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दादू महाराज और कोतवाल

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लघुकथा। एक बार की बात है, दादू महाराज से एक कोतवाल को मिलना था। रास्ते में एक आदमी मिला, जो सड़क के कांटे साफ कर रहा था, उससे पूछा, क्यों रे! दादू महाराज कहां रहते हैं! दादू जी ने इशारे से बता दिया कि सामने वाली झोपड़ी उन्हीं की है। रूखा जवाब सुनकर कोतवाल गुस्सा हुआ और गाली देते हुये झोपड़ी की ओर चल दिया। सिर पर कांटे का बोझ लादे दादू वहां पहुंचे, तो कोतवाल को गाली देने का दु:ख हुआ और दादू महाराज से क्षमा मांगी। दादू महाराज ने कहा कि इसमें आपका कोई दोष नहीं, दोष उस पूर्वाग्रह भरी आपकी मनुष्य सम्बन्धी मान्यता का है, जो आपके मुख से ऐसे वचन निकालती है। मनुष्य मात्र में आप ईश्वर को देखने लगेंगे, तो यह आदत स्वत: छूट जायेगी। बता दें कि वेदों में वर्णित है कि ऋषि कहते हैं कि परमेश्वर हमारे परम पिता हैं, उनसे जितना लगाव रखेंगे, जीवन उतना सुखी रहेगा। जिस तरह पिता अपने बच्चों को प्रसन्न देखकर आनंदित होता है, उसी तरह परमपिता परमेश्वर अपने बच्चों को हर्षित देखकर उल्लसित व प्रफुल्लित होते हैं। यानि, मनुष्य में देवत्व भाव है।

15 मई को वृष राशि में पहुंचेंगे सूर्य, बढ़ेगी तपिश

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ज्योतिष। शास्त्र के अनुसार वृष राशि में सूर्य का परिवर्तन 15 मई 2022 को होगा। 15 मई को प्रात: 5:44 बजे सूर्य का मेष राशि से वृषभ राशि में गोचर होगा। मेष राशि से वृष राशि में सूर्य का संक्रमण वृषभ संक्रांति कहलाता है। वृषभ संक्रांति का पुण्य काल सिर्फ 14 मिनट का होगा, जो सुबह 5 बजकर 30 मिनट से सुबह 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। इस दिन महापुण्य काल की अवधि भी इसी समय होगी। सूर्य की एक सं​क्रांति या सूर्य एक राशि में करीब 30 दिनों तक रहता है, उसके बाद दूसरी राशि में प्रवेश करता है। ऐसे में 15 मई को वृषभ राशि में गोचर करने के बाद 15 जून 2022 तक इस राशि में सूर्य विद्यमान रहेगा। उसके बाद वह मि​थुन राशि में प्रवेश करेगा, तब सूर्य की मि​थुन संक्रांति होगी। वहीं वृषभ संक्रांति ज्येष्ठ माह की शुरुआत को भी दर्शाती है। इस दौरान सूर्य रोहिणी नक्षत्र में आते हैं और नौ दिनों तक गर्मी बढ़ाते हैं, जिसे नवतपा कहा जाता है। वृषभ संक्रांति में ग्रीष्म ऋतु अपने चरम पर रहती है। वृषभ संक्राति पर दान पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन गोदान को विशेष माना जाता है। बिना दान वृषभ संक्रांति की पूजा अधूरी मानी जाती है। वृ...

अपने दायित्वों का निर्वहन करें शिक्षक

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विचार। शास्त्रों में माता, पिता व आचार्य तीनों को बालक के जीवन निर्माण में अहम माना गया है। माता, पिता उसका पालन पोषण, संवद्र्धन करते हैं तो आचार्य उसके बौद्धिक, आत्मिक चारित्रिक गुणों का विकास करता है, उसे जीवन और संसार की शिक्षा देता है। उसकी चेतना को जागरूक बनाता है। इसीलिए हमारे यहां गुरु को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, गुरु को पूज्यनीय माना गया है। आचार्य के शिक्षण, उसके जीवन व्यवहार, चरित्र से ही बालक जीवन जीने का ढंग सीखता है। आचार्य की महती प्रतिष्ठा हमारे यहां इसलिए हुई। आज हमारे यहां शिक्षक हैं, अध्यापक हैं, वे छात्रों को निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षा देते हैं, किंतु सबसे महत्वपूर्ण बात जीवन निर्माण का व्यावहारिक शिक्षण आज नहीं हो पाता। आज गुरु, शिष्य शिक्षक और छात्र का सम्बन्ध पहले जैसा नहीं रहा। सिर्फ कुछ अक्षरीय ज्ञान दे देने, एक निश्चित समय तक कक्षा में उपस्थित रहकर कुछ पढ़ा देने के बाद शिक्षक का कार्य समाप्त हो जाता है और पाठ पढ़ने के बाद विद्यार्थी का। मनुष्य से ही मनुष्य सीख सकता है। जिस तरह जल से ही जलाशय भरता है, दीप से ही दीप जलता है, उसी प्रकार प्राण से प्र...

