कहां रहते हैं भगवान

अध्यात्म। भगवान कहां रहता है, भगवान के पास हम किस तरीके से जायेंगे, भगवान में किस तरीके से लय होंगे। भगवान विभु है और व्यापक है, सभी में समाया हुआ है। भगवान का दृष्टिकोण बड़ा विशाल है, स्वयं के लिये कुछ चाहता है कि नहीं। हमसे और आपसे भगवान क्या चाह सकता है और आप और हम भगवान को क्या दे सकते हैं। हम तो एक जर्रा हैं, कण हैं और वह तो ब्रह्मांड के बराबर विस्तृत है। हम भगवान को कुछ नहीं दे सकते। फिर क्या दे सकते हैं। हमको अपने आप को, अपनी हस्ती को भगवान को प्रदान करना पड़ेगा। अपनी हस्ती को क्यों। अपनी हस्ती, जो कि पानी का एक बबूला है, जो अपने चारों ओर हवा का एक घेरा बना करके बैठा है। उसके अंदर हवा भर दी गई है। हवा के भर जाने के कारण पानी का जो बबूला था, उसने अपना घेरा अलग बना लिया, अपना दायरा अलग बना लिया। लोगों ने उसका मजाक उड़ाया कि देखो, वो बबूला चल रहा है। अब बबूला समाप्त हो गया। जब कोई अलग हो जाता है तो पानी का बबूला हो जाता है। क्षण भर में मजाक की चीज बन जाती है। कभी उसकी सम्पदायें बनती हैं और कभी उसकी सम्पदा बिगड़ती है, नष्ट हो जाती है। ये सम्पदायें क्या हैं। यह हमारा मैं का एक छोटा सा दायरा हमने हवा का भर दिया और वह बबूला अलग हो गया। किससे, पानी से अलग हो गया। हवा से अलग हो गया, लहरों से अलग हो गया। तब दिखाई पड़ने लगा कि इससे भिन्न होने के माद्दे को, भिन्न होने की वृत्ति को अब हम समाप्त करेंगे और पानी की लहर बनकर रहेंगे और पानी की धारा बनकर रहेंगे। पानी का बबूला हमारा जो अलग नाम मिला, हम उसे खत्म करेंगे। यह क्या है, संकल्प है। यह योग का संकल्प है, जोड़ देने का संकल्प है। बबूले ने संकल्प ​​किया कि अब हम अपना छोटा सा दायरा खतम करेंगे और पानी की धारा में मिल करके, लहरों में सम्मिलित होकर आगे चले जाएंगे। अपनी हस्ती को मिटा देंगे, योग इसी का नाम है। योग के लिये कई प्रकार के क्रियाकलाप करने पड़ते हैं और कर्मकांड करने पड़ते हैं। कर्मकांड साधन हैं, साध्य नहीं हैं, जैसा कि आम लोगों ने समझ लिया है।

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