जिनके घर में गौरैया लगाती है घोंसला, उन्हें मिलती है सुख और समृद्धि


लखनऊ : देश में ऊंचे होते मकान, सिकुड़ते खेत, कटते पेड़, सूखते तालाब और फैलते मोबाइल टावरों से प्यारी गौरैया समाप्त हो रही है। गौरतलब है कि गौरैया पक्षी, जो पर्यावरण के काफी अनुकूल है, मानव जाति के लिए अति लाभादायक भी। सम्भवतः फिल्म इतिहास में पहली बार फिल्म 2.0 में मोबाइल तरंगों के खिलाफ और पक्षियों के हित में भावनात्मक मुद्दे चित्रित किये गये हैं। सर्वविदित है कि गौरैया ही नहीं पक्षियों की संख्या लगातार कम हो रही है और विशेषज्ञ मानव जाति को भी संकट में बता रहे हैं। वहीँ पिछले दिनों गौरैया को दिल्ली का ‘राज्य पक्षी’ घोषित किया गया, यह याद करना मुश्किल है कि गौरैया को आखिरी बार मैंने कब देखा था। 

पक्षी विज्ञानियों की मानें तो गौरैया विलुप्ति की ओर है, उसकी आबादी सिर्फ 20 फीसदी बची है। चंचल, शोख और खुशमिजाज गौरैया का घोंसला घरों में शुभ माना जाता है। इसके नन्हें बच्चों की किलकारी घर की खुशी और संपन्नता का प्रतीक होती थी। घरों में छोटे बच्चों का पहला परिचय जिस पक्षी से होता था, वह गौरैया ही थी, उसके बाद कौवे से पहचान होती थी। कहावत है कि मेहमान के आने का संदेश देने वाले काग पर भी अब खतरा है। कौवे भी गायब हो रहे हैं। करीब पंद्रह सेंटीमीटर लंबी इस फुदकने वाली चिड़िया को पूरी दुनिया में घरेलू चिड़िया मानते हैं। सामूहिकता में इसका भरोसा है, झुंड में रहती है। मनुष्यों की बस्ती के आस-पास घोंसला बनाती है, आज के सजावटी पेड़ों पर इसके घोंसले नहीं होते। इस लिहाज से यह घोर समाजवादी है, दाना चुगती है, साफ-सुथरी जगह रहती है, हाइजीन का खयाल रखती है। पक्षियों के जात-पांत में इसे ब्राह्मण चिड़िया माना जाता है, क्योंकि शाकाहारी है। हर वातावरण में अपने को ढालने वाली यह चिड़िया हमारे बिगड़ते पर्यावरण का दबाव नहीं झेल पा रही है। जीवन-शैली में आए बदलाव ने उसका जीवन मुहाल कर दिया है। लुप्त होती इस प्रजाति को ‘रेड लिस्ट’ अर्थात खतरे की सूची में डाला गया है।
अभिषेक त्रिपाठी
दूरभाष: 8765587382

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