विनम्रता से करें समाज की सेवा

बोधकथा। शिष्यों की शिक्षा पूरी होने के बाद संत ने उन्हें अपने पास बुलाया और कहा कि प्यारे शिष्यों समय आ गया है अब तुम सबको समाज के कठोर नियमों का पालन करते हुए विनम्रता से समाज की सेवा करनी होगी। एक शिष्य ने कहा, गुरुदेव हर समय विनम्रता से काम नहीं चलता! थोड़ी देर चुप रहने के बाद संत बोले-ज़रा मेरे मुँह के अंदर झाँक कर देख के बताओ अब कितने दाँत बचे हैं। बारी-बारी से शिष्यों ने संत का मुँह देखा और एक साथ बोले-आपके सभी दाँत टूट चुके हैं। संत ने कहा जीभ है कि नहीं? जीभ जन्म से मृत्यु तक साथ रहती हैं। जीभ इसलिए नहीं टूटती क्योंकि उसमें लोच है, वह विनम्र होकर अंदर पड़ी रहती हैं, उसमें किसी तरह का अहंकार नहीं है उसमें विनम्रता से सब कुछ सहने की शक्ति है, इसलिए वह हमारा साथ देती है जबकि दाँत बहुत कठोर होते हैं, उन्हें अपनी कठोरता पे अभिमान होता है, वह जानते हैं उनके वजह से ही इंसान की खूबसूरती बढ़ती है, इसलिए वह बहुत कठोर होते हैं, उनका ये अहंकार और कठोरता उनकी बर्बादी का कारण बनती हैं, इसलिए तुम्हें अगर समाज की सेवा अच्छे से करनी हैं, जीभ की तरह बनो। बता दें विनम्रता एक भाव है और भाव का सम्बन्ध मन से होता है। विनम्रता व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का उदाहरण है व्यक्ति जितना अधिक बुद्धिमान होगा उतना ही अधिक अनुशासित व्यवहार करेगा, तात्पर्य यह हुआ कि विनम्रता व्यक्ति के पालन-पोषण से विकसित होती है यद्यपि व्यक्ति की परवरिश पर उसकी संस्कृति का प्रभाव भी अवश्य पड़ता है, लेकिन कभी-कभी अत्यधिक अनुशासित व्यक्ति भी खींझ खा जाता है इस प्रकार विनम्रता एक आंतरिक लक्षण हैं जो अनायास ही व्यवहार का भाग बन जाता है।

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