'संघ' के स्वयंसेवकों का 'दंड प्रहार'
जानकारी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक प्रत्येक माह की 16 तारीख को स्वयंसेवक दंड प्रहार दिवस के रूप में मनाते हैं और हर 16 दिसम्बर को दंड महाप्रहार दिवस मनाते हैं। दंड प्रहार लगाने के पीछे अनेक उद्देश्य कार्य करते हैं। दंड अर्थात लाठी, प्रहार भांजना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ माह के प्रत्येक 16 तारीख को दंड प्रहार दिवस के रूप में लाठी का विधिवत प्रयोग करते हैं। वह दंड प्रहार लगाकर अपने शारीरिक क्षमता का आकलन करते हैं। अपनी रक्षा लाठी के माध्यम से करने का अभ्यास करते हैं। लाठी एक ऐसा माध्यम है, जिसके कुशल प्रयोग से ढेरों दुश्मनों को परास्त कर सकते हैं। उनका सामना सीमित संसाधनों के साथ भी किया जा सकता है। यह दिन प्रत्येक स्वयंसेवक के लिए अपने शारीरिक आकलन करने का दिन होता है। कुशलतापूर्वक दंड प्रहार लगाकर वह अपनी संख्या लिखते हैं, जिससे एक-दूसरे की संख्या की जानकारी होती है। दंड के लिए कोई कानूनन प्रतिबंध नहीं है। यही कारण है कि स्वयंसेवक कानून का सम्मान करते हुए दंड को अपनी शक्ति के रूप में घर में रखते हैं। एक बार की बात है—एक समय सौ भारतीयों पर चार सौ से अधिक चीन के लुटेरों ने हमला किया। उन भारतीयों ने चीन के लुटेरों को अपनी लाठी के बल पर मार भगाया था। उन हमलावरों ने लाठी का कुशल प्रयोग पहली बार देखा था। जब वह अपने देश लौट कर गए तो उन्होंने कराटे के साथ लाठी का प्रयोग करना सीखा। आज भी उनके संस्कृति में कराटे तथा लाठी का प्रयोग देखा जाता है। शारीरिक अभ्यास तथा अपने शरीर के स्टैमिना को बढ़ाने के लिए भी दंड प्रयोग किया जाता है। एक निश्चित समय में अधिक से अधिक स्फूर्ति के साथ दंड प्रयोग करने से व्यक्ति में ताकत का विकास होता है। उस व्यक्ति के शरीर की मांसपेशियां जागृत होती है। माना जाता है नियमित दंड प्रयोग करने से व्यक्ति का शरीर स्वस्थ रहता है। दंड प्रहार लगाने से सांस, हृदय, कोलेस्ट्रोल सम्बन्धी बीमारियां दूर रहती हैं, यह शारीरिक मजबूती के लिए, स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए अति लाभकारी है। प्राचीन समय में घातक अस्त्र-शस्त्र नहीं हुआ करते थे। लाठी एकमात्र प्रहार का साधन हुआ करता था। अपनी संस्कृति के पूर्वजों को देखते हैं, तो हमें मालूम होता है उनके हाथों में एक लाठी अवश्य रहती थी। यह कोई संस्कृति या विचारधारा नहीं थी। वह अपनी रक्षा के लिए तथा किसी भी प्रकार के अचानक हुए हमले से बचाव के लिए अपने साथ रखते थे। कितनी ही ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं, जब जन समुदाय एक साथ होकर आपस में लड़ बैठती थी। ऐसे समय में उस व्यक्ति का पलड़ा भारी होता था जिसके हाथ में लाठी होती है। लाठी के द्वारा लगी चोट कई दिनों तक याद रहती थी। मास्टर जी भी लाठी के छोटे रूप का प्रयोग करते थे अपने विद्यार्थियों के लिए। विद्यार्थी पिटाई के डर से मास्टर जी का अनुकरण किया करते थे। पुरानी कहावत है कि लाठी के डर से भूत भी भागता है या कहावत उस समय सत्य थी। दंड का कुशल प्रयोग करने से प्रतिस्पर्धी के प्राण भी लिए जा सकते हैं। दंड के प्रहार से जिस प्रकार चोट असहनीय हो जाती है। उसके कुशल प्रयोग से यह प्रहार प्राणघातक भी सिद्ध होती है। इसके लिए आपको नियमित अभ्यास करना पड़ता है। उन सूक्ष्म बारीकियों को सीखना होता है जिससे सामने वाला व्यक्ति परास्त हो जाए। दंड का प्रयोग अधिकतर चोट मारने के उद्देश्य से किया जाता है। कई समय ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब सामने वाला व्यक्ति आप के प्राण लेने को आतुर होता है। ऐसे समय में दंड का कुशल प्रयोग करते हुए उसके हमले से पूर्व आप उस की जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। कुशल प्रयोग में गर्दन या शरीर के ऐसे अंग पर प्रहार करने से हमलावर रणभूमि में मृत्यु को प्राप्त होता है। दंड को रखना या उससे प्रहार करना तब तक कानूनी है, जब तक सामने वाले व्यक्ति का अहित हानि नहीं होता। किसी प्रकार का जख्म या खून नहीं निकलता। तब तक आप दंड का प्रयोग कर सकते हैं। ध्यान रहे दंड का प्रयोग उन्हीं स्थितियों में करना चाहिए, जब तक आत्मरक्षा का प्रश्न नहीं खड़ा होता।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें