हुईं, तो उस समय जो प्रार्थना बोली जाती थी, उसमें भी इसके अंश लिये गये थे। हे गुरो श्री रामदूता शील हमको दीजिये शीघ्र सारे सद्गुणों से पूर्ण हिन्दू कीजिये। लीजिये हमको शरण में रामपंथी हम बनें ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीरव्रतधारी बनें। यह प्रार्थना संघ की शाखाओं पर 1940 तक चलती रही। 1940 में सिन्दी बैठक में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय हुए। उनके अनुसार इसके बदले संस्कृत की प्रार्थना नमस्ते सदा वत्सले... को स्थान मिला, जो आज भी बोली जाती है। इस प्रार्थना के लेखक श्री रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च 1889 को ग्राम कोइरीपुर जौनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह कुछ समय पट्टी प्रतापगढ़ तथा फिर कक्षा नौ तक जौनपुर में पढ़े। इसके बाद वे हिंदी के प्रचार—प्रसार तथा समाज सेवा में...

जन—जन के विवेकानन्द

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बोधकथा : एक लम्बे समय व अनेक कठिनाइयों को बड़ी समझदारी से पार करते हुए, एक लम्बी पेचीदा प्रक्रिया को लांघते हुए, भारत के प्रधानमंत्री पं. नेहरू व मद्रास के मुख्यमंत्री श्री एम भक्तवत्सलम् की आपत्तियों का समुचित समाधान करते हुए अंतत: सितम्बर 1964 को श्री पाद शिला पर स्वामी विवेकानन्द शिला स्मारक की अपेक्षित अनुमति मिल ही गयी। मा. एकनाथ रानाडे जी जो पूर्व में संघ के सरकार्यवाह 1956—1962 तथा 1962 में अ.भा. बौद्धिक प्रमुख थे उन्हीं की सारी योजना तथा उन्हीं की मुख्यतया परिश्रम इसके पीछे था। अनुमति मिलते ही अब प्रश्न उसके लिए धन संग्रह का था। मा. एकनाथ जी को आत्म​विश्वास चरम पर था। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द जी के सुन्दर चित्र वाले 1—1 रुपये के कार्ड बनवाये और उन्हें विद्यालय व महाविद्यालय के छात्र—छात्राओं में बिक्री हेतु दिया तथा साथ ही विद्यालय व महाविद्यालय के अध्यापकों व प्राचार्यों को भी आह्वान किया कि कम से कम एक ग्रेनाइट की 500 रुपये की ईंट का योगदान अवश्य होना चाहिए।  इसके अ​तिरिक्त समाज के सुधीजनों तथा डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, व्यवसाइयों व उद्योगपतियों को भी आह्वान किया गया। इस...

सादगी की प्रतिमूर्ति श्री लक्ष्मण श्रीकृष्ण भिड़े

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परिचय : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य को विश्वव्यापी रूप देने में अप्रतिम भूमिका निभाने वाले श्री लक्ष्मण श्रीकृष्ण भिड़े का जन्म अकोला, महाराष्ट्र में 1918 में हुआ था। उनके पिता श्री श्रीकृष्ण भिड़े सार्वजनिक निर्माण विभाग में कार्यरत थे। छात्र जीवन से ही उनमें सेवाभाव कूट—कूट कर भरा था। 1932—33 में जब चन्द्रपुर में भयानक बाढ़ आयी तो अपनी जान पर खेलकर उन्होंने अनेक वरिवारों की रक्षा की। एक बार मां को बिच्छू के काटने पर उन्होंने तुरंत अपना जनेऊ मां के पैर में बांध दिया। इससे रक्त का प्रवाह बंद हो गया और मां की जान बच गयी। चंद्रपुर में उनका सम्पर्क संघ से हुआ। वे बाबा साहब आप्टे से बहुत प्रभावित थे। 1941 में वे प्रचारक बने तथा 1942 में उन्हें लखनऊ भेज दिया गया। 1942 से 57 तक उन्होंने उत्तर प्रदेश में अनेक स्थानों एवं दायित्वों पर रहते हुए कार्य किया। 1957 में उन्हें कीनिया भेजा गया। 1961 में वे फिर उत्तर प्रदेश में आ गये। 1973 में उन्हें विश्व विभाग का कार्य दिया गया। इसके बाद बीस साल तक उन्होंने उन देशों का भ्रमण किया, जहां हिंदू रहते हैं। विदेशों से हिंदू हित एवं भारत हित में उन्ह...

