पुत्र की रक्षा के लिये जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं महिलाएं
आस्था। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां पुत्र के जीवन की रक्षा करने के उद्देश्य से करती हैं। इस व्रत में पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। यह पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के मिथिला और थरुहट में आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन दिनों तक मनाया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है। 17 सितम्बर को दोपहर 2 बजकर 14 मिनट पर अष्टमी तिथि शुरू होगी और 18 सितम्बर को दोपहर 4 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितम्बर को रखा जाएगा। 19 सितम्बर की प्रात:6 बजकर 10 मिनट के बाद व्रत पारण किया जा सकेगा। जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन प्रात: स्नान करने बाद व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर साफ कर लें। इसके बाद वहां एक छोटा सा तालाब बना लें। तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ाकर कर दें। अब शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल के पात्र में स्थापित करें। अब उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली और लाल और पीली रूई से सजाएं। अब उन्हें भोग लगाएं। अब मिट्टी या गोबर से मादा चील और मादा सियार की प्रतिमा बनाएं। दोनों को लाल सिंदूर अर्पित करें। अब पुत्र की प्रगति और कुशलता की कामना के बाद व्रत कथा जरूर पढ़ें या सुनें। कथा के अनुसार-एक बार जीमूतवाहन गंधमादन पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे उसी समय उनके कानों में एक वृद्ध स्त्री के रोने की आवाज आई। जीमूतवान ने महिला के पास जाकर रोने का कारण पूछा तो उसने कहा कि मैं शंखचूड़ नाग की माता हूं। आज भगवान विष्णु का वाहन गरूड़ शंखचूड़ को उठा कर ले जाएगा और खा जाएगा। इसलिए दु:खी होकर रो रही हूं। जिमूतवाहन ने कहा कि मैं आज आपके पुत्र के बदले गरूड़ का आहार बनूंगा और आपके पुत्र की रक्षा करूंगा। गरूड़ जब शंखचूड़ को लेने आया तो जिमूतवाहन शंखचूड़ बनकर बैठ गया। गरूड़ जीमूतवाहन को लेकर उड़ चला। लेकिन कुछ दूर जाने के बाद उसे एहसास हुआ कि वह शंखचूड़ की जगह एक मानव को उठा लाया है। गरूड़ ने पूछा कि हे मानव तुम कौन हो और मेरा भोजन बनने क्यों चले आए। इस पर जिमूतवाहन ने कहा कि वह राजा जिमूतवाहन है। शंखचूड़ की माता को पुत्र वियोग से बचाने के लिए मैं आपका आहार बनने चला आया। गरूड़ राजा के दया और परोपकार की भावना से प्रसन्न हो गए। जिमूतवान को वरदान दिया कि तुम सौ वर्ष तक पृथ्वी का राज भोगकर बैकुंठ जाओगे। जिमूतवाहन के कारण शंखचूड़ की माता को पुत्र वियोग का दर्द नहीं सहना पड़ा। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि थी। इसलिए इस दिन से जीमूतवाहन और जीवितपुत्रिका व्रत करने की परम्परा शुरू हुई।
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