रोमांचित कर देने वाली है ऋषि श्रृंगी की कथा
कथा : प्राचीन वैदिक ॠषियों में प्रमुख ॠषि हैं कश्यप, जो ब्रह्मपुत्र मरीचि के पुत्र बताये गये हैं और मरीचि को सबसे प्राचीन ऋषि माना गया है। कश्यप ऋषि को धार्मिक व रहस्यात्मक चरित्र वाला बताया गया है। श्रृंगी ऋषि या ऋष्यशृंग वाल्मीकि रामायण में एक पात्र हैं, जिन्होंने राजा दशरथ के पुत्र प्राप्ति के लिए अश्वमेध यज्ञ तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराये थे। शास्त्रों में श्रृंगी ऋषि को विभाण्डक ऋषि के पुत्र और कश्यप ऋषि के पौत्र बताये गये हैं। श्रृंगी के माथे पर सींग (संस्कृत में शृंग) जैसा उभार होने के कारण उनका नाम श्रृंगी पड़ा। ऋष्यशृंग विभाण्डक तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे। विभाण्डक ने इतना कठिन तप किया कि देवतागण भयभीत हो गये और उनके तप को भंग करने के लिए उर्वशी को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर उनके साथ संसर्ग किया जिसके फलस्वरूप ऋष्यशृंग की उत्पत्ति हुयी। ऋष्यशृंग के माथे पर एक सींग (शृंग) था, अतः उनका यह नाम पड़ा। ऋष्यशृंग के पैदा होने के तुरन्त बाद उर्वशी का धरती का काम समाप्त हो गया तथा वह स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान कर गई। इस धोखे से विभाण्डक इतने आहत हुये कि उन्हें नारी जाति से घृणा हो गई तथा उन्होंने अपने पुत्र ऋष्यशृंग पर नारी का साया भी न पड़ने देने की ठान ली। इसी उद्देश्य से वह ऋष्यशृंग का पालन-पोषण एक अरण्य में करने लगे। वह अरण्य अंगदेश की सीमा से सटा हुआ था। उनके घोर तप तथा क्रोध के परिणाम अंगदेश को भुगतने पड़े जहाँ भयंकर अकाल छा गया। अंगराज रोमपाद (चित्ररथ) ने ऋषियों तथा मंत्रियों से मंत्रणा की तथा इस निष्कर्ष में पहुँचे कि यदि किसी भी तरह से ऋष्यशृंग को अंगदेश की धरती में ले आया जाता है तो उनकी यह विपदा दूर हो जायेगी। अतः राजा ने ऋष्यशृंग को रिझाने के लिए देवदासियों का सहारा लिया क्योंकि ऋष्यशृंग ने जन्म लेने के पश्चात् कभी नारी का अवलोकन नहीं किया था। और ऐसा ही हुआ भी। ऋष्यशृंग का अंगदेश में बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया गया। उनके पिता के क्रोध के भय से रोमपाद ने तुरन्त अपनी पुत्री शान्ता का हाथ ऋष्यशृंग को सौंप दिया। अयोध्या के राजा दशरथ ने जब पुत्र प्राप्ति के लिए अश्वमेध यज्ञ करवाने का निश्चय किया तब सुमंत ने उन्हें विष्णु के अवतार संत कुमार द्वारा राजा पूर्वाकल को ऋषियों की कही एक कथा सुनाई जो ऋष्यश्रृंग से ही जुड़ी थी। आश्चर्यजनक बात यह है कि राजा रोमपाद ने ऋष्यश्रृंग से अपनी जिस दत्तक पुत्री का विवाह किया था वह राजा दशरथ की पुत्री व श्रीराम की बहन थीं।
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