कर्म ही पूजा

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बोधकथा : भारत में अंग्रेजी राज्य के यशस्वी लेखक एवं राष्ट्रीय नेता श्री सुन्दरलाल जी तिलक जी को मिलने एक बार पूना गये। लोकमान्य ने श्री सुंदर लाल जी को अपने घर पर ठहराया। प्रात: 4 बजे के लगभग तिलक जी उठे। प्रात:कालीन नित्य क्रियाओं से निपटकर वह केसरी और मराठा के लिए अग्रलेख लिखने लगे। ग्रंथ—लेखन व स्वाध्याय आदि कार्य पूर्ण करते दिन चढ़ गया। उनसे मिलने वाले सज्जन आने लगे। थोड़ी देर के लिए लोकमान्य केसरी कार्यालय भी गये। वहां भी उन्होंने काम निपटाये, आवश्यक निर्देश दिये। शहर के एक दो विद्यालयों, नगर आयोजनों में भाग लेकर जब लोकमान्य घर लौटे, तब मध्यान्ह का सूर्य चढ़ आया था।  तिलक जी ने पुन: स्नान किया। आवश्यकता निय​मविधि पूर्ण कर वह भोजन के लिए भोजनालय में गये। साथ ही सुंदर लाल जी भी थे। दोनों अपने—अपने आसनों पर बैठ गये। सामने पटरों पर भोजन की थालियां आ गयीं। तिलक जी ने रीति के अनुसार आचमन व जल सिंचन करके सुंदरलाल जी को कहा भोजन करें! रुक क्यों गये! मैं सोच रहा था कुछ भगवान की पूजा आराधना, स्तोत्र एवं संध्यावंदन के मंत्र तो हुए ही नहीं। भोजन से पहले भगवान की पूजा ही हो जाती। तिलक जी ...

नींव का पत्थर

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बोधकथा : वर्ष 1928—29 की बात है। लाल बहादुर शास्त्री लोक मण्डल की जिम्मेदारियां लेकर प्रयागराज पहुंचे थे। दुबले—पतले, सिर की टोपी, पैरों में देशी जूते, हंसमुख, संकोची स्वभाव के और दलगत राजनीति से सर्वथा अलग। उनका कहना था कि अखबारी विवरणों मं उनका नाम न छपे। कुछ मित्रों ने एक दिन पूछ ही लिया—आपको अखबारों में नाम छपने से पनहेज क्यों है। कुछ पशोपेश के बाद उन्होंने बताया कि लोकसेवक मण्डल के कार्य के लिए दीक्षा का समय लाला लाजपत राय ने कहा था कि लालबहादुर! ताजमहल में दो तरह के पत्थर लगे हैं। एक बढ़ियां किस्म का संगमरमर है, उसी से मेहराब और गुम्बद बने हैं, उसी से जालियां काटी गयी हैं, उसी से मीनाकाशी और पच्चीकारी की गयी है। उन्हीं में रंग—बिरंगे बेल—बूटे भी भरे गये हैं। दूसरी तरह के पत्थर हैं—टेढ़े—मेढ़े और बढ़ेंगे। वे सब नींव में दबे पड़े हैं। उनकी कोई प्रशंसा नहीं करता, लेकिन इन्हीं नींव के पत्थरों पर ताजमहल की इमारत खड़ी है। मैं चाहता हूं लोकसेवक मण्डल के आजीवन सदस्य नींव के पत्थर से खुद को बचाये रखें। मित्रों, मुझे क्षमा करें, मैं नींव का पत्थर ही रहना चाहता हूं।    ...

26 नवम्बर 2020 को है देवउठनी एकादशी, शुरू होंगे शुभ कार्य

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  ज्योतिष : कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं, इसे देवोत्थान और देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। इस बार यानि 2020 में देवउठनी एकादशी 26 नवम्बर को पड़ेगा। सनातन परम्परा में देवउठनी एकादशी को बहुत ही शुभ कहा गया है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु नींद से जागेंगे, जो चार महीने पहले देवशयनी एकादशी यानि 1 जुलाई 2020 को सो गये थे।  शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे क्षीर सागर में आकर सो गए और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। विष्णु मंत्र ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात।। – त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देवदेव:।। – शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम।। लक्ष्मीकान्तंकम...

