कठिन कार्य करने की आदत डालें
विचार। आज का काम कल पर न टालना एक सराहनीय सद्गुण है। उसी प्रकार श्रमसाध्य कार्यों को सबसे पहले करने का निश्चित ही सफलता का स्वर्णिम सूत्र है। अपने कर्तव्यों से छुटकारा नहीं पाया जा सकता, देर-सवेर उन कार्यों को पूरा करना ही पड़ता है फिर क्या जरूरी है कि हम दूसरे कामों में लगे रहकर कठिन कार्यों का बोझ अपने मन-मस्तिष्क पर बनाये रखें। सूक्ष्म दृष्टि से देखना चाहिए कि कहीं हममें कठिन कार्यों को टालने, श्रमसाध्य कर्तव्यों से बचने की आदत तो नहीं पड़ गयी है। यदि आत्मनिरीक्षण के द्वारा ऐसी स्थिति का पता चले तो दृढ़ निश्चय करना चाहिए। जिन कार्यों को हम सबसे पीछे टालते रहे हैं, उन्हें ही सबसे पहले कर लें। परीक्षा में कठिन प्रश्नों को सबसे पहले हल करके आसान सवालों का उत्तर उनके बाद करने की पद्धति सफलता प्राप्त करने का आसान उपाय है। यदि यह आदत डाल ली जाये तो जो काम सबसे कठिन दिखाई पड़ते हैं, वह बहुत आसान लगने लगते हैं। उन्हें हम ही कठिन बनाते हैं, अपनी टालने की वृत्ति से। इस वृत्ति के कारण आसान और सहज साध्य कार्य भी धीरे-धीरे कठिन लगने लग जाते हैं। कम कठिनाई के कार्य पहले करने की आदत मनुष्य को प्रकृति का दास बना लेती है। जबकि वह अपने स्वभाव का-आदतों का दास नहीं, स्वामी है। बहुत से व्यक्ति जो अपने जीवन में कोई जरूरी कार्य नहीं कर पाते हैं, इसी आदत के दास होते हैं। ऐसे प्रकृति से हारे हुए व्यक्ति फिर कठिन कार्यों से नहीं थोड़ी सी कठिन परिस्थितियों में भी घबरा जाते हैं। वह सरल कार्य पहले चुन-चुनकर कर लेते हैं। उसका सारा श्रम और कार्यक्षमता इन सरल कामों में लग जाता है। प्रात: जब हम अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं तो कठिन और श्रमसाध्य कार्यों को सबसे पहले कर लेना एक अच्छी और प्रगतिदायी आदत है। इसकी अपेक्षा अनावश्यक कामों को पहले करने का स्वभाव थकाने वाला बन जाता है और कठिन कार्य ज्यों के त्यों ही पड़े रह जाते हैं। यदि हम इस आल्स्य की वृत्ति पर विजय नहीं प्राप्त कर सके तो निश्चित है कि हम औसत स्तर से रत्तीभर भी ऊंचा नहीं उठ सकेंगे और सफलता हमसे कोसों दूर रहेगी। हम जिन परिस्थितियों में हैं, प्रगतिशील व्यक्ति उनसे गई-गुजरी स्थिति में भी हमसे आगे बढ़ जाता है और हम फिर कुछ कर सकते हैं तो केवल ईष्र्या। कुछ बनने के लिये दृढ़ संकल्प के साथ अपने कार्यों में लगना चाहिए। यह बात ध्यान रखी जानी चाहिए कि कठिन कार्यों में ही हमारी सामथ्र्य और योग्यता का विकास सम्भव है। अत: पुरुषार्थी व्यक्तियों की दृष्टि में काम केवल काम होता है, कठिन सरल के वर्गीकरण के चक्कर में न पड़ते हुए वे उसे पूरा करने में जुट पड़ते हैं। कहने का अर्थ यह कि हनुमान जी की तरह कठिन कार्य आसानी से करने की आदत डालें।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें