कुटिल गीदड़ और बकरी

बोधकथा : सुंदरवन में कुटिलराज नाम का एक गीदड़ रहा करता था। नाम के अनुसार, वह अपनी कुटिलता के लिए कुख्यात था। एक दिन वह शिकारियों द्वारा खोदे गए गड्ढे में गिर गया। बहुत प्रयत्न करने पर भी वह बाहर न निकल सका। थक—हारकर वह वहीं बैठ गया था कि उसे एक बकरी की आवाज सुनाई पड़ी, जिसे सुनते ही उसने तत्काल एक योजना बनाई। वह बकरी को पुकार कर बोला— बहन, जरा देखो, यहां कितनी हरी—हरी घास और मीठा पानी है। यहां आओ और इस हरियाली का जी भर कर लाभ उठाओ। कुटिलराज गीदड़ की बातें सुनकर वह सीधी बकरी गड्ढे में कूद गई। उसके कूदते ही गीदड़ बकरी की पीठ पर चढ़कर बाहर कूद गया और फिर बकरी को सम्बोधित करते हुए बोला—तुम तो मूर्ख की मूर्ख ही ठहरी। खुद ही गड्ढे में करने आ गई। बकरी उसी निश्चिंतता के साथ बोली— भाई गीदड़ मैं तो परोपकार करते हुए मर जाने को ही धर्म समझती हूं। शिकारियों के लिए तो मैं किसी काम की नहीं, मुझे तो वे शायद वैसे ही निकाल लें, लेकिन इस संवेदनहीनता के साथ तुम किसको अपना बना पाओगे, ये तुम्हें जरूर सोचना चाहिए। बकरी की बातें गीदड़ के हृदय में चुभ गईं और उसने अपने जीवन की राह बदल ली।

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