करवा चौथ का पवित्र व्रत कल, तैयारी में जुटीं हैं सुहागिन महिलाएं

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जीवनशैली : कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सुहागिन महिलाएं पति की लम्बी उम्र के लिए करवा व्रत रखती हैं। इस वर्ष यानि 2020 में करवा चौथ का व्रत 4 नवम्बर को है। इस दिन सुहागन महिलाएं और वे कन्याएं जिनका विवाह होने वाला होता है, वे अपने जीवनसाथी की लम्बी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। उनके सुखद और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। करवा व्रत के दिन रात में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है, उसके बाद महिलाएं अपने पति के हाथों से जल ग्रहक करके पारण करती हैं और व्रत पूरा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत से पति—पत्नी के दाम्पत्य जीवन में प्रगाढ़ता आती है।  इसके अलावा कार्तिक माह का संकष्टी चतुर्थी व्रत भी 4 नवम्बर दिन बुधवार को है। इस दिन प्रथमेश श्री गणेश जी की पूजा विधि विधान से की जाती है। इस दिन उनको दुर्वा अर्पित करना अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। वैसे भी बुधवार का दिन गणेश जी की पूजा के लिए समर्पित है और उस दिन चतुर्थी भी है, तो इन दो वजहों से उस दिन विघ्नहर्ता की पूजा करना उत्तम रहेगा। गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है इसलिए गणेश की पूजा रोज और सबसे पहले करनी चाहिए। म...

अद्भुत है भीमकुंड और चुंदरू खावा का कुआं

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पर्यटन : अद्भुत और विवि​धता समेटे भारत में अधिकतर जगहों पर घूमने लायक है यानि जो लोग पर्यटन के शौकीन हैं, नई व रहस्यमयी जगहों पर जाना पसंद करते हैं तो ऐसे लोगों को भारत भ्रमण या दर्शन जरूर करनी चाहिए। भारत में ऐसे कई स्थल हैं, जो देखने और समझने लायक है। ऐसा ही एक अद्भुत कुंड है जिसका नाम है भीमकुंड। भीमकुंड एक प्राकृतिक जल कुंड है और मध्य प्रदेश, भारत में एक पवित्र स्थान है। यह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में बाजना गाँव के पास स्थित है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र में सड़क मार्ग से छतरपुर से 77 किमी दूर है। भीमकुंड महाभारत काल से पवित्र है। कई वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च करके पता लगाने की कोशिश की कि इसका जल इतना साफ और स्वच्छ कैसे है और इसकी गहराई भी जानना चाही लेकिन आज तक कोई भी भीमकुंड के रहस्य को सुलझा नहीं पाया है।  मान्यता है कि महाभारत के समय जब पांडवों को अज्ञातवास मिला था तब वे यहां के घने जंगलों से गुजर रहे थे। उसी समय द्रौपदी को प्यास लगी। लेकिन, यहां पानी का कोई स्रोत नहीं था। द्रौपदी व्याकुलता देख गदाधारी भीम ने क्रोध में आकर अपने गदा से पहाड़ पर प्रहार किया। इससे यहां एक पानी ...

वृष राशि वालों के लिए बेहद शुभ है नवम्बर 2020

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  ज्योतिष : शास्त्रों के अनुसार कुल 12 राशियां होती हैं, जो जीवनचक्र के गणना में बहुत सहायक है। बारहों राशियों में से वृष राशि का दूसरा स्थान है। वृष राशि वालों के लिए नवम्बर 2020 यानि कार्तिक महीने में करियर के लिहाज से बेहद शुभ रहने की उम्मीद है। जो जातक व्यापार से जुड़े हैं उनके लिए समय अनुकूल रहेगा। आर्थिक लाभ के योग हैं। प्रेम के लिहाज से बात करें तो इस महीने प्यार में पड़े प्रेमी जातकों को शुभ परिणाम मिलेंगे। आर्थिक पक्ष के लिहाज से जातक को सावधान रहना होगा, अन्यथा नुकसान होने की संभावना है। कार्तिक माह में वृष राशि का स्वामी शुक्र का गोचर कन्या और तुला राशि में होगा। 16 नवम्बर तक शुक्र अपनी नीच राशि कन्या में रहेगा इसके बाद तुला में प्रवेश कर जाएगा। 16 नवम्बर तक के समय में रिश्तों के मामले में सावधान रहें। प्रेम सम्बन्ध, दाम्पत्य जीवन सभी में आपको सतर्क रहना है, किसी के बहकावे में आकर अपने रिश्तों को खराब न करें।    16 नवम्बर से शुक्र स्वराशि तुला में जाएगा, इससे जातक का आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। पैसों का आगमन अच्छा होगा। सोचे सभी कार्य समय पर पूरे होंगे। नई कार्ययोज...

