अपना सुधार यानि परिवार का सुधार

विचार : मगध का एक धनी व्यापारी गृहकलह से अत्यन्त दु:खी होकर बुद्ध बिहार में पहुंचा और भिक्षु समुदाय में उसे भर्ती कर लेने की प्रार्थना की। अधिकारी ने उससे गहरी पूंछतांछ की कि इस प्रकार की विरक्ति अचानक क्यों उठ खड़ी हुई। इससे पूर्व न तो आपका धर्मचक्र प्रवर्तन अभियान से कोई सम्पर्क था और न ही कभी किसी विहार में सत्संग के लिए आये। यहां ज्ञानी वृद्धों की ही दीक्षा दी जाती है, जबकि आपकी इस संस्था के नियम और उद्देश्य तक का ज्ञान नहीं है। व्यापारी का आग्रह कम न हुआ। उसने कहा कि अभी तक मुझे गृहजंजाल से निकालिये। परिवार के सभी सदस्य विद्रोही और व्यसनी हो रहे हैं। कोई किसी का न सम्मान करता है, न सहयोग देता है। आपाधापी मची हुई है और एक दूसरे के प्राणहरण पर उतारू हैं। इन परिस्थितियों में मुझसे तनिक भी ठहरते नहीं बन पड़ा है। यहां आने पर कुछ तो शांति मिलेगी। महाभिक्षु ने व्यापारी से उसका जीवन वृतांत पूछा। उसने अपनी समस्त गतिविधियां कह सुनाई। बताया कि विवाह होने से लेकर वह अब तक कुकर्म ही करता रहा, व्यसनों का आदी रहा, छल कपट से कमाया, जो कमाता उसे व्यसनों में उड़ा देता। सम्पर्क क्षेत्र का एक व्यक्त...