सुखी वही है जो खुश है
प्रेरक कथा : एक गरीब ने राजा से निवेदन किया कि वह बहुत गरीब है, उसके पास कुछ भी नहीं और उसे मदद चाहिए। राजा दयालु था। उसने पूछा कि मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं, गरीब ने कहा कि छोटा-सा भूखंड चाहिये मदद कर दीजिये। राजा ने कहा कि कल सूर्योदय के समय तुम यहां आना और दौडऩा, जितनी दूर तक दौड़ पाओगे, वो पूरा भूखंड तुम्हारा। लेकिन ध्यान रहे, जहां से तुम दौडऩा शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा। अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा। गरीब खुश हो गया। सुबह हुई और सूर्योदय के साथ दौडऩे लगा। सूरज सिर पर चढ़ आया फिर भी उसका दौडऩा नहीं रुका। थोड़ा थकने लगा, तब भी नहीं रुका। शाम होने लगी तो उसको याद आया कि सूर्यास्त तक लौटना भी है, अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा। गरीब आदमी ने वापस दौडऩा शुरू किया, लेकिन काफी दूर चला गया था और सूरज पश्चिम की तरफ हो चुका था। उसने पूरा दम लगा दिया लेकिन समय तेजी से बीत रहा था और थकान के चलते वह तेजी से दौड़ नहीं पा रहा था। अंतत: हांफते-हांफते वह थक कर गिर पड़ा और गरीब आदमी की वहीं मौत हो गयी। राजा यह सब देख रहा था, राजा सहयोगियों के साथ वहां गया और राजा ने उस मृत शरीर को गौर से देखा और सिर्फ इतना कह कि इसे सिर्फ दो गज जमीन की जरूरत थी, नाहक ही इसने इतना दौड़ लगाया। यानि की लालच इतना बढ़ गया कि गरीब आदमी को जहां लौटना था, वह लौट नहीं पाया। इस कथा से सीख यह मिलती है कि हमारी ज़रूरतें तो सीमित हैं, पर चाहतें असीमित, इसलिये सिर्फ जरूरतें पूरा करिये, अनंत सुख न किसी को मिला है और न किसी को मिलेगा। सुखी वही है जो खुश है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें