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त्योहारों का महीना भाद्रपद मास शुरू

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ज्योतिष। शास्त्र के अनुसार 12 अगस्त 2022 दिन शुक्रवार को प्रात: 7 बजकर 5 मिनट से सावन माह समाप्त होने के साथ भाद्रपद महीने की शुरुआत हो गयी है। भाद्रपद महीना चातुर्मास का दूसरा माह है। इस भाद्रपद महीने में श्री​कृष्ण जन्माष्टमी 18 अगस्त, गणेश चतुर्थी, राधा अष्टमी, अनंत चतुर्दशी, कजरी तीज, भाद्रपद अमावस्या, भाद्रपद पूर्णिमा, प्रदोष व्रत व मासिक शिवरात्रि  जैसे व्रत और त्योहार पड़ रहे हैं। मान्यता है कि भाद्रपद पूर्णिमा के दिन गंगा या नर्मदा जैसी पवित्र नदी में स्नान करने से भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण पूजा आयोजित की जाती है। इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों के लिए अनाज, दालें, नमक खाना वर्जित है। भाद्रपद पूर्णिमा का दिन ‘महा मृत्युंजय हवन’ करने की भी परम्परा है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन लोग अम्बा देवी मंदिर में देवी को प्रसन्न करने के लिए लोक नृत्य करते हैं ताकि श्रद्धालुओं को अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि मिले। भाद्रपद माह में गुड़, दही और उससे बनी चीजों का सेवन नुकसानदायक माना गया है क्योंकि इससे पेट सम्बन्धी समस्याएं हो सकती हैं। भाद्र...

बारिश की भविष्यवाणी करने वाला मंदिर

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लखनऊ। कानपुर स्थित बेहटा गांव में भगवान जगन्नाथ का मंदिर भीतरगांव विकासखंड से सिर्फ 3 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर बारिश की भविष्यवाणी पहले ही कर देता है। बारिश होने के 6 से 7 दिन पहले से ही इस मंदिर की छत से पानी की बूंदें टपकने लगती हैं। लोग बताते हैं कि जिस साइज की बूंद होती है, उसी तरह की बारिश होती है। यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है और यहां दूर-दूर से लोग दर्शन करते आते हैं। जैसे-जैसे बारिश खत्म होती जाती है, वैसे-वैसे मंदिर की छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है, मंदिर के अंदर भगवान जगन्नाथ की मूर्ति है। इस मूर्ति में विष्णु भगवान के 24 अवतार देखे जा सकते हैं, इन 24 अवतारों में कलियुग में अवतार लेने वाले कल्कि भगवान की भी मूर्ति मंदिर में मौजूद है। इस मंदिर के गुम्बद पर एक चक्र लगा हुआ है जिसकी वजह से आज तक मंदिर और इसके आसपास आकाशीय बिजली नहीं गिरी है। बता दें कि इस मंदिर के बारे में जानकारी नहीं है कि कब और किसने बनवाया, लेकिन मंदिर में कुछ ऐसे निशान मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि यह मंदिर सम्राट हर्षवर्धन के समय का है। हालाँकि इसके अलावा मंदिर में उपस्थित अयागपट्ट के आधार पर कई इ...

हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते

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सुभाषित शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे-गजे। साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने। यानि हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते, हर एक हाथी में गंडस्थल में मोती नहीं होते साधु सर्वत्र नहीं होते, हर एक वन में चंदन नहीं होता। उसी तरह दुनिया में भली चीजें या लोग बहुतायत में सभी जगह नहीं मिलते। ऋत्विक्पुरोहिताचार्यैर्मातुलातिथिसंश्रितैः। बालवृद्धातुरैर्वैधैर्ज्ञातिसम्बन्धिबांन्धवैः।। मातापितृभ्यां यामीभिर्भ्रात्रा पुत्रेण भार्यया। दुहित्रा दासवर्गेण विवादं न समाचरेत्। यानि यज्ञ करने वाले ब्राह्मण, पुरोहित, शिक्षा देने वाले आचार्य, अतिथि, माता-पिता, मामा आदि सगे संबंधी, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री, पत्नी, पुत्रवधू, दामाद, गृह सेवक यानि नौकर से कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। 

