राम मंदिर पर भाजपा सरकार का सकारात्मक रवैया नहीं, नरेंद्र मोदी कर रहे हैं भारी चूक
लखनऊ। 26 मई 2014 को पहली बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लिया। चार साल पहले पूरे देश में उत्साह का माहौल था। धीरे-धीरे पांच साल बीतने वाला है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सकारात्मक रवैया न होना, भारतीयों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। भारतीय जनमानस में यह शब्द बड़े ही तेजी से तैर रहे हैं कि भाजपा सरकार राम मंदिर नहीं बनाएगी तो आखिर और कौन सी पार्टी राम मंदिर बनाएगी। आखिर जनसंघ का निर्माण इसीलिए तो किया गया था कि जनसंघ राजनीतिक पार्टी होने के साथ हिंदुओं के हित का सदा ध्यान रखेगी। कुछ वरिष्ठ जन बताते हैं कि जनसंघ का निर्माण इसलिए भी किया गया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मार्ग में आये अवरोध दूर करेगा। लेकिन जनसंघ आज भारतीय जनता पार्टी बन गयी है। तमाम झंझावतों के बाद जब अटल बिहारी ने केंद्र में सरकार बनायी थी तो उन्होंने भी कहा था कि अयोध्या का राम मंदिर हमारे एजेंडे में नहीं है। सर्वविदित है फिर दोबारा अटल की टीम सत्तासीन नहीं हो पायी और कांगे्रस ने खूब नोचा भारत माता को। थके, हारे, संघर्षरत हिंदू फिर नरेंद्र मोदी की नेतृत्व में भाजपा को अपनी राजनीतिक शक्ति बनाया।
हिंदू और हिंदूवादी संगठन अभी तक भारतीय जनता पार्टी की सरकार से खुश थे, लेकिन जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात चली तो मौजूदा भाजपा सरकार का कहना है कि वोट तो हमने विकास के नाम पर मांगे थे, लेकिन भाजपा के मौजूदा नेताओं को यह पूरी तरह से समझना होगा कि पार्टी का उदय आखिर हुआ क्यों है। गौरतलब है कि हिंदूवादी संगठनों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक भी 25 नवम्बर को अयोध्या में शक्ति प्रदर्शन करेगा। हिंदूवादी संगठन जोर देकर कह रहे हैं कि यदि राम मंदिर का निर्माण नहीं हुआ तो नरेंद्र मोदी के लिए केंद्र में सरकार बनाना सपने जैसा होगा। चूंकि तमाम प्रयासों के बाद उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि राम मंदिर मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर 2018 से नियमित होगी, लेकिन सिर्फ तीन से चार मिनट के फैसले में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला सुना दिया कि राम मंदिर के अलावा हमारे पार और भी अहम कार्य हैं। अब राम मंदिर मामले की सुनवाई जनवरी 2019 से होगी। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से देश में राजनीतिक और सामाजिक चर्चाएं तेज हो गयी हैं। हिंदूवादी संगठन कह तो यहां तक रहे हैं कि जिस तरह अयोध्या में बाबरी ढांच ढहाया था, उसी तरह राम मंदिर भी बना लेंगे। लेकिन सरकारें ऐसा नहीं चाह रही हैं, सरकारें सामाजिक विद्रोह करवाने पर उतारू हैं। अगर सरकार के लिए राम मंदिर मजबूरी है या अहम नहीं है तो फिर कांगे्रस और भाजपा में अंतर ही क्या रह जाएगा। ज्ञात हो कि हिंदुत्व को धार देने के लिए भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया था, हिंदुओं को विश्वास था मोदी सरकार राम मंदिर बनवाएगी, लेकिन सरकार के ढुलमुल रवैये से हिंदू सतर्क हो गये हैं और राम मंदिर निर्माण के लिए गतिविधियां तेज कर दी हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थानीय दायित्वधारी ने बताया कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से हिंदू समाज अपमानित हुआ है। हिंदू ही हिंदू का दुश्मन है, कुछ हिंदू भाई नहीं चाहते कि शौर्य और गौरव के प्रतीक राम की मंदिर अयोध्या में न बने, इन्हीं हिंदू भाइयों का शह पाकर मुस्लिम और कम्युनिस्ट भी देशविरोधी गतिविधियांें में लिप्त हैं। हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि हम चाहते हैं आपसी सौहार्द से राम मंदिर का निर्माण हो, लेकिन सरकारें और अदालतें ऐसा नहीं चाहतीं। अयोध्या पर कितने जुल्म हुए यह किसी से छिपा नहीं है। दुनिया जानती है सच क्या है लेकिन किसी में सत्य बोलने की माद्दा नहीं है, सिर्फ हिंदू ललकार कर कहते हैं जय श्री राम। हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि जब वह राम का नाम लेते हैं तो उनका रोम-रोम स्फूर्ति से भर जाता है, राम हमारे ऊर्जा के प्रतीक हैं। दुनिया जानती है कि एक बार राम मंदिर बन गया तो फिर हिंदुओं को संभाल पाना मुश्किल होगा, इन्हें प्राण वायु जो मिल जायेगा। संघ के स्वयंसेवक बड़े गर्व से कहते हैं कि जिस तरह सूर्य को उगने से कोई रोक नहीं सकता, उसी तरह हिंदुओं का उदय कोई रोक नहीं सकता। हिंदूवादी संगठनों के अलावा देश के साधु, संतों ने भी राम मंदिर निर्माण के लिए कमर कस ली है और 25 नवम्बर 2018 को हिंदू अयोध्या में शक्ति प्रदर्शन के लिए इकट्ठा होंगे। उच्चतम न्यायालय के साथ सभी सरकारों को यह समझ लेना चाहिए, भारत आध्यात्मिक देश है इसे व्यापारिक देश बनाने से बचना चाहिए। अध्यात्म से ही विश्व गुरू बना जा सकता है, यह विश्व समुदाय नहीं चाहता, लेकिन हिंदुओं के हौंसले बुलंद हैं।
