दादू महाराज और कोतवाल

लघुकथा। एक बार की बात है, दादू महाराज से एक कोतवाल को मिलना था। रास्ते में एक आदमी मिला, जो सड़क के कांटे साफ कर रहा था, उससे पूछा, क्यों रे! दादू महाराज कहां रहते हैं! दादू जी ने इशारे से बता दिया कि सामने वाली झोपड़ी उन्हीं की है। रूखा जवाब सुनकर कोतवाल गुस्सा हुआ और गाली देते हुये झोपड़ी की ओर चल दिया। सिर पर कांटे का बोझ लादे दादू वहां पहुंचे, तो कोतवाल को गाली देने का दु:ख हुआ और दादू महाराज से क्षमा मांगी। दादू महाराज ने कहा कि इसमें आपका कोई दोष नहीं, दोष उस पूर्वाग्रह भरी आपकी मनुष्य सम्बन्धी मान्यता का है, जो आपके मुख से ऐसे वचन निकालती है। मनुष्य मात्र में आप ईश्वर को देखने लगेंगे, तो यह आदत स्वत: छूट जायेगी। बता दें कि वेदों में वर्णित है कि ऋषि कहते हैं कि परमेश्वर हमारे परम पिता हैं, उनसे जितना लगाव रखेंगे, जीवन उतना सुखी रहेगा। जिस तरह पिता अपने बच्चों को प्रसन्न देखकर आनंदित होता है, उसी तरह परमपिता परमेश्वर अपने बच्चों को हर्षित देखकर उल्लसित व प्रफुल्लित होते हैं। यानि, मनुष्य में देवत्व भाव है।