अनंत चतुर्दशी के दिन भुजा पर बांधें 14 गांठों वाला अनंत सूत्र

आस्था। अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ यदि कोई व्यक्ति यदि श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं, यह व्रत धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना के साथ किया जाता है। मान्यता है कि जब पाण्डव धृत क्रीड़ा में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चौदस का व्रत करने की सलाह दी थी। पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रोपदी के साथ विधि-विधान से अनंत चतुर्दशी का व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया। अनन्तचतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पांडव सभी संकटों से मुक्त हो गए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस कहा जाता है, इस दिन अनंत भगवान यानि विष्णु की पूजा के बाद बांह पर अनंत सूत्र बांधने की परम्परा है, इसमें 14 गांठें होती हैं। बता दें कि अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणेश विसर्जन भी किया जाता है इसलिए इस तिथि का खास महत्व है।
अनन्त चतुर्दशी शुक्रवार, सितम्बर 9, 2022 को
अनन्त चतुर्दशी पूजा मुहूर्त : 6:03 प्रात: से 6:07 सायं
चतुर्दशी तिथि की शुरुआत : 8 सितम्बर 2022 को 9:02 बजे सायं
चतुर्दशी तिथि का समापन : 9 सितम्बर 2022 को 6:07 बजे सायं

अनंद चौदस का पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है, लेकिन सभी श्रद्धालुओं के लिये ऐसा सम्भव नहीं है। इसलिये घर में पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें, कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह गांठों से युक्त अनन्तसूत्र डोरा रखें। इसके बाद 'ॐ अनन्तायनम:' मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्र की षोडशोपचार-विधि से पूजा करें। पूजनोपरांत अनन्तसूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें-
अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥

अनंतसूत्र बांधने के बाद किसी ब्राह्मण को नैवेद्य में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें।
कथा के अनुसार-एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्त सूत्र पर पड़ी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्त सूत्र को जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड़ दिया और उसे जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्य ऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया, वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने के लिये वन में चले गए, उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनंत देव का पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनन्त देव का दर्शन कराया। भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित के लिये तुम 14 वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मों का फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्य मुनि ने चौदह साल तक अनंत व्रत का नियमपूर्वक पालन किया और उन्हें खोई हुई समृद्धि फिर से मिल गयी।

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