अभिषेक त्रिपाठी
दूरभाष: 8765587382
लखनऊ, उत्तर प्रदेश।
हिंदू और हिंदूवादी संगठन अभी तक भारतीय जनता पार्टी की सरकार से खुश थे, लेकिन जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात चली तो मौजूदा भाजपा सरकार का कहना है कि वोट तो हमने विकास के नाम पर मांगे थे, लेकिन भाजपा के मौजूदा नेताओं को यह पूरी तरह से समझना होगा कि पार्टी का उदय आखिर हुआ क्यों है। गौरतलब है कि हिंदूवादी संगठनों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक भी 25 नवम्बर को अयोध्या में शक्ति प्रदर्शन करेगा। हिंदूवादी संगठन जोर देकर कह रहे हैं कि यदि राम मंदिर का निर्माण नहीं हुआ तो नरेंद्र मोदी के लिए केंद्र में सरकार बनाना सपने जैसा होगा। चूंकि तमाम प्रयासों के बाद उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि राम मंदिर मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर 2018 से नियमित होगी, लेकिन सिर्फ तीन से चार मिनट के फैसले में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला सुना दिया कि राम मंदिर के अलावा हमारे पार और भी अहम कार्य हैं। अब राम मंदिर मामले की सुनवाई जनवरी 2019 से होगी। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से देश में राजनीतिक और सामाजिक चर्चाएं तेज हो गयी हैं। हिंदूवादी संगठन कह तो यहां तक रहे हैं कि जिस तरह अयोध्या में बाबरी ढांच ढहाया था, उसी तरह राम मंदिर भी बना लेंगे। लेकिन सरकारें ऐसा नहीं चाह रही हैं, सरकारें सामाजिक विद्रोह करवाने पर उतारू हैं। अगर सरकार के लिए राम मंदिर मजबूरी है या अहम नहीं है तो फिर कांगे्रस और भाजपा में अंतर ही क्या रह जाएगा। ज्ञात हो कि हिंदुत्व को धार देने के लिए भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया था, हिंदुओं को विश्वास था मोदी सरकार राम मंदिर बनवाएगी, लेकिन सरकार के ढुलमुल रवैये से हिंदू सतर्क हो गये हैं और राम मंदिर निर्माण के लिए गतिविधियां तेज कर दी हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थानीय दायित्वधारी ने बताया कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से हिंदू समाज अपमानित हुआ है। हिंदू ही हिंदू का दुश्मन है, कुछ हिंदू भाई नहीं चाहते कि शौर्य और गौरव के प्रतीक राम की मंदिर अयोध्या में न बने, इन्हीं हिंदू भाइयों का शह पाकर मुस्लिम और कम्युनिस्ट भी देशविरोधी गतिविधियांें में लिप्त हैं। हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि हम चाहते हैं आपसी सौहार्द से राम मंदिर का निर्माण हो, लेकिन सरकारें और अदालतें ऐसा नहीं चाहतीं। अयोध्या पर कितने जुल्म हुए यह किसी से छिपा नहीं है। दुनिया जानती है सच क्या है लेकिन किसी में सत्य बोलने की माद्दा नहीं है, सिर्फ हिंदू ललकार कर कहते हैं जय श्री राम। हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि जब वह राम का नाम लेते हैं तो उनका रोम-रोम स्फूर्ति से भर जाता है, राम हमारे ऊर्जा के प्रतीक हैं। दुनिया जानती है कि एक बार राम मंदिर बन गया तो फिर हिंदुओं को संभाल पाना मुश्किल होगा, इन्हें प्राण वायु जो मिल जायेगा। संघ के स्वयंसेवक बड़े गर्व से कहते हैं कि जिस तरह सूर्य को उगने से कोई रोक नहीं सकता, उसी तरह हिंदुओं का उदय कोई रोक नहीं सकता। हिंदूवादी संगठनों के अलावा देश के साधु, संतों ने भी राम मंदिर निर्माण के लिए कमर कस ली है और 25 नवम्बर 2018 को हिंदू अयोध्या में शक्ति प्रदर्शन के लिए इकट्ठा होंगे। उच्चतम न्यायालय के साथ सभी सरकारों को यह समझ लेना चाहिए, भारत आध्यात्मिक देश है इसे व्यापारिक देश बनाने से बचना चाहिए। अध्यात्म से ही विश्व गुरू बना जा सकता है, यह विश्व समुदाय नहीं चाहता, लेकिन हिंदुओं के हौंसले बुलंद हैं।
अभिषेक त्रिपाठी
दूरभाष: 8765587382
लखनऊ, उत्तर प्रदेश।
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