अध्यात्म से बड़ा सुख नहीं


बोधकथा : एक बार शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि गुरुजी उपासना में मन नहीं लग रहा है। बहुत कोशिश करके भी भगवान की ओर चित्त स्थिर नहीं हो रहा। गुरु थोड़ी देर बाद बोले कि सच ही कहते हो वत्स, यहां ध्यान लगेगा भी नहीं। कहीं और चलकर साधना  करेंगे। हो सकता है वहां ध्यान लग जाए। आज शाम में ही वहां चल देंगे। सूर्य अस्त होते ही दोनों एक ओर चल पड़े। गुरु के हाथ में एक कमंडल था, शिष्य के हाथ में थी एक झोली, जिसे वह बड़ी मुश्किल से संभाले हुए चल रहा था। रास्ते में एक कुआं आया। शिष्य ने शौच जाने की इच्छा व्यक्त की। दोनों रुक गए। 


 बहुत सावधानी से शिष्य ने झोला गुरु के पास रखा और शौच के लिए चल दिया। जाते-जाते उसने कई बार झोले पर नजर डाली, एक तीव्र प्रतिध्वनि सुनाई दी और झोले में पड़ी कोई वस्तु कुएं में जा गिरी। शिष्य दौड़ा हुआ आया और चिंतित स्वर में बोला कि भगवन झोले में सोने की ईंटें थी, वो कहां गईं, गुरु बोले कि वो कुएं में चली गईं। अब तुम्हारा ध्यान लग जाएगा। क्योंकि उसे भटकाने वाली चीज अब नहीं रही। अब कहो तो आगे बढ़ें या फिर वहीं लौट चलें, जहां से आए हैं। अब चित्त न लगने की चिंता नहीं रहेगी। गुरु ने शिष्य से कहा कि अध्यात्म से बड़ा सुख कोई नहीं है इसलिये ईश्वर में लीन होना जरूरी है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वृष राशि वालों के लिए बेहद शुभ है नवम्बर 2020

26 नवम्बर 2020 को है देवउठनी एकादशी, शुरू होंगे शुभ कार्य

15 मई से सूर्य मेष से वृषभ राशि में जाएंगे, जानें किन राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा