मनुष्य जीवन में उत्तम दृष्टिकोण जरूरी

विचार। पेड़ की जड़ें मजबूत व गहरी होती हैं तो पेड़ उम्र भर नहीं सूखते। मौसम अनुकूल न होने पर भी पेड़ हरा-भरा ही बना रहता है। वैसे ही अंतस् में श्रद्धा व मन में विश्वास हो तो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हमारी प्रफुल्लता को कोई छीन नहीं सकता है। जीवन में उल्लास सुख-साधनों से नहीं, बल्कि दृष्टिकोण के बदलने से आता है। जिन व्यक्तियों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण, उन्नत, उत्कृष्ट व उत्तम होता है-वह कभी विपत्ति व अतृप्ति से त्रस्त नहीं होते, बल्कि अपने जीवन की राहें ढूंढ ही लेते हैं। भोग, विलास की और आंतरिक आनंद की राहें अलग-अलग हैं। विलास की चाह जिन्हें होती है, वह सुख के साधनों के पीछे दौड़ते, थकते व परेशान होते हैं। उनके न मिल पाने पर अतृप्ति व उनके मिल जाने पर विपत्ति, ऐसे लोगों के जीवन की परिभाषा बन जाती है। जबकि आनंद की अभीप्सा रखने वालों को किसी के पीछे नहीं दौड़ना पड़ता। वह तो मात्र अपने व्यक्तित्व के परिष्कार में जुटते हैं और परिष्कार की प्रक्रिया से प्राप्त पवित्रता को अनुभूत कर आंतरिक आनंद का रसास्वादन करते हैं। आंतरिक पवित्रता से प्राप्त सौंदर्य व मधुरता की तुलना, किसी सांसारिक वस्तु से नहीं की जा सकती है। बाहर की दौड़ अहंकार की दौड़ है और इसीलिये वह विपत्ति व अतृप्ति का दंड अपने साथ लाती है। अंदर की स्थिरता व दृष्टिकोण को गरिमामय बनाने पर निर्भर है और उसके साथ आंतरिक आनंद का पारितोषिक जुड़ा हुआ है। जीवन का आनंद लेना हो तो उसके लिए अंतस् की गहराई में उतरने की जरूरत है, समुद्र तल से मोती ढूंढ लाने का साहस हमें दिखाना होगा, तभी उस साहस की परिणत आत्मिक आनंद की प्राप्ति के रूप में हो पाएगी, तभी मन पवित्र हो पायेगा, यानि आध्यात्मिक आनंद ही मोक्ष मार्ग है।


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