धमतरी की हवा में फूलों की सुगंध
जानकारी। बागतराई रोड पर आदर्श मुक्तिधाम सोरिद नगर है। नौ साल पहले इसका निर्माण वार्ड में हुआ है। पहले यह मुक्तिधाम सामान्य था, लेकिन पिछले कुछ सालों से इस मुक्तिधाम को आकर्षक बनाने वार्डवासियों ने श्रमदान करना शुरू कर दिया। मुक्तिधाम में कई कार्य करने युवकों की सेवा संगठन बना, जो अपने मेहनत से आज नाम के अनुसार वास्तव में यह मुक्तिधाम शहर व जिले के लिए किसी आदर्श से कम नहीं है। प्रवेश द्वार पर यमदेव का बड़ा आकर्षक पेटिंग, दीवारों पर चित्र व लेखन है। आगे बढ़े तो पाथवे, चहूं ओर गार्डन, बेहतर पेयजल सुविधा, विभिन्न प्रकार के फूल, पेड़-पौधे हैं। इससे यहां का वातावरण पूरी तरह से हरियाली हो गई है। यह मुक्तिधाम गार्डन के स्वरूप में बन गया है। आकर्षक मुक्तिधाम में कहीं भी बदबू नहीं है। यहां लगे विभिन्न प्रकार के फूल-पौधों से यहां शुद्ध हवा व फूलों की महक बना रहता है, ऐसे में लोग दो पल सुकून के बीताने यहां आते हैं। मार्निंग वाक, शाम को टहलने युवक समेत हर वर्ग यहां पहुंचते हैं। शांत वातावरण में कुछ लोग यहां योग भी करते हैं। आदर्श सेवा समिति अध्यक्ष अधिवक्ता नंद कुमार देवांगन, सचिव रेवती रमन तिवारी, मीडिया प्रभारी नंद किशोर यादव, संतोष देवांगन, खूबलाल सिन्हा, कीर्तन राम विश्वकर्मा, कुशल देवांगन, पुरूषोत्तम देवांगन, नारायण देवांगन, नरेश सेन, पवन गजेन्द्र, प्रहलाद मंडावी आदि ने बताया कि इस मुक्तिधाम को बनाने लंबे समय से समिति के पदाधिकारी व सदस्यों समेत वार्डवासी यहां श्रमदान करते हैं। यहां की सफाई करते हैं। पेड़-पौधों व फूलों की सिंचाई कर सहेजते हैं। यहां हर रोज सुबह व शाम को समिति के लोग जाते हैं। वार्डवासी भी यहां पहुंचते हैं। जरूरत पड़ने पर यहां स्वयं की राशि से काम भी कराते हैं, ताकि यह आदर्श मुक्तिधाम बन सके। वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ का धमतरी जिला अपने साल के जंगलों के लिए जाना जाता है। अतीत में यहां के जंगलों से अंग्रेज साल के स्लीपर की सप्लाई पूरे एशिया में किया करते थे। धमतरी के इन्ही साल के जंगलों में मिलता है सरई बोड़ा। साल को छत्तीसगढ़ में सरई कहा जाता है, जबकि बोड़ा स्थानीय आदिवासियों का दिया हुआ नाम है। ये खोज भी आदिवासियों की ही है। वनोपज पर निर्भरता के कारण वनवासी यहां पैदा होने वाले हर खाद्य पदार्थ के बारे में जानते हैं। बोड़ा भी उन्ही में से एक है। बोड़ा दरअसल एक फंगस है, वैज्ञानिकों ने इसका बॉटिनिकल नाम शोरिया रोबुस्टा रखा है। वैसे इसे छत्तीसगढ़ का काला सोना भी कहा जाता है। साल के जंगल में जब पहली बरसात से मिट्टी भीगती है और उसके बाद जो पहली उमस पड़ती है, तब साल वृक्ष के जड़ एक खास तरह का द्रव छोड़ते हैं, फिर जमीन पर गिरे साल के सूखे पत्ते के नीचे ये फंगस बनता है, जिसे बोड़ा कहते हैं। आदिवासी इसे किसी भी लकड़ी की मदद से जमीन से सुरक्षित बाहर निकालते हैं। चूंकि इसकी खेती नहीं की जाती, यह प्राकृतिक रूप से उगता है इसलिये यह तीन सौ रुपये प्रति किलो से अधिक की कीमत बिकता है।
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