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'कर बुरा तो हो बुरा'

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बोधकथा : प्राचीन समय की बात है एक गांव में एक वैद्यजी रहते थे। वैद्यजी के पास कभी कभार कोई मरीज आता था क्योंकि उस गांव में अधिकतर लोग बीमार नहीं पड़ते थे। इससे वैद्यजी की आजीविका में बहुत समस्या आती थी। एक दिन वैद्यजी अपनी झोपड़ी से बाहर निकले और एक पेड़ के नीचे जाकर बैठे। तभी उन्हें उस पेड़ के कोटर में एक सांप दिखाई दिया। वैद्यजी सोचने लगे कि अगर यह सांप किसी को काट खाए तो कितना अच्छा हो। मैं उसे ठीक करके अच्छा खासा धन कमा सकता हूं। तभी वैद्यजी की नजर सामने खेल रहे बच्चों पर पड़ी। उन्होंने बच्चो के पास जाकर कहा–देखो! बच्चों उस पेड़ के कोटर में मिट्टू मिया बैठे हैं। बच्चे तो बच्चे होते हैं, उनमें से एक बच्चा दौड़ा और सीधे जाकर कोटर में हाथ डाल दिया। संयोग से सांप की मुण्डी उसके हाथ में आ गई। जैसे ही उसने बाहर निकाला तो डर के मारे उछाल दिया। नीचे अन्य बच्चों के साथ वैद्यजी खड़े थे। सांप सीधा वैद्यजी के ऊपर आकर गिरा और कई जगह डंस लिया। तड़पते हुये वैद्यजी की जान निकल गई। इस बोधकथा से सीख मिलती है कि हमेशा दूसरों का भला सोचना चाहिए और भला न हो सके तो कमसे कम बुरा तो नहीं सोचना चाहिए। यानि कर बुरा ...

राष्ट्र चेतना के अमर गायक रामनरेश त्रिपाठी

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परिचय : उत्तर भारत के अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में एक प्रार्थना बोली जाती है— हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिये शीघ्र सारे दुगुर्णों को दूर हमसे कीजिये। लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीरव्रतधारी बनें। यह प्रार्थना एक समय इतनी लोकप्रिय थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद जब शाखाएं प्रारम्भ हुईं, तो उस समय जो प्रार्थना बोली जाती थी, उसमें भी इसके अंश लिये गये थे। हे गुरो श्री रामदूता शील हमको दीजिये शीघ्र सारे सद्गुणों से पूर्ण हिन्दू कीजिये। लीजिये हमको शरण में रामपंथी हम बनें ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीरव्रतधारी बनें। यह प्रार्थना संघ की शाखाओं पर 1940 तक चलती रही। 1940 में सिन्दी बैठक में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय हुए। उनके अनुसार इसके बदले संस्कृत की प्रार्थना नमस्ते सदा वत्सले... को स्थान मिला, जो आज भी बोली जाती है। इस प्रार्थना के लेखक श्री रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च 1889 को ग्राम कोइरीपुर जौनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह कुछ समय पट्टी प्रतापगढ़ तथा फिर कक्षा नौ तक जौनपुर में पढ़े। इसके बाद वे हिंदी के प्रचार—प्रसार तथा समाज सेवा में...

जन—जन के विवेकानन्द

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बोधकथा : एक लम्बे समय व अनेक कठिनाइयों को बड़ी समझदारी से पार करते हुए, एक लम्बी पेचीदा प्रक्रिया को लांघते हुए, भारत के प्रधानमंत्री पं. नेहरू व मद्रास के मुख्यमंत्री श्री एम भक्तवत्सलम् की आपत्तियों का समुचित समाधान करते हुए अंतत: सितम्बर 1964 को श्री पाद शिला पर स्वामी विवेकानन्द शिला स्मारक की अपेक्षित अनुमति मिल ही गयी। मा. एकनाथ रानाडे जी जो पूर्व में संघ के सरकार्यवाह 1956—1962 तथा 1962 में अ.भा. बौद्धिक प्रमुख थे उन्हीं की सारी योजना तथा उन्हीं की मुख्यतया परिश्रम इसके पीछे था। अनुमति मिलते ही अब प्रश्न उसके लिए धन संग्रह का था। मा. एकनाथ जी को आत्म​विश्वास चरम पर था। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द जी के सुन्दर चित्र वाले 1—1 रुपये के कार्ड बनवाये और उन्हें विद्यालय व महाविद्यालय के छात्र—छात्राओं में बिक्री हेतु दिया तथा साथ ही विद्यालय व महाविद्यालय के अध्यापकों व प्राचार्यों को भी आह्वान किया कि कम से कम एक ग्रेनाइट की 500 रुपये की ईंट का योगदान अवश्य होना चाहिए।  इसके अ​तिरिक्त समाज के सुधीजनों तथा डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, व्यवसाइयों व उद्योगपतियों को भी आह्वान किया गया। इस...

