भारत और पाकिस्तान के लिए चुनौती है करतारपुर कॉरिडोर
भारत के गुरु नानकदेव पाकिस्तान के बाबा नानक पीर भी हैं
दूसरी बार बात आगे बढ़ी तो 2008 का मुंबई आतंकी हमला आड़े आ गया। अभी अगस्त 2018 में जब पाकिस्तान ने यह कॉरिडोर बनाने के अपने इरादे को 550वें प्रकाश पर्व से जोड़ दिया तो मामला कुछ आगे बढ़ा और समय सीमा के दबाव के आगे सारी बाधाएं इस बार बौनी होती गईं।
हालांकि बाधाएं काफी बड़ी हैं और आशंकाएं भी निराधार नहीं हैं। एक बड़ा डर अंदरखाने यह जताया जा रहा है कि इस पहल के पीछे सिख श्रद्धालुओं का दिल जीतने की चाहत से ज्यादा खालिस्तानी आतंकियों के लिए ठोस जमीन तैयार करने की पाकिस्तानी साजिश हो सकती है। अब तक की पृष्ठभूमि को देखते हुए इस डर को खारिज नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके, करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाओं से जुड़े इस मसले को ऐसी आशंकाओं पर कुर्बान नहीं किया जा सकता। इसलिए पूरी सावधानी बरतते हुए ही सही, पर कॉरिडोर बनाने की दिशा में आगे बढऩे का फैसला दोनों देशों ने किया तो ठीक ही किया। दिक्कत यह है कि सीमा पर जब-तब भड़क उठने वाला तनाव छोटी-छोटी अड़चनों को भी बड़ी बना दे रहा है। जैसे, प्रति तीर्थयात्री 20 डॉलर शुल्क लगाने की ताजा पाकिस्तानी घोषणा को ही लें। तीर्थयात्रियों की सुविधा और सुरक्षा पर आने वाले खर्च का तर्क समझ में आता है, लेकिन गरीब श्रद्धालुओं की कठिनाई का ख्याल रखना भी गुरु की विरासत संभालने वाले दोनों मुल्कों की सरकारों का ही काम है। इसका कोई रास्ता तभी निकलेगा जब दोनों पक्ष आपस में खुलकर बातचीत करें। यही काम अभी सबसे मुश्किल हो गया है। दोनों पक्षों के नेतृत्व में फिलहाल एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लगी है। जो थोड़ी-बहुत कसर बाकी रहती है वह नियंत्रण रेखा पर होने वाली हिंसक घटनाओं से पूरी हो जाती है। इन घटनाओं से जुड़े दोनों पक्षों के दावे किसी भी सूरत में ऐसा माहौल नहीं बनने देंगे जिसमें शांति और समझदारी को कोई वजन मिल सके।
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