आपस में न करें बैर

बोधकथा। एक बार की बात है कि गुरु के दो शिष्य हमेशा एक-दूसरे को नीचा दिखने की कोशिश में लगे रहते थे। एक दिन गुरु ने दोनों शिष्यों को कथा सुनाई-एक बार एक जंगल में बैल और घोड़े में लड़ाई हो गई। बैल ने सींग मार-मारकर घोड़े को अधमरा कर दिया। घोड़ा जब समझ गया कि वह बैल से जीत नहीं सकता तब वह वहां से भागा। वह एक मनुष्य के पास पहुंचा, घोड़े ने मनुष्य से अपनी सहायता की गुहार लगाई। मनुष्य ने कहा कि बैल की बड़ी-बड़ी सींगें हैं, वह बहुत बलवान है, मैं उससे कैसे जीत सकूंगा? घोड़े ने मनुष्य को समझाया कि मेरी पीठ पर बैठ जाओ, एक मोटा डंडा ले लो। मैं जल्दी-जल्दी दौड़ता रहूंगा। तुम डंडे से मार-मारकर बैल को अधमरा कर देना और फिर रस्सी से बांध देना। मनुष्य ने कहा कि मैं उसे बांधकर भला क्या करुंगा? घोड़े ने बताया कि बैल बड़े काम के होते हैं-बैल से गाड़ी खींच सकते हो, खेती कर सकते हो और तो और जब आप उसे नहीं रखना चाहो तो उसे व्यापारी के हाथ बेंच सकते हो और बेंचने पर तुम्हें मोटी रकम मिलेगी। मनुष्य ने घोड़े की बात मान ली। बेचारा बैल जब पिटते-पिटते जमीन पर गिर पड़ा, तब मनुष्य ने उसे बांध लिया। घोड़े ने काम समाप्त होने पर कहा कि अब मुझे छोड़ दो मैं चरने जाऊंगा। मनुष्य जोर-जोर से हंसने लगा और कहा कि मैं तुमको भी बांध देता हूं, मैं नहीं जानता था कि तुम मेरे चढ़ने के काम आ सकते हो। घोड़ा बहुत रोया और पछताया, लेकिन अब तो घोड़ा फंस चुका था। गुरु ने दोनों शिष्यों को समझाते हुये कहा कि तुम दोनों अगर एकदूसरे के खिलाफ षडयंत्र करोगे, बैर करोगे तो कोई तीसरा आकर उसका लाभ उठा लेगा। इसलिये आपस में बैर और षडयंत्र न करें।

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