सकारात्मक सोच का परिणाम

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लघुकथा। एक लड़की को सपने में शेर दिखाई देता, वह इससे हमेशा डर जाती। परिजन लड़की को मनोचिकित्सक के पास ले गये, मनोचिकित्सक ने लड़की से कहा कि वह शेर तो मुझे भी रोज दिखाई देता है, वह शेर तो बहुत भला है, काटता बिल्कुल नहीं, खेल व दौड़ के लिये वह साथी ढूंढ रहा है इसलिये वह सपने में आता है। मनोचिकित्सक ने लड़की से कहा कि अबकी बार शेर सपने में आये तो उससे दोस्ती करना, फिर देखना कि शेर आपके साथ कैसे खेलता है। लड़की का समाधान हो गया, लड़की को रात में सपना अब भी आता, लेकिन वह डरने की ​बजाय हंसने-मुस्कुराने लगी, वह बिल्कुल निडर बन गयी। इसलिये कहा जाता है कि मन में हमेशा सद्विचार लाने चाहिये, जिससे स्वप्न भी दिखे तो वह भी श्रेष्ठ हो।

कठिन कार्य करने की आदत डालें

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विचार। आज का काम कल पर न टालना एक सराहनीय सद्गुण है। उसी प्रकार श्रमसाध्य कार्यों को सबसे पहले करने का निश्चित ही सफलता का स्वर्णिम सूत्र है। अपने कर्तव्यों से छुटकारा नहीं पाया जा सकता, देर-सवेर उन कार्यों को पूरा करना ही पड़ता है फिर क्या जरूरी है कि हम दूसरे कामों में लगे रहकर कठिन कार्यों का बोझ अपने मन-मस्तिष्क पर बनाये रखें। सूक्ष्म दृष्टि से देखना चाहिए कि कहीं हममें कठिन कार्यों को टालने, श्रमसाध्य कर्तव्यों से बचने की आदत तो नहीं पड़ गयी है। यदि आत्मनिरीक्षण के द्वारा ऐसी स्थिति का पता चले तो दृढ़ निश्चय करना चाहिए। जिन कार्यों को हम सबसे पीछे टालते रहे हैं, उन्हें ही सबसे पहले कर लें। परीक्षा में कठिन प्रश्नों को सबसे पहले हल करके आसान सवालों का उत्तर उनके बाद करने की पद्धति सफलता प्राप्त करने का आसान उपाय है। यदि यह आदत डाल ली जाये तो जो काम सबसे कठिन दिखाई पड़ते हैं, वह बहुत आसान लगने लगते हैं। उन्हें हम ही कठिन बनाते हैं, अपनी टालने की वृत्ति से। इस वृत्ति के कारण आसान और सहज साध्य कार्य भी धीरे-धीरे कठिन लगने लग जाते हैं। कम कठिनाई के कार्य पहले करने की आदत मनुष्य को प्र...

ईको-टूरिज्म को बढ़ावा दे रही है योगी सरकार

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विश्लेषण। ईको-टूरिज्म पॉलिसी के तहत सम्भावित क्षेत्रों में स्थानीय लोगों के सहयोग से बिना प्रकृति को नुकसान पहुंचाये पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए आवश्यक सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की इस नीति से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, साथ ही स्थानीय स्तर पर उत्पादित विभिन्न प्रकार के कुटीर उद्योगों की विभिन्न वस्तुओं का विक्रय व राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनेगी। स्थानीय स्तर पर उत्पादित वस्तुओं के विक्रय से लोगों में आर्थिक समृद्धि आयेगी। सरकार की एक जनपद एक उत्पाद नीति के तहत जिला/क्षेत्र विशेष की उत्पादित वस्तुओं की पहचान भी बनेगी। उत्तर प्रदेश सरकार आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देने के लिए ईको-टूरिज्म को बढ़ावा दे रही है। प्रदेश सरकार पर्यटन एवं ग्रामीण विकास थीम पर प्रकृति के नजदीक पर्यटकों को ला रही है। प्रदेश में वन, जंगल, वाटर फाल, पहाड़ी और हरे-भरे क्षेत्रों से भरपूर नदियां व प्राकृतिक क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए आवागमन हेतु वन नीति के अनुसार मार्ग बनाने, ठहरने व अन्य आवश्यक सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। ...

उपकार भूलने वाले होते हैं अहंकारी

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लघुकथा। गुलाब के फूल ऊपर की टहनी पर खिल रहे थे और सड़ा गोबर उसकी जड़ में सिर झुकाये पड़ा था। गुलाब अपने सौभाग्य से सड़े गोबर के दुर्भाग्य की तुलना करते हुए गर्व से बोला और व्यंग्य की हंसी हंस दी। माली उधर से निकला तो उससे यह सब देखा नहीं गया और गुलाब के कान से मुंह सटाकर कहा कि तुम्हें इस सुंदर स्थिति में पहुंचाने में इन पिछड़े समझे जाने वालों का कितना योगदान रहा है, जरा इसे भी समझने का प्रयास करो। अहंकार वही लोग करते हैं जो दूसरों का उपकार याद नहीं रखते।