कार्तिक का महीना शुरू, करेला और बैंगन वर्जित

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जीवनशैली : कार्तिक का महीना 1 नवम्बर 2020 से शुरू हो गया है। कार्तिक महीने में बैंगन और करेला इन दोनों सब्जियों को खाना भी शास्त्र में वर्जित बताया गया है। कार्तिक महीने में इन दोनों सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसकी वजह यह भी है कि कार्तिक का महीना साधन और संयम धारण करने का महीना है। बैंगन काम और उत्तेजना बढ़ाने का काम करता है इसलिए इस महीने में बैंगन खाना अच्छा नहीं माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से बैंगन पित्त दोष को बढ़ाने का काम करता है जबकि करेला वायु दोष को इसलिए इनसे परहेज रखने के लिए कहा गया है। वहीं कार्तिक का महीना महापुण्यदायी महीना कहा गया है। इस महीने में जो व्यक्ति नियमित सूर्योदय पूर्व स्नान करता है वह दूध से स्नान करने का फल पाता है और शरीर निरोग रहता है।   पुष्कर पुराण में बताया गया है कि जो व्यक्ति कार्तिक मास में सुबह शाम भगवान विष्णु के समक्ष तिल के तेल से दीप जलाकर भगवान विष्णु का पूजन करता है वह अतुल धन लक्ष्मी को पाता है। ऐसे लोग अपने पुण्य कर्मों से स्वर्ग में स्थान पाते हैं और अगले जन्म में धनवानों के घर में पैदा होते हैं। वहीं पद्म पुराण में बता...

महान गुण है कृतज्ञता

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 विचार : हमें दूसरों से क्या नहीं मिला, इस पक्ष पर यदि विचार करें तो प्रतीत होगा कि कंजूसी कर ली गई और जितना वे दे सकते थे, उतना नहीं दिया। ऐसी दृ​ष्टि से हमें दूसरों की उदारता पर उंगली उठाने और उन्हें कृपण कहने के पर्याप्त प्रमाण मिल जाएंगे। ऐसी दशा में अपना क्षोभ, रोष और असंतोष ही बढ़ेगा। विचार करने का एक दूसरा पहलू भी है और वह यह कि जो मिला, वह कितना अधिक है। यदि इतना भी न मिलता तो हम क्या कर सकते थे। जबरदस्ती तो किसी को भी कुछ देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। हमारा कुछ ऋण या दबाव तो था नहीं, जो दिया गया वह प्रेम, उदारता और सौजन्य से ही दिया गया है। ऐसी दशा में यदि स्वल्प मिला तो भी उससे असंतुष्ट क्यों होना चाहिए। जिन्होंने दिया, उन्हें दोष क्यों देना चाहिए। इस धरती पर असंख्य ऐसे हैं, जिनसे हमारा कोई परिचय—संबंध नहीं, उनसे किसी प्रकार का कोई सहयोग नहीं मिलता। जब हम कुछ भी न देने वालों पर रोष नहीं करते तो थोड़ी सहायता करने वालों से ही रूष्ट क्यों हों! स्वजन, सम्बन्धियों, मित्र, हितैषियों के और स्त्री, पुत्रों, अभिभावकों के द्वारा प्रदत्त अनुदानों का लेखा जोखा संग्रह करें, उनकी...

