19 सितम्बर को है अनंत चतुर्दशी, विष्णु पूजन से दूर होगी दरिद्रता
ज्योतिष।
शास्त्र के अनुसार इस वर्ष यानि 2021 में 19 सितम्बर को अनंत चतुर्दशी है।
पुराणों में अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत यनि श्री विष्णु की पूजा का
विधान है। अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है।
इस दिन अनंत सूत्र बांधने का विशेष महत्व होता है। इस व्रत में भगवान
विष्णु के अनंत रूप की पूजा के बाद बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों द्वारा जुए में अपना राजपाट हार जाने के बाद
श्रीकृष्ण से पूछा था कि दोबारा राजपाट प्राप्त हो और इस कष्ट से छुटकारा
मिले इसका उपाय बताएं तो श्रीकृष्ण ने उन्हें सपरिवार सहित अनंत चतुर्दशी
का व्रत बताया था। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन
में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों
को नाप लिया था। इनके न तो आदि का पता है न अंत का, इसलिए भी यह अनंत
कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। भगवान विष्णु
के सेवक भगवान शेषनाग का नाम अनंत है।
पूजा की विधि : सुबह स्नान
आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेकर पूजा स्थल पर कलश स्थापित किया
जाता है। कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की
स्थापना करने के पश्चात एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत
सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए। इसे भगवान विष्णु की
तस्वीर के सामने रखकर भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से
पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें। इसके बाद विधिवत पूजन के
बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें। पुरुष दायें हाथ में और महिलाएं
बायें हाथ में बांधे।
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
शास्त्र
के अनुसार इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु
सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है।
धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है। बता
दें कि अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी का विर्सजन किया जाता है।
अनंत
चतुर्दशी की व्रत कथा : पुराने समय में सुमंत नाम के एक ऋषि हुआ करते थे
उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। दोनों की बेटी सुशीला थी। सुशीला थोड़ी बड़ी
हुई तो मां दीक्षा का स्वर्गवास हो गया। अब ऋषि को बच्ची के लालन-पालन की
चिंता होने लगी तो उन्होंने दूसरा विवाह करने का निर्णय लिया। उनकी दूसरी
पत्नी और सुशीला की सौतेली मां का नाम कर्कशा था। वह अपने नाम की तरह ही
स्वभाव से भी कर्कश थी। कर्कशा ने सुशीला को बड़े कष्ट दिए। जैसे तैसे
सुशीला बड़ी हुई। तब ऋषि सुमंत को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। काफी
प्रयासों के बाद कौण्डिन्य ऋषि से सुशीला का विवाह संपन्न हुआ, लेकिन यहां
भी सुशीला को दरिद्रता का ही सामना करना पड़ा, उन्हें जंगलों में भटकना पड़
रहा था। एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं
और हाथ में अनंत रक्षासूत्र भी बांध रहे हैं। सुशीला ने उनसे अनंत भगवान की
उपासना के व्रत के महत्व को जानकर पूजा का विधि विधान पूछा और उसका पालन
करते हुए अनंत रक्षासूत्र अपनी कलाई पर भी बांध लिया। देखते ही देखते उनके
दिन फिरने लगे। कौण्डिन्य ऋषि में अंहकार आ गया कि यह सब उन्होंने अपनी
मेहनत से निर्मित किया है। एक साल बाद फिर अनंत चतुर्दशी आई, सुशीला अनंत
भगवान का शुक्रिया कर उनकी पूजा आराधना कर अनंत रक्षासूत्र को बांध कर घर
लौटी तो कौण्डिन्य को उसके हाथ में बंधा वह अनंत धागा दिखाई दिया और उसके
बारे में पूछा। सुशीला ने खुशी-खुशी बताया कि अनंत भगवान की आराधना कर यह
रक्षासूत्र बंधवाया है, इसके बाद ही हमारे दिन अच्छे आए हैं। इस पर
कौण्डिन्य खुद को अपमानित महसूस किया और सोचने लगे कि उनकी मेहनत का श्रेय
सुशीला अपनी पूजा को दे रही है। उन्होंने उस धागे को उतरवा दिया। इससे अनंत
भगवान रूष्ट हो गए और देखते ही देखते कौण्डिन्य फिर दरिद्रता आ पड़ी, तब
एक विद्वान ऋषि ने उन्हें उनके किए का अहसास करवाया और कौण्डिन्य को अपने
कृत्य का पश्चाताप करने की कही। लगातार चौदह वर्षों तक उन्होंने अनंत
चतुर्दशी का उपवास रखा उसके पश्चात भगवान श्री हरि प्रसन्न हुए और
कौण्डिन्य व सुशीला फिर से सुखपूर्वक रहने लगे। मान्यता है कि पांडवों ने
भी अपने कष्ट के दिनों में अनंत चतुर्दशी के व्रत को किया था जिसके पश्चात
उन्होंने कौरवों पर विजय हासिल की। यहीं नहीं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के
दिन भी इस व्रत के पश्चात फिरे थे। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह
लोकों की रचना की थी, वह है—
तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य और मह।
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