ईर्ष्या का फल

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सुविचार। ईर्ष्या का फल ईर्ष्या करने वाले को ही भोगना पड़ता है। ईर्ष्या मृत्यु का ही रूप है। जिस प्रकार मृत्यु मन को मूर्छित कर देती है, सगे-सम्बन्धियों की पहचान का ज्ञान नहीं रहने देती, वैसे ही ईर्ष्या भी मन को मूर्छित कर देती है। जो ईर्ष्या रूपी रोग में फंसे रहते हैं वह अपने जीवन और आयु का हृास करते रहते हैं। उनकी विचारशक्ति नष्ट हो जाती है। मन का कार्य है विचार करना, विवेक द्वारा हिताहित और भले-बुरे की परख करना, आत्मबोध करना। जिस मन में ईर्ष्या में आसन लगा लिया है, उसे और क्या सूझेगा। ईर्ष्या के कारण उस विवेक बुद्धि का नाश हो जायेगा, जिसके कारण मनुष्य, मनुष्य कहलाता है। जब मनुष्य तत्व का आधार ही लुप्त हो गया, तब उसके मरने में संदेह ही क्या रहा। ईर्ष्या एक ऐसा शब्द है जो मानव के खुद के जीवन को तो तहस-नहस करता है औरों के जीवन में भी खलबली मचाता है। यदि आप किसी को सुख या खुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरों के सुख और खुशी देखकर जलिए मत। ईर्ष्यावश दूसरों पर क्रोध करते समय मन जिह्वा तथा मुख मलिन होते हैं।

दूसरों का भला करें

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बोधकथा। एक बार की बात है-राजा ने कैदी को मौत की सजा सुनाई। सजा सुनकर कैदी राजा को गालियां देने लगा। कैदी दरबार के आखिरी कोने में खड़ा था। इसलिए उसकी गालियां बादशाह को सुनाई नहीं पड़ रहीं थीं। इसलिए राजा ने अपने सलाहकार से पूछा कि वह क्या कह रहा है? इस पर सलाहकार ने बताया कि महाराज कैदी कह रहा है कि वे लोग कितने अच्छे होते हैं जो अपने क्रोध को पी जाते हैं और दूसरों को क्षमा कर देते हैं। यह सुनकर बादशाह को दया आ गई और उसने कैदी को माफ कर दिया, लेकिन दरबारियों में एक व्यक्ति था जो सलाहकार से जलता था। उसने कहा कि महाराज, वजीर ने आपको गलत बताया है, यह व्यक्ति आपको गंदी-गंदी गालियां दे रहा है, आप इसको माफ मत करिए, उसकी बात सुनकर बादशाह गुस्सा हो गये और दरबारी से बोला- मुझे सलाहकार की बात ही सही लगी। क्योंकि इसने झूठ भी बोला है तो किसी की भलाई के लिए। सलाहकार के अंदर भलाई करने की हिम्मत तो है। जबकि तुम दरबार में रहने के योग्य नहीं हो, तुम्हें तुरंत बेदखल किया जाता है। यानि कि जो दूसरों की भलाई के लिये सोचता है, उसका अपने आप भला हो जाता है।

राजर्षि रणंजय की पुण्यतिथि पर किया हवन

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लखनऊ। अमेठी जिले में शुक्रवार को राजपरिवार अमेठी से जुड़े शैक्षणिक संस्थाओं में राजर्षि रणंजय सिंह की 34वीं पुण्यतिथि पर वैदिक यज्ञ-हवन आयोजित किया गया। आरआरपीजी कालेज के प्राचार्य प्रो. पी.के. श्रीवास्तव ने राजर्षि के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राजर्षि ने वैदिक धर्म प्रचार, शिक्षा प्रसार और समाज सुधार को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को छल-कपट छोडक़र अपने बुद्धि और ज्ञान का प्रयोग सकारात्मक दिशा में करना चाहिए। यज्ञ में पुरोहित के रूप में महाविद्यालय के अवकाश प्राप्त शिक्षक डा.ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने राजर्षि के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एक राजा होते हुए इतना सामान्य जीवन जीना सामान्य बात नहीं है। ऐसा कोई ऋषि ही कर सकता है इसीलिए उन्हें राजर्षि की उपाधि प्रदान की गयी थी। कार्यक्रम में डा. सुभाष सिंह, डा. लाजो पाण्डेय, डा. उमेश सिंह, डा. ओम प्रकाश त्रिपाठी, डा. सुरेन्द्र प्रताप यादव, डा. पवन कुमार पाण्डेय, डा. अरविन्द कुमार सिंह, डा. ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह, धर्मेन्द्र सिंह, राजकुमार यादव, डा. राम सुन्दर यादव, डा. मानवेन्द्र प्र...

श्रावणी पूर्णिमा को जनेऊ धारण करने का उत्तम समय

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  आस्था। सावन माह की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यानि 2022 में सावन पूर्णिमा 11 अगस्त को है। कुल जानकार 12 अगस्त को रक्षाबंधन मनाने की सलाह दे रहे हैं। शास्त्रों के अनुसार श्रावण पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेते हैं और पुराने जनेऊ का त्याग कर नया जनेऊ धारण करते हैं। पंडित कामता प्रसाद मिश्र बताते हैं कि सनातन धर्म में विवाह और मुंडन जैसे कुल 16 संस्कार होते हैं, इन्हीं में जनेऊ या यज्ञोपवीत भी एक संस्कार है। यह एक ऐसा पवित्र सूत होता है, जिसे कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहना जाता है। जनेऊ में तीन-सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक, देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक, सत्व, रज और तम के प्रतीक होते हैं। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक हैं तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। इनमें एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। यानि हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से ...