रूस ने भारत को और 'तेल' देने से किया इनकार

विचार। रूस और यूक्रेन जंग के 106 से अधिक दिन बीत चुके हैं। रूस के हमलों से यूक्रेन के शहर तबाह हो रहे हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की अभी भी रूसी राष्ट्रपति से शांति की बात के लिए तैयार हैं, लेकिन, लगता है पुतिन को ये मंजूर नहीं है। इस बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन  ने अपनी तुलना 17वीं सदी के रूसी सम्राट पीटर द ग्रेट से की है। पुतिन ने यूक्रेन पर अपनी सैन्य कार्रवाई को ठीक वैसा ही बताया जैसा पीटर द ग्रेट के समय में स्वीडन पर किया गया था। पुतिन के मुताबिक, अपने क्षेत्र को ‘वापस लेने’ और ‘अपना बचाव’ करने के लिए ये देश की जरूरत थी। युवा उद्यमियों और वैज्ञानिकों के साथ एक बैठक में रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि पीटर द ग्रेट ने 21 वर्षों तक महान उत्तरी युद्ध छेड़ा। उन्होंने लंबे समय तक स्वीडन के साथ युद्ध किया। वहीं दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री जब यूरोप के 7 देशों के नेताओं से मिले तो हर नेता ने कोशिश की कि भारत रूस की आलोचना करे लेकिन भारत का रवैया यह रहा कि भत्र्सना से क्या लाभ होगा? क्या युद्ध बंद हो जाएगा? इतने पश्चिमी देशों ने कई बार रूस की आलोचना की, उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित कर लिए और उस पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगा दिए, फिर भी यूक्रेन युद्ध की ज्वाला लगातार भभकती जा रही है। भारत की नीति यह थी कि रूस का विरोध या समर्थन करने की बजाय हमें अपनी ताकत युद्ध को बंद करवाने में लगानी चाहिए। अभी युद्ध तो बंद नहीं हुआ है लेकिन यूएनओ के जनरल सेक्रेटरी एंटोनियो गुटरेस के प्रयत्नों से बीते दिनों सुरक्षा परिषद में सर्वसम्मति से यूक्रेन पर एक प्रस्ताव पारित कर दिया गया, उसके समर्थन में नाटो देशों और भारत जैसे सदस्यों ने तो हाथ ऊंचा किया ही है, रूस ने भी उसके समर्थन में वोट डाला है। सुरक्षा परिषद का एक भी स्थायी सदस्य किसी प्रस्ताव का विरोध करे तो वह पारित नहीं हो सकता। रूस ने वीटो नहीं किया। क्यों नहीं किया? क्योंकि इस प्रस्ताव में रूसी हमले के लिए ‘युद्ध’, ‘आक्रमण’ या ‘अतिक्रमण’ जैसे शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। उसे केवल ‘विवाद’ बताया गया है। इस ‘विवाद’ को बातचीत से हल करने की पेशकश की गई है। यही बात भारत हमेशा कहता रहा है। इस प्रस्ताव को नार्वे और मेक्सिको ने पेश किया था। यह प्रस्ताव तब पास हुआ है, जब सुरक्षा परिषद का आजकल अमेरिका अध्यक्ष है। वास्तव में इसे हम भारत के दृष्टिकोण को मिली विश्व स्वीकृति भी कह सकते हैं। यदि हमारे नेताओं में आत्मविश्वास होता तो इसका श्रेय भारत को मिल सकता था और इससे सुरक्षा-परिषद की स्थायी सदस्यता मिलने में भी भारत की स्थिति मजबूत हो जाती। इस प्रस्ताव के बावजूद यूक्रेन-युद्ध अभी बंद नहीं हुआ है। भारत के लिए अभी भी मौका है। रूस और नाटो राष्ट्र, दोनों ही भारत से घनिष्टता बढ़ाना चाहते हैं और दोनों ही भारत का सम्मान करते हैं। यदि प्रधानमंत्री मोदी अब भी पहल करें तो यूक्रेन-युद्ध तुरंत बंद हो सकता है। बताते चलें कि रूस की सबसे बड़ी ऑयल निर्माता कंपनी रोसनेफ्ट ने भारत की दो सरकारी तेल कंपनियों के साथ कच्चे तेल की डील साइन करने से इनकार कर दिया है, क्योंकि रोसनेफ्ट पहले ही कुछ और ग्राहकों के साथ तेल सप्लाई की डील कर चुका है। इसके बाद से उसके पास भारतीय कंपनियों को देने के लिए तेल नहीं बचा है। यूक्रेन पर हमले के चलते पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके बाद से भारतीय कंपनियां रूस से सस्ता तेल खरीदने की कोशिश कर रही हैं। सिर्फ देश की सबसे बड़ी कंपनी आईओसी (इंडियन ऑयल कॉर्प) ने रोसनेफ्ट के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो हर महीने 6 मिलियन बैरल रूसी तेल खरीदेगा, जिसमें 3 मिलियन बैरल अधिक खरीदने का विकल्प होगा। गौरतलब है कि बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कई विकसित देशों के विदेश मंत्री व समकक्ष भारत आये थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से ही भेंट की थी।

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