शांत, सौम्य और दयालु होते हैं नवम्बर माह में जन्म लेने वाले लोग

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  ज्योतिष : नवम्बर माह में जन्म लेने वाले लोगों में प्यार का अथाह सागर होता है। नवम्बर में पैदा हुए लोग दूसरों से बहुत अलग होते हैं और सभी को प्रभावित करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवम्बर महीने में जन्मे लोग बड़े किस्मत वाले होते हैं। नवम्बर महीने में पैदा हुए लोग वफादार होते हैं, चाहे दोस्त हों, परिवार या फिर जीवनसाथी वे कभी भी आपके साथ धोखा नहीं करते हैं, आप उन पर आंख मूंदकर भरोसा कर सकते हैं। लोग इनके व्यक्तित्व की तरफ बहुत आकर्षित होते हैं, वे जहां कहीं भी जाते हैं, आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। लोग उनकी मौजूदगी को पसंद करते हैं। कई बार दूसरे लोगों को इससे ईर्ष्या भी होने लगती है।  नवम्बर में पैदा हुए लोग समय पर काम करते हैं, जो कुछ भी वह ठान लेते हैं, वह करके दिखाते हैं, वह अपने हर काम में 200 प्रतिशत देते हैं। नवम्बर में पैदा हुए लोग बहुत ही मेहनती और बुद्धिमान होते हैं। इस माह में पैदा हुए लोगों को यह पसंद नहीं कि उनके राज किसी और को पता चलें, उन्हें अपनी निजी जिंदगी के लिए स्पेस चाहिए। इस महीने में पैदा हुए लोग शांत स्वभाव वाले होते हैं और अपनी भावनाओं पर ज्यादात...

प्रतिभा का न हो दुरुपयोग

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विचार : मुस्लिम सल्तनत के समय सुलतान महमूद का दरबार कवियों और कलाकारों के लिए अच्छा शरण स्थल बना हुआ था। उन दिनों प्राय: प्रत्येक राजा—महाराजा अपने दरबार में कवि रखा करते थे, जो उनके शौर्य, पराक्रम और उदारता की मनगढ़ंत कहानियां गढ़कर गीत बनाकर गाया करते। राज—महाराजा अपने प्रशस्ति गीत सुनकर बड़े प्रसन्न होते और कवियों को पुरस्कार भी देते। एक प्रकार से यह व्यवसाय ही बन गया था। सुलतान महमूद के प्रसिद्ध राजदरबार में भी एक शायर थे, जिनका नाम था, सनाई। सनाई उच्च कोटि के शेर और गजलें लिखते, परंतु वे होतीं सब सुलतान की प्रशंसा में। प्राय: वे सुलतान की प्रशंसा में नए—नए शेर गाते, गजलें लिखते और राजदरबार में गाकर सुनाते। इसके बदले में उन्हें पुरस्कार भी खूब मिलता और सम्मान भी। प्रतिष्ठा और पुरस्कार ने उन्हें गर्वोन्नत भी कर दिया था। एक बार की घटना है। उन्होंने सुलतान की प्रशंसा में कुछ शेर लिखे। उन्हें सुनाने के लिए वे राजदरबार की ओर चले। मार्ग में एक मदिरालय था, उसमें कोई शराबी मद्य पी रहा था। प्राय: ही लोग वहां शराब पीते, उनका ध्यान कदाचित ही उस ओर जाता। उस दिन उनके पैर अनायास ही ठिठक गए। कारण...

नवम्बर माह में लगेगा 2020 का अंतिम चंद्रग्रहण

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ज्योतिष : 17 अक्टूबर 2020 से शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहा है। दुर्गा माता के भक्त नवरात्रि के रंग में रंग चुके हैं। बाजारों में दुर्गा पूजन के पंडाल भी सज गये हैं। उधर, दशहरा व दीपावली की तैयारियां भी जारी हैं। इसके अलावा बड़ी खबर यह है कि अगले महीने यानि नवम्बर में 2020 का अंतिम चंद्रग्रहण लगेगा। यह चंद्रग्रहण 30 नवंबर को पड़ेगा, जो देश के कई शहरों में देखा जा सकेगा। चूंकि यह उपच्छाया ग्रहण होने के कारण इसे सामान्य रूप से नहीं देखा जा सकेगा। उपच्छाया चंद्रग्रहण होने के कारण इसका कोई सूतक काल नहीं होगा। चंद्रग्रहण की शुरुआत 30 नवम्बर 2020 की दोपहर 1 बजकर 4 मिनट होगी और मध्यकाल दोपहर 3:13 बजे तक रहेगा। सायं 5:22 बजे चंद्रग्रहण समाप्त हो जाएगा। चंद्रग्रहण के दौरान लोगों को अपने आराध्य देव का जाप करना चाहिए, इससे उनके मन पर चंद्र ग्रहण का नकारात्मक असर नहीं होगा। उपच्छाया चंद्रग्रहण चंद्रमा जब भी धरती की परछाई में प्रवेश करता है तो उपच्छाया ग्रहण होता है। इस समय चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी आंशिक तौर पर कटी प्रतीत होती है और ग्रहण को चंद्रमा पर पड़ने वाली धुंधली परछाई के रूप में द...

