सनातन धर्म करेगा विश्व का कल्याण
धर्म। सनातन धर्म में हाथ जोड़कर प्रणाम करना, माथे पर तिलक लगाना, पूजा में शंख बजाना और बड़े-बुजुर्गों के चरण स्पर्श करना, दीन-दु:खी की सेवा करना, सभी के सुख की कामना करने की विशेष परम्परा रही है। आधुनिक युग में इसके वैज्ञानिक महत्व भी हैं। भारतीय जीवनशैली में जमीन पर बैठकर खाना खाने की परम्परा सदियों पुरानी है। जमीन पर पालथी मारकर बैठकर खाना खाने से भोजन अच्छे से पचता है और शरीर में जठर रस का सही उपयोग होता है। जमीन पर पालथी मारकर बैठकर भोजन करने से खूब आनंद आता है, बशर्ते भोजन परिवार के साथ हो। वहीं तिलक लगाना भारतीय परम्परा का हिस्सा है, महिला, पुरुष, बच्चे और वृद्ध सभी के माथे पर तिलक लगाया जाता है। दोनों आंखों के बीच आज्ञा चक्र होती है, इसलिए इस स्थान पर तिलक लगाने से एकाग्रता बढ़ती है, साथ ही तिलक लगाते समय उंगली का दबाव माथे पर पड़ता है, इससे नसों का रक्त संचार भी शुद्ध होता है। बता दें कि पूजा-पाठ में शंख बजाने का विधान है। शंख बजाने से कई बीमारियां दूर होती हैं, इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और फेफड़ों का संक्रमण समाप्त होता है। पंडित कामता प्रसाद मिश्र बताते हैं कि हम अक्सर अपने बड़े-बुजुर्गों, ब्राह्मणों और गुरुजनों के पांव छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं और वे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हैं, इससे मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों से सामने वाले के पैरों तक पहुंचती है और बुजुर्गों के पैरों से होते हुए उनके हाथों तक पहुंचती है, इसलिए जब वे आशीर्वाद देते हैं तो वह ऊर्जा फिर से हमारे मस्तिष्क तक पहुंचती है, इससे ऊर्जा का चक्र पूरा होता है। सिर्फ पूजा-पाठ ही नहीं, बल्कि योग करते समय और अभिवादन करते समय भी दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम करते हैं। जब हम अपने दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम करते हैं तो सभी उंगलियां आपस में मिलती हैं और एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं, जिससे दबाव पड़ता है और इसका फायदा हमारे आंख, कान और दिमाग को होता है। चूंकि हथेलियों पर ही शरीर के नसों की समाप्ति होती है, इसलिये दोनों हाथ जोड़ने पर दो सिरे मिलते हैं दायां और बायां, इससे शरीर में अदुभुत ऊर्जा का संचार होता है। यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग कहते हैं कि विश्व का कल्याण भारत ही करेगा, जो कि सही कहते हैं।
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