मनकामेश्वर मंदिर के दर्शन से पूरी होती हैं मनोकामनाएं
आस्था। उत्तर प्रदेश के शहर प्रयागराज में मनोकमना मंदिर के दर्शन से हर मनोकमनाएं पूर्ण होती हैं। पौराणिक मान्यता है कि यज्ञभूमि पर कामदेव को भस्म करने के बाद भगवान शंकर ने यमुना तट पर भक्तों की कामना पूरी करने के लिए प्रवास किया। तभी ये यहां मनकामेश्वर के रूप में महादेव विराजमान हैं। मान्यता के अनुसार वन गमन के समय प्रभु श्रीराम न अक्षयवट दर्शन से पहले मनकामेश्वर की आराधना की थी। स्कंद पुराण और प्रयाग महात्म्य में मनकामेश्वर महादेव का उल्लेख है। पुराणों के अनुसार अक्षयवट के पश्चिम में पिशाच मोचन मंदिर के पास यमुना के किनारे मनकामेश्वर तीर्थ है। यहां कामेश्वरी के रूप में मां पार्वती के अलावा भैरव, यक्ष, किन्नर भी विराजमान है। कामेश्वर और कामेश्वरी का तीर्थ होने के साथ ही श्रीविद्या की तांत्रिक साधना का भी यह केंद्र रहा है। मनकामेश्वर मंदिर के परिसर में ऋण दक्षिणामुखी हनुमान, मुक्तेश्वर और सिद्धेश्वर महादेव विराजमान हैं। त्रेता में जब भगवान राम को वनवास मिला तो अयोध्या से भगवान राम माता जानकी और लक्ष्मण के साथ अक्षयवट के नीचे विश्राम किया था ।
वहीं एक मनकामेश्वर मंदिर राजधानी लखनऊ में भी है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां से कोई भी भक्त कभी खाली नहीं लौटता। यह एक अति प्राचीन, पौराणिक और कई युगों पुराना मंदिर माना जाता है। इस मंदिर की पौराणिकता और प्राचीनता को लेकर कहा जाता है कि यह मंदिर त्रेतायुग में भगवान राम के जन्म से पहले भी मौजूद था। इस मंदिर को लेकर त्रेता युग की एक सबसे बड़ी और सबसे प्रमुख मान्यता और घटना यह जुड़ी है कि जब भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण माता सीता को वन में छोडऩे के बाद वापस लौट रहे थे तब उन्होंने यहीं इसी मंदिर में रूककर भगवान शिव की अराधना की थी। माता सीता को वनवास छोडऩे के बाद लक्ष्मण के मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उठ रहे थे और मन अशांत और व्याकुल हो रहा था, इस कारण उन्होंने इस मंदिर में शिवलिंग के सामने बैठकर भगवान शिव का ध्यान लगाया और मन को शांत करके माता सीता के सकुशल अयोध्या लौट आने की मनोकामना की थी। मान्यता है कि लक्ष्मण के द्वारा भगवान शिव से की गई उस प्रार्थना के बाद उनके मन की व्याकुलता कुछ कम हुई और मन को शांति मिली।
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