समय एक मूल्यवान सम्पदा

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विचार : संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं जिसकी प्राप्ति मनुष्य के लिए असंभव हो। प्रयत्न और पुरुषार्थ से सभी कुछ पाया जा सकता है, लेकिन एक ऐसी भी चीज है, जिसे एक बार खोने के बाद कहीं नहीं पाया जा सकता है और वह है—समय। एक बार हाथ से निकला हुआ समय कभी हाथ नहीं आता। कहावत है—बीता हुआ समय और कहे शब्द कभी वापस नहीं बुलाये जा सकते। समय परामात्मा से भी महान है। भक्ति—साधना द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार कई बार किया जा सकता है, लेकिन गुजरा हुआ समय पुन: नहीं मिलता। समय ही जीवन की परिभाषा है, क्योंकि समय से ही जीवन बनता है। समय का सदुपयोग करना जीवन का उपयोग करना है, समय का दुरुपयोग करना जीवन को नष्ट करना है। समय किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता, वह प्रतिक्षण, घंटे, दिन, महीनों, वर्षों के रूप में निरंतर अज्ञात दिशा में जाकर विलीन होता रहता है। फ्रेंकलिन ने कहा— समय बरबाद मत करो, क्योंकि समय से ही जीवन बना है। नि:संदेह वक्त और सागर की लहरें किसी की प्रतीक्षा नहीं करतीं। हमारा कर्तव्य है कि हम समय का पूरा—पूरा सदुपयोग करें। जो व्यक्ति अपना तनिक सा भी समय व्यर्थ नष्ट करते हैं, उन्हें समय अनेक सफलताओं ...

अक्टूबर माह में वृष राशि वालों को मिलेगा विशेष लाभ

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ज्योतिष : बारहों राशियों में वृष दूसरे स्थान पर है। वृष राशि का स्वामी शुक्र है। अक्टूबर महीने में सिंह राशि का होकर वृष चतुर्थ भाव में रहेगा। यह सुख का स्थान है इसलिए वृष राशि के जातकों को विशेष लाभ मिलने वाला है। जातक की आय में वृद्धि होगी। सुख-सुविधाओं के साधन प्राप्त होंगे। परिवार में खासतौर पर भाई-बहनों के सहयोग कोई बड़ी योजना साकार कर पाएंगे। इस माह जातक को कई बार व्यर्थ के कार्यों पर भी खर्च करना पड़ सकता है। किसी की आर्थिक मदद करना पड़ेगी। वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। अविवाहितों के विवाह की बात इस माह बन सकती है। प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी। कारोबारियों को थोड़ा संभलकर और सुनियोजित प्लान बनाकर चलना होगा। कुछ अच्छे अवसर भी आपके सामने आ सकते हैं।  अक्टूबर के चौथे दिन प्रतिगामी मंगल मीन राशि में प्रवेश, मेष राशि से 11वें घर, 12वें घर । सूर्य कन्या पर पारगमन, 17 तक 5 घर और फिर वह तुला, 6 घर में ले जाता है । शुक्र सिंह राशि पर पारगमन, इस महीने की 23 तारीख तक चौथा घर और फिर वह कन्या, 5 घर में ले जाता है । बुध तुला, 6 घर पर अपना पारगमन जारी है । बृहस्पति अपने हस्ता...

