रूप और सुंदरता
बोधकथा : राजा विक्रमादित्य की राजसभा में कालिदास नवरत्नों में से एक थे। कालिदास कुरूप थे। एक दिन राजसभा में राजा ने देखा कि कालिदास के मुखमंडल पर पसीने की बूंदें झिलमिला रही थीं। विक्रमादित्य बहुत सुंदर थे। राजा ने कहा-कालिदास तुम वैसे ही कितने कुरूप हो, परन्तु पसीने से लथपथ होने से और भी कुरूप लग रहे हो। कालिदास को यह बात बहुत बुरी लगी। अगले दिन राजसभा लगने से पहले कालिदास ने दो घड़े एक स्वर्ण का और दूसरा मिट्टी का रखवा उनमें जल भरवा दिया। विक्रमादित्य को जब प्यास लगी तो कालिदास ने स्वर्ण पात्र से जल लेकर राजा को पिलाने का आदेश दिया। सोने के घड़े में रखा जल कुछ उष्ण हो गया था, जिसे विक्रमादित्य ने पीया तो उन्हें यह अरुचिकर लगा। राजा की भावभंगिमा देखकर कालिदास ने अब मिट्टी के घड़े से जल लेकर उन्हें पीने को दिया। उनकी मुखाकृति पर तृप्ति का भाव उभर आया। कालिदास ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा-देखा महाराज! रूप और सुंदरता किसी काम की नहीं है। सोने का घड़ा दिखने में चाहे जितना सुन्दर हो परन्तु शीतल जल केवल मिट्टी का घड़ा ही दे सकता है। कालिदास का मंतव्य राजा विक्रमादित्य समझ चुके थे।
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