'कर बुरा तो हो बुरा'
बोधकथा : प्राचीन समय की बात है एक गांव में एक वैद्यजी रहते थे। वैद्यजी के पास कभी कभार कोई मरीज आता था क्योंकि उस गांव में अधिकतर लोग बीमार नहीं पड़ते थे। इससे वैद्यजी की आजीविका में बहुत समस्या आती थी। एक दिन वैद्यजी अपनी झोपड़ी से बाहर निकले और एक पेड़ के नीचे जाकर बैठे। तभी उन्हें उस पेड़ के कोटर में एक सांप दिखाई दिया। वैद्यजी सोचने लगे कि अगर यह सांप किसी को काट खाए तो कितना अच्छा हो। मैं उसे ठीक करके अच्छा खासा धन कमा सकता हूं। तभी वैद्यजी की नजर सामने खेल रहे बच्चों पर पड़ी। उन्होंने बच्चो के पास जाकर कहा–देखो! बच्चों उस पेड़ के कोटर में मिट्टू मिया बैठे हैं। बच्चे तो बच्चे होते हैं, उनमें से एक बच्चा दौड़ा और सीधे जाकर कोटर में हाथ डाल दिया। संयोग से सांप की मुण्डी उसके हाथ में आ गई। जैसे ही उसने बाहर निकाला तो डर के मारे उछाल दिया। नीचे अन्य बच्चों के साथ वैद्यजी खड़े थे। सांप सीधा वैद्यजी के ऊपर आकर गिरा और कई जगह डंस लिया। तड़पते हुये वैद्यजी की जान निकल गई। इस बोधकथा से सीख मिलती है कि हमेशा दूसरों का भला सोचना चाहिए और भला न हो सके तो कमसे कम बुरा तो नहीं सोचना चाहिए। यानि कर बुरा तो हो बुरा।
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