शिष्य ने गुरु के लिये लाया जल


प्रेरक कथा : एक बार की बात है कि गुरु आश्रम से एक शिष्य कहीं दूर जा रहा था कि उसे प्यास लगी। शिष्य ने कुएं से पानी निकाला और अपनी प्यास बुझाई, उसे अति तृप्ति मिली। शिष्य को कुएं का जल मीठा और शीतल लगा। शिष्य के मन में एक बात सूझी और उसने अपनी मशक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा। वह आश्रम पहुंचा और गुरुजी को सारी बात बताई। गुरुजी ने शिष्य से मशक लेकर जल पिया और शिष्य से कहा. वाकई जल तो गंगाजल के समान है, शिष्य को अति प्रसन्नता हुई। गुरुजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्य आज्ञा अपने कार्य के लिए चला गया। थोड़ी देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्य गुरुजी के पास पहुंचा और उसने भी वह जल पीने की इच्छा जताई। गुरुजी ने मशक शिष्य को दी। शिष्य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्ला कर दिया। शिष्य ने कहा कि गुरुजी इस पानी में तो कड़वापन है और न ही यह जल शीतल है। आपने अनावश्यक ही उस शिष्य की इतनी प्रशंसा की। गुरुजी बोले कि मिठास और शीतलता इस जल में नहीं है तो क्या हुआ। इसे लाने वाले के मन में तो है। जब उस शिष्य ने जल पीया होगा तो उसके मन में मेरे लिए प्रेम उमड़ा, यही महत्वपूर्ण है। मुझे भी इस मशक का जल तुम्हारी तरह ठीक नहीं लगा। पर मैं यह कहकर उसका मन दुःखी करना नहीं चाहता था। हो सकता है जब जल मशक में भरा गया, तब वह शीतल हो और मशक के साफ न होने पर यहां तक आते-आते यह जल वैसा नहीं रहा, लेकिन उस शिष्य का भाव ही आनंदमयी है।

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