सादगी की प्रतिमूर्ति श्री लक्ष्मण श्रीकृष्ण भिड़े

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परिचय : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य को विश्वव्यापी रूप देने में अप्रतिम भूमिका निभाने वाले श्री लक्ष्मण श्रीकृष्ण भिड़े का जन्म अकोला, महाराष्ट्र में 1918 में हुआ था। उनके पिता श्री श्रीकृष्ण भिड़े सार्वजनिक निर्माण विभाग में कार्यरत थे। छात्र जीवन से ही उनमें सेवाभाव कूट—कूट कर भरा था। 1932—33 में जब चन्द्रपुर में भयानक बाढ़ आयी तो अपनी जान पर खेलकर उन्होंने अनेक वरिवारों की रक्षा की। एक बार मां को बिच्छू के काटने पर उन्होंने तुरंत अपना जनेऊ मां के पैर में बांध दिया। इससे रक्त का प्रवाह बंद हो गया और मां की जान बच गयी। चंद्रपुर में उनका सम्पर्क संघ से हुआ। वे बाबा साहब आप्टे से बहुत प्रभावित थे। 1941 में वे प्रचारक बने तथा 1942 में उन्हें लखनऊ भेज दिया गया। 1942 से 57 तक उन्होंने उत्तर प्रदेश में अनेक स्थानों एवं दायित्वों पर रहते हुए कार्य किया। 1957 में उन्हें कीनिया भेजा गया। 1961 में वे फिर उत्तर प्रदेश में आ गये। 1973 में उन्हें विश्व विभाग का कार्य दिया गया। इसके बाद बीस साल तक उन्होंने उन देशों का भ्रमण किया, जहां हिंदू रहते हैं। विदेशों से हिंदू हित एवं भारत हित में उन्ह...

कर्म ही पूजा

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बोधकथा : भारत में अंग्रेजी राज्य के यशस्वी लेखक एवं राष्ट्रीय नेता श्री सुन्दरलाल जी तिलक जी को मिलने एक बार पूना गये। लोकमान्य ने श्री सुंदर लाल जी को अपने घर पर ठहराया। प्रात: 4 बजे के लगभग तिलक जी उठे। प्रात:कालीन नित्य क्रियाओं से निपटकर वह केसरी और मराठा के लिए अग्रलेख लिखने लगे। ग्रंथ—लेखन व स्वाध्याय आदि कार्य पूर्ण करते दिन चढ़ गया। उनसे मिलने वाले सज्जन आने लगे। थोड़ी देर के लिए लोकमान्य केसरी कार्यालय भी गये। वहां भी उन्होंने काम निपटाये, आवश्यक निर्देश दिये। शहर के एक दो विद्यालयों, नगर आयोजनों में भाग लेकर जब लोकमान्य घर लौटे, तब मध्यान्ह का सूर्य चढ़ आया था।  तिलक जी ने पुन: स्नान किया। आवश्यकता निय​मविधि पूर्ण कर वह भोजन के लिए भोजनालय में गये। साथ ही सुंदर लाल जी भी थे। दोनों अपने—अपने आसनों पर बैठ गये। सामने पटरों पर भोजन की थालियां आ गयीं। तिलक जी ने रीति के अनुसार आचमन व जल सिंचन करके सुंदरलाल जी को कहा भोजन करें! रुक क्यों गये! मैं सोच रहा था कुछ भगवान की पूजा आराधना, स्तोत्र एवं संध्यावंदन के मंत्र तो हुए ही नहीं। भोजन से पहले भगवान की पूजा ही हो जाती। तिलक जी ...

