असली परीक्षा मंझधार में
बोधकथा : नदी में सवारियों से भरी एक नाव एक किनारे से उस पार जा रही थी। तूफान से नाव बीच मंझधार में डांवांडोल होने लगी तो लोग घबराकर रोने लगे तो कुछ अपना सामान समेटने लगे। सब अपने-अपने ईश्वर को याद करने लगे। नाव में एक साधु भी था, लेकिन उस पर कुछ असर नहीं दिख रहा था। वह कोने में अपनी माला फेरते हुए आंखें बंद किए बैठा था। कुछ लोगों ने उससे कहा—आप ही कुछ प्रार्थना कर लो, शायद तूफान थम जाए। सुना है साधु की दुआओं में बहुत असर होता है। साधु निर्विकार मुस्कुराता रहा। तभी दूर से किनारा दिखाई पडऩे लगा। अब तो प्रार्थनाओं की आवाज़ भी मंद पडऩे लगी। किनारा पास आते ही सब शांत हो गए और हंसी मज़ाक में डूब गए। इसके विपरीत साधु हाथ उठाकर दुआ करने लगा। यह देखकर एक यात्री ने कहा—जब कुछ करने का वक्त था तो कुछ किया नहीं। अब सुरक्षित पहुंच गए तो दिखावा करते हो। इस पर फकीर हंसते हुए बोला—असली परीक्षा तो मंझधार में ही होती है, जहां हर कोई सावधान रहता है। मगर किनारा दिखते ही सब भूल जाते हैं। मैं बीच में भी निश्चिंत था और यहां किनारे पर भी। हाथ उठाकर तो मैं ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर रहा हूं कि उसने हम सबको सुरक्षित किनारे लगा दिया।
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