वीरों के वीर : बैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को है परशुराम का जन्मदिवस
धर्म : वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था। ब्रम्हाजी के सात मानस पुत्रों में प्रमुख महर्षि भृगु के चार पुत्र धाता, विधाता, च्यवन और शुक्राचार्य तथा एक पुत्री लक्ष्मी हुईं। च्यवन के पुत्र मौर्य तथा मौर्य के पुत्र ऋचीक हुए। महर्षि जमदग्नि इन्हीं ऋचीक के पुत्र थे। वे अत्यंत तेजस्वी एवं धर्मपरायण ऋषि थे। इनका विवाह महाराजा प्रसेन्नजित (जिन्हें महाराज रेणु भी कहा जाता था) की पुत्री रेणुका से हुआ। पति परायणा माता रेणुका ने पाँच पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम क्रमशः वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु तथा राम रखे गए। राम सबसे छोटे होने पर भी बाल्यकाल में ही अत्यंत तेजस्वी प्रतीत होते थे। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि पुत्रोत्पत्ति के निमित्त इनकी माता और विश्वामित्र जी की माता को प्रसाद मिला था, जो दैववशात् आपस में बदल गया था। इस कारण रेणुका सुत परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे, जबकि विश्वामित्र जी क्षत्रिय कुलोत्पन्न होते हुए भी ब्रह्मर्षि हो गए। बाल्यावस्था में ही राम ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने इन्हें कभी कुंठित न होने वाला अमोघ परशु (फरसा) प्रदान किया। फरसा कंधे पर रखकर विचरण करने के कारण इनका नाम परशुराम हो गया। बालक परशुराम न केवल मातृभक्त थे, अपितु पिता के भी परम आज्ञाकारी थे। इनकी बुद्घि की परीक्षा इनकी किशोरावस्था में ही हुई, जिसमें इन्होंने अपनी विलक्षणता सिद्घ की। एक बार जब माता रेणुका जल लेकर देर से लौटीं और महर्षि जमदग्नि का हवन काल बीत गया, तो उन्होंने क्रोधावेश में आकर वहाँ उपस्थित चारों पुत्रों को अपनी माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दे डाली। जब उन्होंने पिता की इस निदारूण आज्ञा का पालन नहीं किया, तो उनकी क्रोधाग्नि और भड़क उठी। जैसे ही राम वन से समिधा लेकर लौटे ऋषि जमदग्नि ने उन्हें भी माता सहित अपने चारों सहोदरों के वध की आज्ञा दी। परशुराम तो अपने पिता के सामर्थ्य से परिचित थे, अतः उनके क्रोध को शांत करने के लिए उन्होंने उनकी आज्ञा का अक्षरशः पालन करते हुए चारों भाइयों सहित प्रिय माता का भी वध कर दिया। महर्षि जमदग्नि का क्रोध इससे शांत हुआ। उन्होंने पुत्र से मनचाहा वर मांगने को कहा तो राम ने निःसंकोच भाव से कहा- पिताजी ! आपकी प्रसन्नता ही मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ वर है, तथापि यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो कृपाकर मेरी जन्मदात्री माता और चारों सहोदरों को पुनः जीवित करने और उन्हें इस घटना की स्मृति न रहने का वर दें। पुत्र की बुद्घिमत्ता से संतुष्ट होकर महर्षि ने तुरंत अपनी मंत्र शक्ति के प्रभाव से अपनी पत्नी और पुत्रों को जीवित कर दिया और उन्हें इस प्रसंग का स्मरण भी नहीं रहा। यह भी अद्भुत संयोग है कि पिता के क्रोध को शांत करने में अप्रतिम चातुर्य दिखाने वाले परशुराम आगे चलकर स्वयं क्रोधावतार के रूप में जाने गए। यह स्वाभाविक ही था कि एक धर्म परायण मनस्वी कतिपय प्रभुता संपन्न मदांध राजाओं के विरुद्घ विद्रोह करता, अन्यथा उनके अवतरित होने का प्रयोजन ही व्यर्थ हो जाता।
अन्यायों-अत्याचारों का, वह सबल सशक्त विरोधी हो।
होगा दुष्टों का काल वही, जो कायर ना हो, क्रोधी हो॥
भगवान परशुराम का क्रोध अकारण नहीं था। हैहय सम्राट सहस्त्रार्जुन के अत्याचार व अनाचार अपनी चरम सीमा लाँघ चुके थे। ऋषियों के आश्रम नष्ट करना, अकारण उनका वध कर देना, निरीह प्रजा को परेशान करना, अपने मद में अंधा होकर स्त्रियों का सतीत्व नष्ट करना उसके लिए मनोरंजन के साधन थे। अपने मद में अंधा होकर एक बार वह महर्षि जमदग्नि के आश्रम में आया और उनकी कामधेनु छीन कर पर्णकुटियों में आग लगाकर चला गया, जिसके कारण जमदग्नि को प्राण गंवाने पड़े।
अन्यायों-अत्याचारों का, वह सबल सशक्त विरोधी हो।
होगा दुष्टों का काल वही, जो कायर ना हो, क्रोधी हो॥
भगवान परशुराम का क्रोध अकारण नहीं था। हैहय सम्राट सहस्त्रार्जुन के अत्याचार व अनाचार अपनी चरम सीमा लाँघ चुके थे। ऋषियों के आश्रम नष्ट करना, अकारण उनका वध कर देना, निरीह प्रजा को परेशान करना, अपने मद में अंधा होकर स्त्रियों का सतीत्व नष्ट करना उसके लिए मनोरंजन के साधन थे। अपने मद में अंधा होकर एक बार वह महर्षि जमदग्नि के आश्रम में आया और उनकी कामधेनु छीन कर पर्णकुटियों में आग लगाकर चला गया, जिसके कारण जमदग्नि को प्राण गंवाने पड़े।
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