वासना और संग्रह की प्रवृत्ति है भौतिकवादी

बोधकथा : आचार्य रजनीश किसी के घर ठहरे हुए थे। उस मकान की ऊपरी मंजिल पर स्विट्जऱलैंड के दो परिवार भी रहते थे। ओशो जिस भारतीय के घर में थे, उन्होंने विदेशियों के बारे में बताया कि ये बड़े भौतिकवादी लोग हैं। इन्हें सिवाय खाने-पीने और नाच-गाने के और कोई काम नहीं। रात बारह बजे तक नाचते रहते हैं। सुख-सुविधा की किसी चीज के अलावा आत्मा-परमात्मा से इन्हें कोई मतलब नहीं। बस धन कमाना और खाना-पीना, यही इनके जीवन का ध्येय है। दोबारा जब ओशो उस घर में गये तो वे विदेशी जा चुके थे। घर की गृहिणी उनसे कहने लगी—वे लोग बड़े अजीब थे। जाते समय अपने सारे बर्तन नौकरानी को दे गये। रेडियो पड़ोसियों को भेंटकर गये। वे अपने कपड़े भी मोहल्ले में बांट गये। रजनीश ने गृहिणी से पूछा—कुछ तुम्हें भी देकर गये हैं, क्या  गृहिणी बोली—नहीं, हमें तो यह सोचकर नहीं दिया होगा कि ये लोग धनी हैं, देने से कहीं नाराज ना हो जायें। गृहिणी जब यह कह रही थी तो वह मन से बड़ी दुखी प्रतीत हो रही थी। तभी गृहिणी की लड़की भीतर से एक रेशम की रस्सी लेकर आई और बोली-इसे वे लोग पीछे आंगन में बंधी छोड़ गये। मेरी मां इसे खोलकर ले आई, बहुत बढिय़ा रस्सी है, यह भारत में नहीं मिल सकती। रजनीश ने गृहिणी से कहा—भौतिकवादी, भौतिक संपन्नता से नहीं होता। पदार्थों को पकड़ लेने की कामना, वासना और संग्रह की प्रवृत्ति से भौतिकवादी होता है।

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