ब्राह्मणत्व एक बड़ा उत्तरदायित्व

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विचार : ब्राह्मणत्व एक बड़ा उत्तरदायित्व है, जिसे निभाने वाला पुरोहित ही भूसुर कहलाता है। नीचैं: पद्यन्तामधरे भवन्तु ये न: सूरिं मघवानं पृतन्यान। क्षिणामि ब्रह्मणामित्रानुन्नयामि स्वानहम्।। भावार्थ : मैं ब्राह्मण स्वयं ज्ञान से सम्पन्न होकर मनोनिग्रहपूर्वक अपने यजमानों को ऊंचा उठाने का प्रयत्न करता रहूंगा। वे दुष्कर्मों की ओर न बढ़ें, किसी के हितों का अपहरण न करें, इसका ध्यान रखूंगा। संसार को उन्नतिशील बनाये रखने, तेजस्वी—वर्चस्वी बनाये रखने और तदनुसार सुख—समृद्धि का वातावरण निर्मित करने का उत्तरदायित्व ब्राह्मण पर है। जो इसे जानता—समझता है, वही सच्चा विद्वान और समाजनिष्ठ कहलाता है। ऐसे लोग स्वध्याय व सत्संग में कभी प्रमाद नहीं करते और अपने अर्जित ज्ञान का निरंतर दान करते हुए समाज की उन्नति हेतु तप—साधना में लीन रहते हैं। ठीक बात को समझना, समझने के बाद उसे प्राप्त करने का मार्ग ढूंढना, मार्ग खोजकर उस पर तप व साधना की भावना से चलना, यही मनुष्य को मनुष्य बनाने का उचित मार्ग है। इस मार्ग का अनुसरण करने के लिए ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे मनोनिग्रह एवं इंद्रियसंयम को अपनाएं। मानसिक संत...

धैर्यवान बनें

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विचार : कोई भी काम करने में धैर्य की नितांत आवश्यकता है। जो धैर्यवान है, वह कर्म करने से पहले उसके शुभाशुभ परिणाम पर विचार कर सकता है। अपने कर्म के सत—असत एवं उपयोगिता—अनुपयोगिता पर सोच सकता है। इसके विपरीत जो अधैर्यवान है, आवेश अथवा उद्वेगपूर्ण है, वह न तो कर्म की इन आवश्यक भूमिकाओं पर विचार कर सकता है और न दक्षता प्राप्त कर सकता है। वह तो अस्त—व्यस्त क्रियाकलाप की तरह एक निरर्थक श्रम ही होता है।  अधैर्य मुनष्य का बहुत बड़ा दुर्गुण है। अधीर व्यक्ति में अपेक्षित गंभीरता का अभाव ही रहता है, जिससे वह चपलता के कारण समाज में उपहास, उपेक्षा और निंदा का पात्र बनता है। अधीर व्यक्ति के मन—बुद्धि स्थिर नहीं रहते। वह न किसी विषय में ठीक से सोच सकता है और न कृतृत्व का निर्णय कर सकता है। अधैर्यवान व्यक्ति अक्षरता, अस्त—व्यस्तता, अनिर्णयात्मकता एवं अक्षमता के कारण जीवन के हर क्षेत्र में असफल होकर दु:ख भोगता है। इसके विपरीत जो धैर्यवान है, वह जिस कार्य को पकड़ता है, उसे पूर्ण मनोयोग, विवेक, बुद्धि और समग्र शक्ति लगाकर पूरा किए बिना नहीं रहता। धैर्यवान व्यक्ति कर्म करके उसके फल की प्रतीक्षा में व...

सहकारिता अपनाना जरूरी

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  विचार : सब मिल—जुलकर आदर्श के पथ पर एक साथ, एक लक्ष्य की ओर बढ़ें, यही वेद भगवान की आज्ञा है। समानो मंत्र: समिति: समानी, समानं मन: सह चित्तमेषाम। समानं मन्त्रमभि मन्त्रये व:, समानेन वो हविषा जुहोमि।। भावार्थ : सभी मनुष्यों के विचार समान हों, सब संगठित होकर रहें। सबके मन, चित्त तथा यज्ञकार्य समान हों अर्थात सब मिलजुलकर रहें। जिस प्रकार समाज में दो व्यक्ति एक—सी शक्ल—सूरत के नहीं होते, उसी प्रकार लोगों के विचार विश्वास और स्वभाव भी भिन्न भिन्न होते हैं। समाज में गोरे—काले, छोटे—बड़े, बच्चे—बूढ़े, स्त्री—पुरुष, गरीब—अमीर सभी एक साथ रहते हैं। एक के बिना दूसरे का काम भी नहीं चलता। फिर अपने भिन्न विचारों में भी उदारता का समावेश करके यदि सभी मिलजुलकर रहें तो चारों ओर सुख, शांति, एकता और उन्नति का वातावरण जाग उठे। विचारों की शक्ति बहुत ही महान है। ये लोगों के चिंतन और चरित्र को दिशा देते हैं। समाज में फैला वैचाारिक प्रदूषण ही यज्ञीय भावना के स्थान पर स्वार्थजन्य आचरण की ओर लोगों को प्रेरित करता है। संसार में आज हर व्यक्ति दु:खी दिखाई देता है। इसका कारण उसकी अपनी परेशानी तो है, पर अधिकत...

