ऋष्यश्रृंग को जंगल से बाहर निकालने के लिये देवदासियों ने रची साजिश
कथा। पुराणों के अनुसार विभांडक ऋषि कश्यप ऋषि के पुत्र व ऋष्यश्रृंग के पिता थे। विभांडक ऋषि के कठोर तप से देवता कांप उठे थे और उनकी समाधि तोड़ने और ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने स्वर्ग से उर्वशी को उन्हें मोहित करने के लिए भेजा। अप्सरा उर्वशी के आकर्षक स्वरूप के कारण विभांडक ऋषि की तपस्या टूट गई। दोनों के संसर्ग से ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ। पुत्र को जन्म देते ही उर्वशी का काम धरती पर समाप्त हो गया और वह अपने पुत्र को विभांडक ऋषि के पास छोड़कर वापस स्वर्ग चली गईं। अप्सरा उर्वशी के छल से विभांडक ऋषि बहुत आहत हुए और उन्होंने नारी जाति को ही इसके लिए दोषी ठहराना शुरू कर दिया। अपने पुत्र को लेकर विभांडक ऋषि एक जंगल में चले गए और उन्होंने प्रण किया कि वह अपने पुत्र पर किसी भी स्त्री की छाया तक नहीं पड़ने देंगे। जिस जंगल में विभांडक ऋषि तप करने गए थे वह जंगल अंगदेश की सीमा से लगकर था। विभांडक ऋषि के घोर तप और क्रोध के चलते अंगदेश में अकाल के बादल छा गए, लोग भूख से बिलखने लगे। इस समस्या के समाधान के लिए राजा रोमपाद ने अपने मंत्रियों, ऋषि, मुनियों को बुलाया। ऋषियों ने राजा से कहा कि यह सब विभांडक ऋषि के कोप का परिणाम है। यदि विभांडक ऋषि का पुत्र ऋष्यश्रृंग को जंगल से बाहर निकाला जाये तो अकाल से छुटकारा पाया जा सकता है। राजा ने इसके लिए भी युक्ति निकाली। उन्होंने अपने नगर की सभी देवदासियों को ऋष्यश्रृंग को आकर्षित कर उन्हें जंगल से बाहर निकालकर नगर लाने का काम सौंपा। चूंकि ऋष्यश्रृंग ने अभी तक कभी किसी स्त्री को नहीं देखा था इसलिए उन्हें आकर्षित कर पाना आसान नहीं था। एक दिन ऋष्यश्रृंग जंगल में विचरण के लिए निकले तब उन्होंने एक आश्रम में खूबसूरत देवदासियों को देखा। वह बेहद आकर्षक थीं, उन्हें अपना ‘गुरुभाई’ मानकर ऋष्यश्रृंग देवदासियों के पास गए। देवदासियों ने ऋष्यश्रृंग को आकर्षित कर यौन आनंद के लिए आमंत्रित करना शुरू किया। अगले दिन ऋष्यश्रृंग उन देवदासियों को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते फिर उनके आश्रम में जा पहुंचे। एक दिन मौका देखकर देवदासियों ने ऋष्यश्रृंग से कहा कि उन्हें प्यार और यौन सुख के लिये जंगल से बाहर चलना पड़ेगा, ऋष्यश्रृंग ने उनकी बात मान ली और उनके साथ नगर की ओर प्रस्थान कर गए। ऋष्यश्रृंग जब राजा रोमपाद के दरबार पहुंचे तो राजा ने उन्हें सारी घटना बताई कि उनके पिता ऋषि विभांडक के तप को तोड़ने के लिए तुम्हें जंगल से बाहर लाया गया है। अपने पुत्र के साथ हुए इस छल से विभांडक ऋषि क्रोध के आवेश में आकर रोमपाद के महल पहुंचे। विभांडक ऋषि का क्रोध शांत करने के लिए राजा रोमपाद ने अपनी दत्तक पुत्री शांता का विवाह ऋष्यश्रृंग से कर दिया। बता दें कि अयोध्या के राजा दशरथ ने जब पुत्र प्राप्ति के लिए अश्वमेध यज्ञ करवाने का निश्चय किया तब सुमंत ने उन्हें विष्णु के अवतार संत कुमार द्वारा राजा पूर्वाकल को ऋषियों की कही एक कहानी सुनाई जो ऋष्यश्रृंग से ही जुड़ी थी। इस घटना के होने से कई वर्ष पहले ही संतकुमार ने राजा पूर्वाकल से कहा था कि महर्षि विभांडक को एक महान पुत्र की प्राप्ति होगी जिनके द्वारा किए गए पुत्रप्राप्ति के यज्ञ से ही दशरथ के घर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्म होगा। हैरानी वाली बात ये है कि राजा रोमपाद ने ऋष्यश्रृंग से अपनी जिस दत्तक पुत्री का विवाह किया था वह राजा दशरथ की पुत्री और श्रीराम की बहन थीं। सर्वविदित है कि महाकाव्य महाभारत के वनपर्व की एक कहानी के अनुसार कौशिकी देवनादी नदी के क्षेत्र में विभांडक ऋषि का एक आश्रम था। कौशिकी देवनादी नदी की पहचान कुंवारी या क्वारी नदी के रूप में की जाती है। इसी महान संत के नाम पर भिंड शहर का नाम पड़ा है। विभांडक या भिंडी ऋषि का एक प्राचीन मंदिर अभी भी भिंड में है। राजा पृथ्वीराज चौहान ने सिरसागढ़ की लड़ाई में चंदेलों से लड़ने के लिए जाते समय विभांडक ऋषि के समाधि स्थल में घने जंगल में डेरा डाला और उनके सेनापति मलखान को हराया। वहीं मान्यता है कि पांडवों ने अपने निर्वासन के दौरान उनके आश्रम का दौरा किया था। यह स्थान अब पृथ्वीराज चौहान द्वारा निर्मित भगवान शिव के वन खंडेश्वर मंदिर का स्थान है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें