बकरियों का चरवाहा
बोधकथा : प्रतिदिन अपने मालिक की बकरियों को दूर जंगल में चराने का काम करता था चरवाहा, वह सुकून से जीने लायक कमा लेता था। बकरियों को उसकी आवाज में ही संकेत मिल जाता था और कभी डंडे से हांकना नहीं पड़ता था। एक दिन बकरियों के मालिक ने कहा कि जंगल से जड़ी-बूटियां बीन लाओ तो तुम्हें रोज कुछ अतिरिक्त पैसा दे दूंगा। लेकिन चरवाहा यह कहकर कि मेरी सामर्थ्य की सीमा है, बात टालता रहा। एक दिन मालिक ने उसको आलसी समझ कर गुस्से में उसका हाथ पकड़ लिया तो वह आश्चर्य में पड़ गया। दरअसल, चरवाहे की जो दो हथेली थी, उसमें भी बस एक-एक अंगूठा ही था। मालिक शर्मसार हो गया और उसने पूछा कि बकरियों को कैसे नियंत्रण में रखते हो। चरवाहा बोला कि जानवर इनसान से कहीं ज्यादा संवेदनशील होते हैं। कभी रस्सी बांधनी नहीं पड़ी डंडा मारना नहीं पड़ा, बस अपनेपन की आवाज से पहचानते हैं जानवर।
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