दानवों से श्रेष्ठ हैं देव
बोधकथा : देव और दानवों में एक बार विवाद छिड़ा कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। दोनों ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने दोनों वर्गों को सांत्वना दी। दूसरे दिन सभी को भोजन के लिए बुलाया गया। ब्रह्माजी ने मंत्र शक्ति से दोनों वर्गों को कोहनियों पर से हाथ मुडऩे में अवरोध उत्पन्न कर दिया। दैत्य वर्ग के लोग हाथ ऊपर ले जाते। ऊपर से ग्रास पटकते। कोई ग्रास मुंह में जाता, कोई इधर-उधर गिरता। पूरा चेहरा गन्दा हो जाता। इस स्थिति में उन्हें भूखे रहकर दुखी मन से विवशतापूर्वक उठना पड़ा। पर देवों ने अपने सहज स्वभाव के अनुसार हल निकाल लिया। एक ने अपने हाथ से भोजन ग्रास तोड़ा तथा उसे दूसरे के मुंह में डाल दिया। दूसरे ने तीसरे के मुंह में। इस प्रकार पूरी मंडली ने भरपेट भोजन कर लिया। ब्रह्मा जी ने दोनों को बुलाया और कहा कि जो केवल अपने लिए ही सोचता और करता है वह असंतुष्ट रहता है किन्तु जिसे दूसरों के हित का ध्यान है उसे संतोष भी मिलता है, यश भी और सम्मान भी मिलता है। इस कसौटी पर देव खरे उतरे हैं और देव दानवों से श्रेष्ठ हैं।
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