'मन' को 'बाड़े' में बंद कर देना चाहिए

विचार। रामकृष्ण परमहंस महान संत, आध्यात्मिक गुरु व विचारक थे। रामकृष्ण परमहंस ने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया, उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया। स्वामी रामकृष्ण मानवता के पुजारी थे। रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे कि एक हाथी को नहला-धुलाकर छोड़ दो तब भी वह मिट्टी में खेलेगा और शरीर को फिर से गंदा कर लेगा। कोई उस पर बैठे तो उसका शरीर भी गंदा अवश्य होगा, लेकिन यदि हाथी को स्नान कराने के बाद बाड़े में बांध दिया जाये तब फिर हाथी अपना शरीर गंदा नहीं कर सकेगा। इसी प्रकार मनुष्य का मन भी एक हाथी के समान है। एक बार ध्यान, साधना और भगवान के भजन से वह शुद्ध हो गया तो उसे स्वतंत्र नहीं कर देना चाहिए। इस संसार मे पवित्रता भी है, गंदगी भी है। मन का स्वभाव है वह गंदगी में जायेगा और मनुष्य देह को दूषित करने से नहीं चूकेगा। इसलिये उसे गंदगी से बचाये रखने के लिये एक बाड़े की जरूरत होती है, जिसमें वह घिरा रहे। गंदगी की सम्भावनाओं वाले स्थानों में न जा सके। ईश्वर भजन उसका निरंतर ध्यान एक बाड़ा है, जिसमें मन को बंद रखा जाना चाहिये, तभी सांसारिक संसर्ग से उत्पन्न दोष और मलिनता से बचाव सम्भव है। भगवान को बार-बार याद रहोगे तो मन अस्थायी सुखों के आकर्षण और पाप से बचा रहेगा और अपने जीवन के स्थायी लक्ष्य की याद बनी रहेगी। उस समय दूषित वासनाओं में पड़ने से स्वत: भय उत्पन्न होगा और मनुष्य उस पापकर्म से बच जाएगा, जिसके कारण वह बार-बार अपवित्रता और मलिनता उत्पन्न कर लिया करता है।

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