कैंसर समेत कई बीमारियों में कारगर है 'सोवा रिग्पा'
नई दिल्ली : हिमालयीन इलाके सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, हिमाचल के धर्मशाला, लाहौल स्पीति, लद्दाख और कुछ अन्य इलाकों में 'सोवा रिग्पा' पद्धति काफी प्रचलित है। इसके लिए जड़ी-बूटियों से ही दवा बनती है। विशेषज्ञों का दावा है कि अस्थमा, आर्थराइटिस, कैंसर समेत कई गम्भीर बीमारियों में इस पैथी से इलाज कारगर है। यह भारत की बहुत पुरानी चिकित्सा पद्धति है और अब इस पैथी की पढ़ाई से लेकर चिकित्सीय प्रैक्टिस के लिए नियम-कानून तक बना दिए गए हैं। पहली बार देश के तीन शहरों लेह, सारनाथ और गंगटोक में एक-एक कॉलेज को मान्यता दी गई है। हर कॉलेज में 15-15 स्टूडेंट्स को दाखिला दिया गया है। आयुर्वेद की तरह ही इलाज की एक पद्धति है सोवा रिग्पा। इस पद्धति से भारत में सैकड़ों सालों से इलाज हो रहा है। इस कारण भारत इसे अपना बनाने के लिए जब यूनेस्को पहुंचा, तो चीन भी यूनेस्को पहुंच गया। दोनों देशों ने इलाज की इस पद्धति पर अपना-अपना दावा ठोंक दिया है। भारत सरकार ने आवेदन में कहा कि सोवा रिग्पा भारत की चिकित्सा पद्धति है। इसे इंटेजिबल कल्चरल हेरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी की सूची में शामिल किया जाए। हालांकि, चीन का दावा है कि यह उसकी पुरानी पद्धति है। लिहाजा, इस पर चीन का हक है। चीन के दावे के बाद भारत यूनेस्को को पैथी से जुड़े तथ्य और दस्तावेज उपलब्ध करा रहा है ताकि इस पर अपना हक साबित किया जा सके। उधर, एक पद्धति पर दो देशों के दावों की वजह से यूनेस्को को फैसला लेने में देरी हो रही है।
इससे पहले बुधवार को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में देश में पहली बार एक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोवा रिग्पा बनाने की मंजूरी दी गयी। लेह में बनने वाले इस स्वायत्त संस्थान के निर्माण पर करीब 50 करोड़ रुपये की लागत आएगी। राष्ट्रीय सोवा रिग्पा अनुसंधान संस्थान, लेह केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन 1976 में स्थापित किया गया था। यह आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एकमात्र संस्थान है।
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