आखिर दुष्टों का अन्याय कब तक सहेगा हिंदू समाज
विचार। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का 21 जून 1940 को निधन हो गया था, यह एक संयोग है कि 21 जून को ही विश्व योग दिवस मनाया जाता है। 15 वर्ष हेडगेवार का का शरीर तोड़ परिश्रम, नाम मात्र विश्राम, स्वास्थ्यप्रद आहार की दुर्लभता और अपनी रुग्णता की ओर ध्यान न देकर काम में लगे रहना। डॉ. साहब बीमार रहते हुए भी स्वस्थ मनुष्यों की अपेक्षा 8 से 10 गुना काम कर लेते थे। सर्वविदित है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शुरुआत 1925 में विजयदशमी के दिन मोहिते के बाड़ा में हुई थी। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार देश के लिये बहुत चिंतित थे। हेडगेवार का कहना था कि आज चारों ओर से आवाज आ रही है कि अहिंदू समाज बहुसंख्यक हिंदुओं पर आक्रमण कर रहे हैं। परिस्थिति ऐसी क्यों हैं? अहिंदू समाज के लोग हमसे मिल जुलकर क्यों नहीं रह सकते? यह तो दूर उल्टे वह हमें सताते हैं और हम निरर्थक चिल्लाते हैं कि हम क्या करें? हमारा कोई पता नहीं क्या यह क्रंदन ठीक है? अंग्रेजी में एक कहावत है– God helpes those who help themselvees, जिसका अर्थ है, ईश्वर उनकी सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं। मेरी समझ में यह नहीं आता कि भगवान हमारी सहायता क्यों करें? उन्हें हम पर दया क्यों आनी चाहिए हम लोग स्वयं अपनी कौन सी सहायता कर सकते हैं कि हमें भगवान बचाने के लिए दौड़े आए। कुछ भी नहीं। गीता में भगवान कहते हैं कि वह परित्राणाय साधुनाम अवतार लेंगे किंतु पादुकोण साधु किसे कहा जा सकता है? जिन्हें ना समाज या राष्ट्र की चिंता है ना धर्म या संस्कृति की और ना जिन्हें निरे व्यक्तिगत स्वार्थ के सिवा कुछ सोचता है। ऐसे दुष्टों के लिए संहार के लिए ही परमेश्वर का अवतार हुआ करता है। हिंदू समाज में तो यह सभी गुण पराकाष्ठा तक पहुंच सकते हैं। यदि हिंदुओं की कम से कम आधे जनसंख्या साधुता के उपर्युक्त भावों से भरी होती तो इस महान जाति पर निष्ठुर आघात करने का दुस्साहस कोई न करता। फिर भगवान स्वयं धर्म संरक्षण करने के लिए हमारे बीच उपस्थित हो जाते। किंतु आज की अवस्था में हम भगवान की सहायता की आशा नहीं कर सकते। यह समझ कर की किस जाति में स्वार्थी तथा दुर्लभ अर्थात पापियों की ही भीड़ है भगवान हम लोगों से अपना मुंह मोड़ लेंगे। यदि भगवान का यदाकदाचित अवतार हुआ भी तो हमारी रक्षा के लिए नहीं अपितु हम को नष्ट करने के लिए होगा, क्योंकि दुष्टों का विनाश करना ही उनका प्रण है। जब तक हम में व्यक्तिगत स्वार्थ, दुर्बलता और समाज हितों के प्रति उदासीनता इसी प्रकार रहेगी और जब तक हम सज्जन नहीं बनेंगे तब तक हमें दुष्ट समझकर भगवान हमारे नाश के लिए ही सहायक होंगे। हां जब हम वास्तव में साधु हो जाएंगे राष्ट्र धर्म एवं समाज के कल्याण मैं अपना सब कुछ होम कर देने पर उतारू हो जाएंगे तभी संभवता भगवान हमारी सहायता करेंगे। हिंदू जाति का सुख ही मेरा और मेरे कुटुंब का सुख है। हिंदू जाति पर आने वाली विपत्ति हम सभी के लिए महासंकट है और हिंदू जाति का अपमान हम सभी का अपमान है। ऐसी आत्मीयता की वृत्ति हिंदू मात्र के रोम–रोम में व्याप्त होनी चाहिए, यही तो है राष्ट्र धर्म का मूल मंत्र। जिस अपने देश और अपने देशबांधव के सिवा और किसी का मुंह नहीं अपने धर्म और धर्म–कार्य के अतिरिक्त कोई व्यवसाय नहीं, अपने हिंदू धर्म की अभिवृत्ति कर हिंदू राष्ट्र के प्रताप सूर्य को तेजस्वी रखने के अतिरिक्त अन्य कोई स्वार्थ लालसा नहीं उसके हृदय में भय चिंता या निरुत्साह पैदा करने का सामर्थ्य संसार भर में किसी में नहीं हो सकता। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जिस लिये चिंतित थे, वह समस्या आज भी मौजूद है। आज भी दुष्ट देश को काफी क्षति पहुंचा रहे हैं, इसके लिये हिंदुओं को एक होना होगा और जो अभारतीय हैं उनका डंटकर मुकाबला करना होगा, आखिर दुष्टों का अन्याय कब तक सहेगा हिंदू समाज।
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