'नंदी' और 'भोलेनाथ' की कथा

आस्था । बैल को बहुत काम करना होता है, काम यानि लोककल्याण के लिये अधिक कार्य करना। भगवान शंकर भी भोले और कर्मठ हैं, शिव ने नंदी बैल को ही अपने वाहन के रूप में इसीलिये चुना कि वृष यानि बैल काफी सुंदर, हष्ट-पुष्ट, सज्जन, स्वच्छ आदि जितनी सराहना की जाय कम हैं और मेहनत तो इतनी कि समाज का भला ही भला हो। भगवान शंकर का वाहन हैं नंदी यानि एक बैल। सौम्य-सात्विक बैल शक्ति का प्रतीक है, हिम्मत का प्रतीक है। शिवभक्त शिवलिंग के सामने बैठे नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। मान्यता है कि नंदी के कान में मनोकामनाएं बताने से जल्द पूर्ण हो जाती हैं। क्या है नंदी बैल की कहानी-शिलाद ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए शंकर भगवान की आराधना और घोर तपस्या की। अंतत: शिलाद को खेत की खोदाई के दौरान एक बच्चा मिला, बच्चे में सूर्य जैसा तेज था। शिलाद ऋषि उस बच्चे को घर ले गये और उसका नाम नंदी रखा। नंदी बहुत ही होशियार और बुद्धि से तेज था। 

कुछ सालों बाद ऋषि मित्रा और ऋषि वरुण शिलाद के घर आए, शिलाद व नंदी ने उनका खूब सत्कार व सेवा की। दोनों ऋषि जब शिलाद के घर से जाने लगे तो उन्होंने कहा कि मैं आपके पुत्र को लम्बे जीवन की कामना नहीं कर सकता, यह सुनकर शिलाद दुखी हो गए और पूछा, मेरे बेटे के साथ क्या होने वाला है? वरुण ऋषि बोले, नंदी अल्पायु हैं, मुझे यह खबर आप तक पहुँचाने का खेद है परंतु यही सत्य है। ऋषियों की बात सुनकर शिलाद दु:खी हो गया। नदी ने कहा कि स्वयं भगवान शिव का दर्शन करने वाला कभी निराश व दु:खी नहीं होता। पिताजी अगर मेरे भाग्य में मरण लिखा है तो भगवान शिव स्वयं उसे बदल सकते हैं, वे सबसे शक्तिशाली हैं और कुछ भी कर सकते हैं। नंदी ने पिता शिलाद का आशीर्वाद लेकर भुवना नदी में तपस्या करना शुरू किया। नंदी की भक्ति व एकाग्रता से प्रसन्न होकर शंकर भगवान ने नंदी को दर्शन दिये। नंदी ने शंकर भगवान के साथ रहने की इच्छा जताई, जिसे शंकर भगवान ने स्वीकार कर लिया और नंदी को अपनी सवारी बनाया।

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