मुस्कुराहट का सौंदर्य



विचार : सफल व्यक्ति का समर्थन किया जाता है और असफल को चिढ़ाया जाता है। इस दुनिया का यही कायदा है। सफलता इस बात का प्रमाण मानी जाती है कि व्यक्ति चतुर, क्रियाशील, बुद्धिमान एवं भाग्यवान है। ऐसे का हर कोई साथ देना चाहता है। इसके विपरीत जो पराजित असफल है उसे मूर्ख, अयोग्य एवं भाग्यहीन समझा जाने लगता है। उसकी आलोचना न सही उपेक्षा तो होती ही है। उसे कोई साथी नहीं बनाना चाहता। खिले हुए फूल पर तितली, भौंंरे, मधुमक्खी झुण्ड बनाकर बैठे रहते हैं, लेकिन फूल मुरझाकर झड़ जाता है तो उन प्रशंसकों में से कोई भी उसकी खोज खबर लेने नहीं आता है। आम पर फूल और फल लदने के मौसम में कोयल कूकती है किन्तु जब वह ऋतु चली जाती है तो कूकना भी बन्द हो जाता है। वर्षा में खर—पतवार भी लहलहाने लगते हैं लेकिन ग्रीष्म में हरे—भरे पत्ते भी झुलस जाते हैं। सफलता में सभी हिस्सेदार बनना चाहते हैं, पर असफलता का दौर जब भी आता है तो पल्ला झाड़कर वे भी अलग हो जाते हैं, जो कभी मित्रता का दावा करते थे।
सम्पत्ति में भागीदार बनने के लिए कितने ही लालायित रहते हैं किन्तु विपत्ति में हर कोई पल्ला झाड़कर अलग हो जाता है। यह प्रचलन अवांछनीय अनुपयुक्त है, फिर भी जो स्थिति है यह तो अपने ढर्रे पर चलेगी, उसे सहज ही बदला नहीं जा सकता। विजेता पर फूल बरसाये जाते हैं और पराजित की ओर से मुंह मोड़ लिया जाता है। हम अपने आपको सदा विजेता के रूप में प्रस्तुत करें। फलत: अनेक लोगों का सम्मान मिलेगा। यदि पराजित, दरिद्र, दुर्भागी के रूप में सामने आयेंगे, तो उपेक्षा के अतिरिक्त और कुछ हाथ न लगेगा। जब हम हंसते हैं तो दूसरे उपस्थित लोग भी हंसने, मुस्कुराने लगते हैं। हंसने वाले को बच्चे भी घेरे रहते हैं और रोने वाले वृद्धों के पास बैठने और उनकी बात सुनने के लिए परिवार के लोग भी उपस्थित नहीं रहते। हम सफल रहे हैं या असफल—इसका प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए सफलताओं का लम्बा विवरण सुनाने की आवश्यकता नहीं है। यह समूचा प्रयोजन एक साधारण से उपचार के द्वारा पूरा हो जाता है। वह उपाय है—मुस्कुराना। सफलता के दिनों हर किसी के चेहरे पर उसकी अभिव्यक्ति मुस्कुराहट के रूप में देखी जा सकती है। वह अनायास ही उभरती है। बड़े काम सदा बन पड़े और उनमें बढ़—चढ़कर सफलता मिलकर ही बड़े यह आवश्यक नहीं। साथ ही यह भी जरूरी नहीं कि सफलता के साथ कोई आशंका जुड़ी हुई न हो। ऐसी दशा में वह प्रसन्नता उथले स्तर की भी हो सकती है। कुछ ही क्षण में विलीन भी हो सकती है। होना यह चाहिये कि चेहरे पर प्रसन्नता निरंतर बनी रहे ताकि देखने वाले हर किसी को यह लगता रहे कि उसका समूचा जीवन सफलताओं के साथ ही जुड़ा हुआ है। यह घटनाक्रम के हिसाब से सम्भव नहीं। उनमें तो उतार—चढ़ाव आते ही रहते हैं। परिवर्तनशील समय में खिलाड़ियों की तरह हार जीत के अवसर आते—जाते ही रहते हैं। इन पर निर्भर रहा जाय तो कभी हंसी कभी खिन्नता का परिवर्तन चलता रहेगा। प्रसन्नता दार्शनिक होनी चाहिए। मनुष्य जीवन का सुयोग मिला यह कम प्रसन्नता की बात नहीं। असंख्य अनगढ़ों और अशिक्षितों के बीच उसकी गणना सभ्यजनों में होती है। अपने को कर्तव्यपालन मर्यादा का बोध है। विवेक का, औचित्य—अनौचित्य का वर्गीकरण करते बन पड़ता है। साधनों की दृष्टि से भी निर्वाह के योग्य समुचित साधन हैं, जबकि असंख्यों को भूखे, नंगे दिन गुजारने पड़ते हैं, जो उपलब्ध है उसका लेखा—जोखा लेने पर सहज हो यह आभास होता है कि अपनी स्थिति जहां सौ से कम है वहां हजार से अधिक अच्छी भी है। अभाव वाले पक्ष को विस्मृत कर दिया जाय और मात्र उपलब्धियों को गिना, सम्भाला जाय तो प्रतीत होगा कि स्थिति कम संतोषजनक नहीं है। वह वैसी है जिस पर प्रसन्न रहा जा सकता है और चेहरा मुस्कुराहट से चेहरा मुस्कुराहट से शोभायमान हो सकता है। ऐसे चेहरे को देखकर दर्शकों में से प्रत्येक को आभास होता है कि इसकी स्थिति हमसे कहीं अच्छी है। यह ऐसा न होता तो मुस्कुराहट से चेहरा खिले कमल जैसा विकासमान क्यों दृष्टिगोचर होता। दुखती आंखों को देखते हैं तो अपनी आंखें भी लालिमा ले आती है। किसी को उलटी हो रही हो तो उस घृणास्पद दृश्य को देखकर अपने को भी मितली आने लगती है। रोते हुए समुदाय को बिलखता देखकर अपनी आंखें भी नम हो आती हैं। इसी प्रकार किसी को मुस्कुराते देखकर अपनी भी उदासी दूर होती है और प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। इसी प्रकार के व्यक्ति के साथ रहना पसन्द करते हैं, जो स्वयं प्रसन्न रहें और दूसरों को खुशी का रसास्वादन करायें। रोते—कपलते, खिन्न—उद्विग्न, क्रोधी, उदास, आवेशग्रस्त के साथ देर तक ठहरने की किसी की भी इच्छा नहीं होती, सभी उससे दूर रहना, बचना चाहते हैं। प्रसन्नता आदत के रूप में भी किसी के स्वभाव में सम्मिलित हो सकती है। कई व्यक्ति, दांतों से नाखून काटने, नाक—कान में उंगली करने, जमीन कुरेदने, कंधा मटकाने आदि के आदी हो जाते हैं। बात करने में कोई शब्द तकिया कलाम बना लेते हैं और उसके प्रयोग की आवश्यकता न होने पर भी उसे बिना अवसर भी कहते रहते हैं। इसी प्रकार मुस्कुराने की आदत अनायास ही डाली जा सकती है। बिना कोई कारण रहे भी मंद मुस्कान का अभ्यास किया जा सकता है। व्यक्ति कितना ही कुरूप क्यों न हो, दांत आड़े—टेढ़े ही क्यों न हों पर मुस्कुराहट के साथ प्रसन्नता ही नहीं सुंदरता भी उभर पड़ती है। इस तथ्य को कोई भी दर्पण सामने रखकर जांच सकता है। उदास और प्रसन्न चेहरे की शोभा, सुंदरता में जमीन—आसमान जैसा अंतर होता है।



