ब्राह्मणत्व एक बड़ा उत्तरदायित्व
विचार : ब्राह्मणत्व एक बड़ा उत्तरदायित्व है, जिसे निभाने वाला पुरोहित ही भूसुर कहलाता है।
नीचैं: पद्यन्तामधरे भवन्तु ये न: सूरिं मघवानं पृतन्यान।
क्षिणामि ब्रह्मणामित्रानुन्नयामि स्वानहम्।।
भावार्थ : मैं ब्राह्मण स्वयं ज्ञान से सम्पन्न होकर मनोनिग्रहपूर्वक अपने यजमानों को ऊंचा उठाने का प्रयत्न करता रहूंगा। वे दुष्कर्मों की ओर न बढ़ें, किसी के हितों का अपहरण न करें, इसका ध्यान रखूंगा।
संसार को उन्नतिशील बनाये रखने, तेजस्वी—वर्चस्वी बनाये रखने और तदनुसार सुख—समृद्धि का वातावरण निर्मित करने का उत्तरदायित्व ब्राह्मण पर है। जो इसे जानता—समझता है, वही सच्चा विद्वान और समाजनिष्ठ कहलाता है। ऐसे लोग स्वध्याय व सत्संग में कभी प्रमाद नहीं करते और अपने अर्जित ज्ञान का निरंतर दान करते हुए समाज की उन्नति हेतु तप—साधना में लीन रहते हैं। ठीक बात को समझना, समझने के बाद उसे प्राप्त करने का मार्ग ढूंढना, मार्ग खोजकर उस पर तप व साधना की भावना से चलना, यही मनुष्य को मनुष्य बनाने का उचित मार्ग है। इस मार्ग का अनुसरण करने के लिए ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे मनोनिग्रह एवं इंद्रियसंयम को अपनाएं। मानसिक संतुलन बहुत ही जरूरी चीज है। लोगों की प्रवृत्ति दुष्कर्मों की ओर रहती है तथा एक बार उनमें फंस जाने पर मनुष्य आसानी से उन्हें छोड़ता नहीं है। उसे समझा—बुझाकर सही मार्ग पर प्रेरित करना बड़ा ही कष्टसाध्य व श्रमसाध्य कार्य है। अज्ञानियों का विरोध भी झेलना पड़ता है और प्रताड़ना भी। ऐसे में धैर्यपूर्वक, बिना किसी राग—द्वेष या उतावली के विद्वानों को समाज में सत्प्रवृत्तियों के प्रचार—प्रसार के कार्य में लगातार संलग्न रहना चाहिए। सत्संग एवं स्वाध्याय के माध्यम से अपने ज्ञान की प्रखरता बढ़ाते रहने का सदैव प्रयास करना चाहिए। जैसे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है, उसी प्रकार ज्ञानी एवं सद्गुणी व्यक्ति के संसर्ग में आने वाले लोगों में भी सद्ज्ञान, सद्गुणों एवं सत्प्रवृत्तियों की वृद्धि होती है।
विद्वान लोग निरंतर ज्ञान की साधना में रत रहते हैं और मानव समाज की विषमताओं की, जीवन—निर्माण के सिद्धांत की, आत्मविद्या एवं ब्रह्मविद्या की समुचित जानकारी रखते हैं। वे विद्या और अविद्या के भेद को भलीभांति समझते हैं। स्वयं ज्ञानार्जन करके उसका लाभ समाज को देना ही वास्तविक जीवनोद्देश्य कहा जा सकता है। विद्वानों को स्वाध्याय और प्रवचन, दोनों का ही उचित ध्यान रखना चाहिए। इन्हीं के द्वारा वे स्वयं भी अपने ज्ञान का परिमार्जन करते हुए अपने सम्पर्क में आने वालों को भी सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने में समर्थ होंगे। आजकल अधिकतर व्यक्ति ब्राह्मणत्व का ढकोसला मात्र ही कर रहे हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को भुनाने का खेल ही चारों ओर चलता दिखता है। इससे लोगों को अपेक्षित लाभ नहीं होता है। ब्राह्मणों को चाहिए कि वे लोगों को सच्चे अध्यात्म की शिक्षा दें। सच्चा अध्यात्म यही है कि हम अपने भीतर देखें, अपने आप को समझें, अपने आप को जानें, अपनी गलतियों के बारे में गौर करें और अपनी गतिविधियों को ठीक करने के लिए प्रयत्न करें। यही सच्चे अध्यात्मवादी के लक्षण हैं। समाज में विकृतियां दूर करने में सभी ब्राह्मण अपने इस पुनीत कर्तव्य के प्रति जागरूक रहें।
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