दया नहीं, संवेदना और सहयोग

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विचार : महानगरी मुम्बई की पटरियों पर एक अंधा भिखारी गीत गा—गाकर भीख मांग रहा था। उसका कंठ बहुत मधुर था। हजारों लोग रोज भीख मांगते हैं, किसको किस पर ध्यान देने का समय रहता है, सो उस पर ही कौन ध्यान देता। बहरहाल इतना जरूर था कि लोग उसके मधुर कंठ से आकर्षित होकर थोड़ा ठिठक जाते थे। वह जो कुछ गा रहा था, उन पंक्तियों में उसकी नेत्रहीनता के साथ दया की याचना भी थी। उसकी मधुर आवाज, गीत में भरी याचना भी थी। उसकी मधुर आवाज, गीत में भरी याचना से द्रवित होकर कोई—कोई रुकता और दो—तीन पैसे उसके सामने रखे बरतन में डाल जाता था। जिस स्थान पर बैठा वह अंधा भिखारी भीख मांग रहा था, उसी स्थान पर एक कार आकर रुकी कार में बैठे थे विश्वप्रसिद्ध संगीतकार सिगप्रिड जान्सन जो स्वयं भी अंधे थे। उन्होंने ड्राइवर से कहा—देखो क्या माजरा है, कौन इतने मधुर कंठ से क्या गा रहा है। ड्राइवर कर से उतरा और देखकर आया तो उसने सारी बातें बताई। जोन्सन ने पूछा— क्या इस देश में अंधे व्यक्तियों को भीख मांगकर गुजारा करना पड़ता है। लगता तो ऐसा ही है, मान्यवर! ड्राइवर ने कहा और गाड़ी स्टार्ट कर दी। गाड़ी अपने स्थान से आगे बढ़ी और तेज गत...

लोकरंजन के माध्यम अपनी जिम्मेदारी समझें

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विचार : भारतवर्ष में सर्वप्रथम चलचित्र 1913 में दादा साहब फालके ने बनाया था तब से आज तक भारतीय फिल्म उद्योग निरन्तर उन्नति करता जा रहा है। उनके निर्यात से केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों को पर्याप्त आय हो जाती है। यों इस बात पर गर्व भी किया जा सकता है कि भारतीय सिनेमा उद्योग संसार के फिल्म सिनेमा उद्योग में द्वितीय स्थान रखता है। यदि वर्तमान अमर्यादित फिल्मों के दुष्परिणाम पर दृष्टि डालें तो लज्जा ही अनुभव करनी पड़ती है। अत्यन्त खेद के साथ कहना पड़ेगा कि आज नब्बे प्रतिशत फिल्में ऐसे बन रही हैं जिनसे पारिवारिक—सामाजिक वातावरण दूषित बनता है तथा अपराधों में वृद्धि होती है। उन्हें देख—देखकर छोटी—छोटी आयु के बालक बालिकाओं में भी अनैतिक छोटी—छोटी आयु के बालक बालिकाओं में भी अनैतिक और मानसिक पतन की स्थिति आ जाती है। आज विद्यार्थियों का जीवन जितना अनुशासन विहीन और अमर्यादित हो रहा है, उसका बहुत बड़ा दोष सिनेमा पर ही है। दूषित चलचित्रों को देखकर युवक पाकेटमार, जाल—साज, चोर और शराबी तक बन जाते हैं और इससे भी एक कदम आगे बढ़कर उनका नैतिक पतन भी हो जाता है।  युवक युवतियों में कामुकता की भावनाओं को...