नींव का पत्थर

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बोधकथा : वर्ष 1928—29 की बात है। लाल बहादुर शास्त्री लोक मण्डल की जिम्मेदारियां लेकर प्रयागराज पहुंचे थे। दुबले—पतले, सिर की टोपी, पैरों में देशी जूते, हंसमुख, संकोची स्वभाव के और दलगत राजनीति से सर्वथा अलग। उनका कहना था कि अखबारी विवरणों मं उनका नाम न छपे। कुछ मित्रों ने एक दिन पूछ ही लिया—आपको अखबारों में नाम छपने से पनहेज क्यों है। कुछ पशोपेश के बाद उन्होंने बताया कि लोकसेवक मण्डल के कार्य के लिए दीक्षा का समय लाला लाजपत राय ने कहा था कि लालबहादुर! ताजमहल में दो तरह के पत्थर लगे हैं। एक बढ़ियां किस्म का संगमरमर है, उसी से मेहराब और गुम्बद बने हैं, उसी से जालियां काटी गयी हैं, उसी से मीनाकाशी और पच्चीकारी की गयी है। उन्हीं में रंग—बिरंगे बेल—बूटे भी भरे गये हैं। दूसरी तरह के पत्थर हैं—टेढ़े—मेढ़े और बढ़ेंगे। वे सब नींव में दबे पड़े हैं। उनकी कोई प्रशंसा नहीं करता, लेकिन इन्हीं नींव के पत्थरों पर ताजमहल की इमारत खड़ी है। मैं चाहता हूं लोकसेवक मण्डल के आजीवन सदस्य नींव के पत्थर से खुद को बचाये रखें। मित्रों, मुझे क्षमा करें, मैं नींव का पत्थर ही रहना चाहता हूं।    ...

26 नवम्बर 2020 को है देवउठनी एकादशी, शुरू होंगे शुभ कार्य

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  ज्योतिष : कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं, इसे देवोत्थान और देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। इस बार यानि 2020 में देवउठनी एकादशी 26 नवम्बर को पड़ेगा। सनातन परम्परा में देवउठनी एकादशी को बहुत ही शुभ कहा गया है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु नींद से जागेंगे, जो चार महीने पहले देवशयनी एकादशी यानि 1 जुलाई 2020 को सो गये थे।  शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे क्षीर सागर में आकर सो गए और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। विष्णु मंत्र ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात।। – त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देवदेव:।। – शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम।। लक्ष्मीकान्तंकम...

करवा चौथ का पवित्र व्रत कल, तैयारी में जुटीं हैं सुहागिन महिलाएं

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जीवनशैली : कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सुहागिन महिलाएं पति की लम्बी उम्र के लिए करवा व्रत रखती हैं। इस वर्ष यानि 2020 में करवा चौथ का व्रत 4 नवम्बर को है। इस दिन सुहागन महिलाएं और वे कन्याएं जिनका विवाह होने वाला होता है, वे अपने जीवनसाथी की लम्बी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। उनके सुखद और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। करवा व्रत के दिन रात में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है, उसके बाद महिलाएं अपने पति के हाथों से जल ग्रहक करके पारण करती हैं और व्रत पूरा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत से पति—पत्नी के दाम्पत्य जीवन में प्रगाढ़ता आती है।  इसके अलावा कार्तिक माह का संकष्टी चतुर्थी व्रत भी 4 नवम्बर दिन बुधवार को है। इस दिन प्रथमेश श्री गणेश जी की पूजा विधि विधान से की जाती है। इस दिन उनको दुर्वा अर्पित करना अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। वैसे भी बुधवार का दिन गणेश जी की पूजा के लिए समर्पित है और उस दिन चतुर्थी भी है, तो इन दो वजहों से उस दिन विघ्नहर्ता की पूजा करना उत्तम रहेगा। गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है इसलिए गणेश की पूजा रोज और सबसे पहले करनी चाहिए। म...

