आत्मबल और शारीरिक बल

बोधकथा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य गुरुजी काशी में पढ़ते समय एक महीने के विशेष अध्ययन के लिए प्रयागराज गये थे। इस बारे में उस समय का एक अनुभव वे सुनाते थे। प्रयागराज विश्वविद्यालय में उस समय एक पहलवान छात्र भी पढ़ रहा था। उसने कुश्ती में अनेक पदक पाये थे। वहीं एक दुबला-पतला, पर बहुत चुस्त फुर्तीला बंगाली युवक भी था। वह प्रायः शांत भाव से अपने अध्ययन में लगा रहता था। एक बार उन दोनों में किसी बात पर झगड़ा हो गया। अपने स्वभाव के अनुरूप पहले तो वह बंगाली युवक शांत ही रहा, लेकिन जब बात बहुत आगे बढ़ गयी, तो उससे नहीं रहा गया। उसने पहलवान के मुँह पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। केवल इतने पर ही वह नहीं रुका। उसने पहलवान पर घूसों की बरसात भी कर दी। पहलवान युवक भौचक रह गया। उसके पास शरीर-बल तो था, लेकिन मनोबल नहीं। बंगाली युवक ने उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया और उसके सीने पर चढ़ बैठा। पहलवान के पाँव उखड़ गये, उसने जैसे-तैसे स्वयं को छुड़ाया और मैदान छोड़कर भाग गया। यानि कि शारीरिक बल के साथ मनोबल का होना भी बहुत आवश्यक है, बिना मनोबल के शारीरिक बल का कोई महत्त्व नहीं है।

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