हंसना प्रभावोत्पादक है, उसमें सहज अपनापन होता है कि इस व्यक्ति का जीवन सफलताजन्य प्रसन्नता से भरा हुआ है। उसके साथ इस आशा से लोग लगे रहते हैं कि इस प्रसन्नता को निरखते हुए अपने को भी हलकेपन की प्रतीति होगी। लोग उसके मित्र बनना चाहते हैं, उसके साथ लगना चाहते हैं, जिसे सौभाग्यशाली होने का अवसर प्राप्त है। अपनी स्थिति इसी प्रकार की है यह जताने के लिए इतना भर पर्याप्त है कि हंसने की आदत डाली ली जाय। अमीरी जताने के लिए लोग ठाठ—बाट बनाते हैं। कीमती जेवर, प्रेस वाले कपड़े, इत्र आदि का उपयोग करते हैं। यह खर्च उठाना और समय लगाना मात्र इसलिए होता है कि दूसरों पर अमीरी की छाप पड़े। यह झंझट भरा तरीका है। बिना किसी साज—सज्जा के सुंदर ही नहीं अमीर भी दिखने का तरीका यह है कि हंसती—हंसाती चुस्त मुद्रा का अभयास किया जाय। अलमस्त व्यक्ति वे कहे जाते हैं, जो चिंतन रहित होते हैं। जिन्हें न विपत्ति की परवाह होती है न अनिष्ट की आशंका। ऐसे निश्चिन्त, निद्र्वन्द व्यक्ति सर्वत्र मान पाते हैं और भाग्यवान समझे जाते हैं। इस वर्ग में आने के लिए चेहरे पर मुस्कुराहट लायी एवं कायम रखी जाय। मुस्कुराहट मस्तिष्क और शरीर में स्वस्थता बनाये रहती है। उससे बीमारियां भी दूर रहती हैं। इसे आरोग्य और प्रफुल्लता की कुंजी भी कहा जा सकता है।

                                                                                                                                                            
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