सनातन धर्म में कुंभ, अर्धकुंभ व महाकुंभ का विशेष महत्व
आस्था : सनातन धर्म में कुंभ, अर्धकुंभ व महाकुंभ का विशेष महत्व है। कुंभ मेले का तात्पर्य है—एक सभा, मिलन, जो जल या अमरत्व का अमृत है। इस वर्ष यानि 2021 में कुंभ का आयोजन हरिद्वार में एक अप्रैल से शुरू होगा। महामारी के चलते कुंभ की अवधि 28 दिनों तक ही रखी गयी है। श्रद्धालुओं को कुंभ में शामिल होने की अनुमति तभी होगी जब वह कोरोना वायरस की निगेटिव रिपोर्ट पेश करेंगे जो उनके पहुंचने के 72 घंटे से पहले जारी नहीं की गई हो। इससे पहले कुंभ चार महीने से अधिक समय तक चलता था। तीन शाही स्नान एक अप्रैल से 28 अप्रैल के बीच होंगे। पहला शाही स्नान 12 अप्रैल (सोमवती अमावस्या), दूसरा 14 अप्रैल (बैसाखी) व तीसरा 27 अप्रैल (पूर्णिमा) को होगा। हर तीन वर्षों में हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज व नासिक में एक बार आयोजित होने वाले मेले को कुंभ, हरिद्वार और प्रयागराज में प्रत्येक छह वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ को अर्धकुंभ और 12 साल में आयोजित होने वाले कुंभ को पूर्ण कुंभ मेला कहते हैं। इसके अलावा केवल प्रयागराज में 144 वर्ष के अंतर पर आयोजित होने वाले कुंभ को महाकुंभ कहा जाता है। प्रत्येक 144 वर्षों में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होता है। 144 कैसे? 12 का गुणा 12 में करें तो 144 आता है। कुंभ भी बारह होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है शेष आठ का देवलोक में होता है। इसलिए प्रत्येक 144 वर्ष बाद प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। महाकुंभ का महत्व अन्य कुंभों की अपेक्षा अधिक माना गया है। वर्ष 2013 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था क्योंकि उस वर्ष पूरे 144 वर्ष पूर्ण हुए थे। मान्यता के अनुसार अगला महाकुंभ 138 वर्ष बाद आएगा। शास्त्रों के अनुसार देवताओं के बारह दिन अर्थात मनुष्यों के बारह वर्ष माने गए हैं इसीलिए पूर्णकुंभ का आयोजन भी प्रत्येक बारह वर्ष में ही होता है। कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयागराज में दो कुंभ पर्वों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है।
वहीं मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चंद्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुंभ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है। एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर कुंभ पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है। वहीं सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुम्भ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य व चंद्रमा के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है। वहीं सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्ष दायक कुंभ उज्जैन में आयोजित होता है। सनातन धर्म सभी कुंभ, अर्धकुंभ व महाकुंभ अति पवित्र माना गया है, यही कारण है कि ऐसे आयोजनों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है।
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