अनुशासित जीवनशैली अपनायें, जिएंगे 150 साल

जीवनशैली : यह बात सत्य है कि पृथ्वी से हवा का दबाव कम हो जाये तो जीवन का रहना लगभग नगण्य है। हवा के बगैर आप एक पल भी जिंदा नहीं रह सकते हैं। इस हवा को योग और आयुर्वेद में 'प्राण शक्ति' कहते हैं। आपने सुना भी होगा की प्राण निकल जाने से व्यक्ति मर जाता है। हम बेहतर भोजन खाना चाहते हैं, शुद्ध पानी पीना चाहते हैं लेकिन बहुत कम लोग सोचते हैं कि हमें शुद्ध वायु मिले। यदि शुद्ध वायु नहीं मिल रही है तो शुद्ध भोजन और पानी का कोई खास असर नहीं होगा। बस आप जिंदा रहेंगे। लेकिन सबसे जरूरी शुद्ध वायु को ग्रहण करना। क्योंकि वायु ही हमारे जिंदगी को चलाती है। शरीर के भीतर है 28 प्रकार की वायु हैं। कुल 28 तरह के प्राण होते हैं। कंठ से गुदा तक शरीर के तीन हिस्से हैं। उक्त तीन हिस्सों में निम्नानुसार 7,7 प्राण हैं। ये तीन हिस्से हैं- कंठ से हृदय तक, हृदय से नाभि तक और नाभि से गुदा तक। पृथिवि लोक को बस्ती गुहा, वायुलोक को उदरगुहा व सूर्यलोक को उरोगुहा कहा है। इन तीनों हिस्सों में हुए 21 प्राण है। पांव के पंजे से गुदा तक तथा कंठ तक शरीर प्रज्ञान आत्मा ही है, किंतु इस आत्मा को संचालन करने वाला एक और है- वह है विज्ञान आत्मा। इसको परमेष्ठी मंडल कहते हैं। कंठ से ऊपर विज्ञान आत्मा में भी 7 प्राण हैँ- नेत्र, कान, नाक छिद्र 2, 2, 2 तथा वाक (मुंह)। यह 7 प्राण विज्ञान आत्मा परमेष्ठी में हैं। अब परमेष्ठी से ऊपर मुख्य है स्वयंभू मंडल जिसमें चेतना रहती है यही चेतना, शरीर का संचालन कर रही है अग्नि और वायु सदैव सक्रिय रहते हैं। आप सो रहे है कितु शरीर में अग्नि और वायु (श्वांस) निरंतर सक्रिय रहते हैं। चेतना, विज्ञान आत्मा ही शरीर आत्मा का संचालन करती है। परमेष्ठी में ठोस, जल और वायु है। यही तीनों, पवमान सोम और वायव्यात्मक जल हैं। इन्हीं को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन कहते हैं जल और वायु की अवस्था 3 प्रकार की है अत:जीव भी तीन प्रकार अस्मिता, वायव्य और जलज होते हैं। चेतना को भी लोक कहा है। इसे ही ब्रह्मलोक, शिवलोक या स्वयंभूलोक कहते हैं। ब्रह्मांड भी ऐसा ही है। हम जब श्वास लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु मुख्यत: पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर और स्थित हो जाता हैं। लेकिन वह स्थिर और स्थित रहकर भी गतिशिल रहती है। ये पंचक निम्न हैं- 1. व्यान, 2. समान, 3. अपान, 4. उदान और 5. प्राण। वायु के इस पांच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति की चेतना में जागरण रहता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती है, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह होता रहता है। इनके कारण ही मन के विचार बदलते रहते या स्थिर रहते हैं। उक्त में से एक भी जगह दिक्कत है तो सभी जगहें उससे प्रभावित होती है और इसी से शरीर, मन तथा चेतना भी रोग और शोक से घिर जाते हैं। मन-मस्तिष्क, चरबी-मांस, आंत, गुर्दे, मस्तिष्क, श्वास नलिका, स्नायुतंत्र और खून आदि सभी प्राणायाम से शुद्ध और पुष्ट रहते हैं। इसके काबू में रहने से मन और शरीर काबू में रहता है। हमारे शरीर का डॉक्टर है हमारी प्राण शक्ति। यह प्राण शक्ति एक वक्त में एक ही कार्य करती है। पहला कार्य है शरीर का भोजन पचाना और उसके रस को महत्वपूर्ण अंगों तक पहुंचाना और दूसरा कार्य है आपके शरीर से गंदगी को बाहर निकालना और यदि कोई बीमारी है तो उसका इलाज करना। प्राण शक्ति एक वक्त में एक ही कार्य करती है। यदि आप दो से तीन समय खाते हैं तो प्राण शक्ति का संपूर्ण समय आपके भोजन को पचाने और उसके रस को दूसरे अंगों को पहुंचेने में ही लगेगा। मतलब यह कि वह 24 घंटे एक ही कार्य करेगी। उल्लेखनीय है कि फल को पचने में 3 घंटे, सब्जी को पचने में 6 घंटे और अनाज को पचने में 18 घंटे लगते हैं। अब आप सोचिए कि फिर प्राण शक्ति शरीर का इलाज कब करेगी? इसीलिए रात के खाने और दोपहर के खाने के बीच हमें 16 घंटे तक का उपवास करना चाहिए। इस बीच सिर्फ पानी पीने के अलावा न तो कुछ खाना चाहिए और न ही कुछ पीना चाहिए। ऐसे में 16 घंटे हमारी प्राण शक्ति को हमारे शरीर के भोजन को पचाने के अलावा शरीर के इलाज का समय भी मिल जाता है।
नियमित करें प्राणायाम : प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। उक्त तीन तरह की क्रियाओं को ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं। कछुए की सांस लेने और छोड़ने की गति इंसानों से कहीं अधिक दीर्घ है। व्हेल मछली की उम्र का राज भी यही है। बड़ और पीपल के वृक्ष की आयु का राज भी यही है। वायु को योग में प्राण कहते हैं। इसलिए प्राणायाम को अपने नियमित जीवन का हिस्सा बनाएं। श्वास-प्रश्वास में स्थिरता और संतुलन से शरीर और मन में भी स्थिरता और संतुलन बढ़ता है। इससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है साथ ही मन के स्थिर रहने से इसका निगेटिव असर शरीर और मस्तिष्क पर नहीं पड़ता है। काम, क्रोध, मद, लोभ, व्यसन, चिंता, व्यग्रता, नकारात्मता और भावुकता से मन-मस्तिष्क रोग से ग्रस्त हो जाता है। यह रोगग्रस्त मन हमारे शरीर का क्षरण करता रहता है। यह ध्यान रहे कि प्राणायाम का अभ्यास करते हुए वायु प्रदूषण से बचना जरूरी है। शरीर में दूषित वायु के होने की स्थिति में भी उम्र क्षीण होती है और रोगों की उत्पत्ति होती है। यदि आप लगातार दूषित वायु ही ग्रहण कर रहे हैं तो समझो कि समय से पहले ही रोग और मौत के निकट जा रहे हैं। अनावश्यक चिंता-बहस, नशा, स्वाद की लालसा, असंयमित भोजन, गुटका, पाऊच, तम्बाकू और सिगरेट के अलावा अतिभावुकता और अतिविचार के चलते बहुत से लोग समय के पूर्व ही अधेड़ होने लगे हैं और उनके चहरे की रंगत भी उड़ गई है। उक्त सभी पर प्रतिबंध लगाएं।

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