अद्भुत है भीमकुंड और चुंदरू खावा का कुआं

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पर्यटन : अद्भुत और विवि​धता समेटे भारत में अधिकतर जगहों पर घूमने लायक है यानि जो लोग पर्यटन के शौकीन हैं, नई व रहस्यमयी जगहों पर जाना पसंद करते हैं तो ऐसे लोगों को भारत भ्रमण या दर्शन जरूर करनी चाहिए। भारत में ऐसे कई स्थल हैं, जो देखने और समझने लायक है। ऐसा ही एक अद्भुत कुंड है जिसका नाम है भीमकुंड। भीमकुंड एक प्राकृतिक जल कुंड है और मध्य प्रदेश, भारत में एक पवित्र स्थान है। यह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में बाजना गाँव के पास स्थित है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र में सड़क मार्ग से छतरपुर से 77 किमी दूर है। भीमकुंड महाभारत काल से पवित्र है। कई वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च करके पता लगाने की कोशिश की कि इसका जल इतना साफ और स्वच्छ कैसे है और इसकी गहराई भी जानना चाही लेकिन आज तक कोई भी भीमकुंड के रहस्य को सुलझा नहीं पाया है।  मान्यता है कि महाभारत के समय जब पांडवों को अज्ञातवास मिला था तब वे यहां के घने जंगलों से गुजर रहे थे। उसी समय द्रौपदी को प्यास लगी। लेकिन, यहां पानी का कोई स्रोत नहीं था। द्रौपदी व्याकुलता देख गदाधारी भीम ने क्रोध में आकर अपने गदा से पहाड़ पर प्रहार किया। इससे यहां एक पानी ...

वृष राशि वालों के लिए बेहद शुभ है नवम्बर 2020

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  ज्योतिष : शास्त्रों के अनुसार कुल 12 राशियां होती हैं, जो जीवनचक्र के गणना में बहुत सहायक है। बारहों राशियों में से वृष राशि का दूसरा स्थान है। वृष राशि वालों के लिए नवम्बर 2020 यानि कार्तिक महीने में करियर के लिहाज से बेहद शुभ रहने की उम्मीद है। जो जातक व्यापार से जुड़े हैं उनके लिए समय अनुकूल रहेगा। आर्थिक लाभ के योग हैं। प्रेम के लिहाज से बात करें तो इस महीने प्यार में पड़े प्रेमी जातकों को शुभ परिणाम मिलेंगे। आर्थिक पक्ष के लिहाज से जातक को सावधान रहना होगा, अन्यथा नुकसान होने की संभावना है। कार्तिक माह में वृष राशि का स्वामी शुक्र का गोचर कन्या और तुला राशि में होगा। 16 नवम्बर तक शुक्र अपनी नीच राशि कन्या में रहेगा इसके बाद तुला में प्रवेश कर जाएगा। 16 नवम्बर तक के समय में रिश्तों के मामले में सावधान रहें। प्रेम सम्बन्ध, दाम्पत्य जीवन सभी में आपको सतर्क रहना है, किसी के बहकावे में आकर अपने रिश्तों को खराब न करें।    16 नवम्बर से शुक्र स्वराशि तुला में जाएगा, इससे जातक का आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। पैसों का आगमन अच्छा होगा। सोचे सभी कार्य समय पर पूरे होंगे। नई कार्ययोज...

कार्तिक का महीना शुरू, करेला और बैंगन वर्जित

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जीवनशैली : कार्तिक का महीना 1 नवम्बर 2020 से शुरू हो गया है। कार्तिक महीने में बैंगन और करेला इन दोनों सब्जियों को खाना भी शास्त्र में वर्जित बताया गया है। कार्तिक महीने में इन दोनों सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसकी वजह यह भी है कि कार्तिक का महीना साधन और संयम धारण करने का महीना है। बैंगन काम और उत्तेजना बढ़ाने का काम करता है इसलिए इस महीने में बैंगन खाना अच्छा नहीं माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से बैंगन पित्त दोष को बढ़ाने का काम करता है जबकि करेला वायु दोष को इसलिए इनसे परहेज रखने के लिए कहा गया है। वहीं कार्तिक का महीना महापुण्यदायी महीना कहा गया है। इस महीने में जो व्यक्ति नियमित सूर्योदय पूर्व स्नान करता है वह दूध से स्नान करने का फल पाता है और शरीर निरोग रहता है।   पुष्कर पुराण में बताया गया है कि जो व्यक्ति कार्तिक मास में सुबह शाम भगवान विष्णु के समक्ष तिल के तेल से दीप जलाकर भगवान विष्णु का पूजन करता है वह अतुल धन लक्ष्मी को पाता है। ऐसे लोग अपने पुण्य कर्मों से स्वर्ग में स्थान पाते हैं और अगले जन्म में धनवानों के घर में पैदा होते हैं। वहीं पद्म पुराण में बता...