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अपना सुधार यानि परिवार का सुधार

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विचार : मगध का एक धनी व्यापारी गृहकलह से अत्यन्त दु:खी होकर बुद्ध बिहार में पहुंचा और भिक्षु समुदाय में उसे भर्ती कर लेने की प्रार्थना की। अधिकारी ने उससे गहरी पूंछतांछ की कि इस प्रकार की विरक्ति अचानक क्यों उठ खड़ी हुई। इससे पूर्व न तो आपका धर्मचक्र प्रवर्तन अभियान से कोई सम्पर्क था और न ही कभी किसी विहार में सत्संग के लिए आये। यहां ज्ञानी वृद्धों की ही दीक्षा दी जाती है, जबकि आपकी इस संस्था के नियम और उद्देश्य तक का ज्ञान नहीं है। व्यापारी का आग्रह कम न हुआ। उसने कहा कि अभी तक मुझे गृहजंजाल से निकालिये। परिवार के सभी सदस्य विद्रोही और व्यसनी हो रहे हैं। कोई किसी का न सम्मान करता है, न सहयोग देता है। आपाधापी मची हुई है और एक दूसरे के प्राणहरण पर उतारू हैं। इन परिस्थितियों में मुझसे तनिक भी ठहरते नहीं बन पड़ा है। यहां आने पर कुछ तो शांति मिलेगी। महाभिक्षु ने व्यापारी से उसका जीवन वृतांत पूछा। उसने अपनी समस्त गतिविधियां कह सुनाई। बताया कि विवाह होने से लेकर वह अब तक कुकर्म ही करता रहा, व्यसनों का आदी रहा, छल कपट से कमाया, जो कमाता उसे व्यसनों में उड़ा देता। सम्पर्क क्षेत्र का एक व्यक्त...

जीवन को भारभूत न बनायें

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विचार :  एक कहावत है कि निश्चिन्त मन, भरी थैली से अच्छी है। वस्तुत: चिन्ता वह अग्नि है जिसमें हंसते—खिलखिलाते जीवन झुलस जाते हैं और बुद्धि कुं​ठित हो जाती है। मनोचिकित्सकों ने आधुनिकतम खोजों के आधार पर मन तथा शरीर पर चिन्ता का दुष्प्रभाव को सिद्ध किया है। उनका कथन है कि चिन्ता एक ऐसी हथौड़ी है, जो मस्तिष्क के सूक्ष्म तंतु जाल को विघटन करके उसकी कार्यक्षमता को नष्ट कर देती है। जिस प्रकार एक ही स्थान पर निरन्तर पानी की बूंदें गिरते रहने से वहां गड्ढा हो जाता है उसी प्रकार मन में किसी बात की निरन्तर चिंता रहने से मस्तिष्क का स्नायु समूह घायल हो जाता है और उसकी कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। एक चिकित्सका का कथन है कि चिन्ता का शरीर पर वही प्रभाव पड़ता है जो एक बंदूक की गोली या तलवार के घाव का। अंतर केवल इतना ही है कि गोली तथा तलवार शीघ्र ही मार डालते हैं परन्तु यह पिशाचिनी धीरे—धीरे करके मारती है। वस्तुत: चिन्ता एक प्रकार का पागलपन ही है। अधिकांश व्यक्ति भूत और भविष्य की चिन्ता में स्वयं को घुला डालते हैं। परन्तु जो बीत गई उसके विषय में सोचना ही क्या। बीता सो बीत ही गया, उस पर पश्चाताप कर...

मुस्कुराहट का सौंदर्य

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विचार : सफल व्यक्ति का समर्थन किया जाता है और असफल को चिढ़ाया जाता है। इस दुनिया का यही कायदा है। सफलता इस बात का प्रमाण मानी जाती है कि व्यक्ति चतुर, क्रियाशील, बुद्धिमान एवं भाग्यवान है। ऐसे का हर कोई साथ देना चाहता है। इसके विपरीत जो पराजित असफल है उसे मूर्ख, अयोग्य एवं भाग्यहीन समझा जाने लगता है। उसकी आलोचना न सही उपेक्षा तो होती ही है। उसे कोई साथी नहीं बनाना चाहता। खिले हुए फूल पर तितली, भौंंरे, मधुमक्खी झुण्ड बनाकर बैठे रहते हैं, लेकिन फूल मुरझाकर झड़ जाता है तो उन प्रशंसकों में से कोई भी उसकी खोज खबर लेने नहीं आता है। आम पर फूल और फल लदने के मौसम में कोयल कूकती है किन्तु जब वह ऋतु चली जाती है तो कूकना भी बन्द हो जाता है। वर्षा में खर—पतवार भी लहलहाने लगते हैं लेकिन ग्रीष्म में हरे—भरे पत्ते भी झुलस जाते हैं। सफलता में सभी हिस्सेदार बनना चाहते हैं, पर असफलता का दौर जब भी आता है तो पल्ला झाड़कर वे भी अलग हो जाते हैं, जो कभी मित्रता का दावा करते थे। सम्पत्ति में भागीदार बनने के लिए कितने ही लालायित रहते हैं किन्तु विपत्ति में हर कोई पल्ला झाड़कर अलग हो जाता है। यह प्रचलन अवांछनीय...

558 साल बाद 3 अगस्‍त 2020 को बन रहा दुर्लभ संयोग

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गुरु व शनि अपनी ही राशि में होंगे वक्री   ज्योतिष : इस वर्ष यानि 2020 का रक्षाबंधन अत्‍यंत दुर्लभ संयोगों के बीच आ रहा है। इसका प्रभाव भी गहरा होगा। सबसे खास बात यह है कि 558 साल बाद श्रावण माह की पूर्णिमा पर गुरु और शनि अपनी राशि में वक्री रहेंगे। सोमवार 3 अगस्त को लेकर सावन माह की अंतिम तिथि पूर्णिमा है। इसी तिथि पर रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस बार विशेष योग रक्षाबंधन पर बन रहे हैं सुबह 9:30 बजे तक भद्रा रहेगी। भद्रा के बाद ही बहनों को अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधना चाहिए। 9.30 के बाद पूरे दिन राखी बांध सकते हैं। 3 तारीख को सुबह 9.30 बजे के बाद पूरे दिन श्रवण नक्षत्र रहेगा। पूर्णिमा पर पूजन के बाद अपने गुरु का आशीर्वाद भी अवश्य लें। रक्षाबन्धन पर गुरु अपनी राशि धनु में और शनि मकर में वक्री रहेगा। इस दिन चंद्र ग्रह भी शनि के साथ मकर राशि में रहेगा। ऐसा योग 558 साल पहले 1462 में बना था। उस साल में 22 जुलाई को रक्षाबंधन मनाया गया था। इस बार रक्षाबंधन पर राहु मिथुन राशि में, केतु धनु राशि में है। 1462 में भी राहु-केतु की यही स्थिति थी। साथ ही श्रावण सोमवार व पूर्णिमा एक ...

सही से हस्ताक्षर नहीं कर पातीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका

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लखनऊ : कांग्रेस के क्रियाकलाप व करतूत तो देश की अधिकतर जनता जानती ही है, बस कांग्रेस के बारे में वही लोग नहीं जानते जो जानना नहीं चाहते हैं, बस किसी तरह अपनी दुकान चलाना या पेट पालना चाहते हैं। कांग्रेस ने केंद्र सरकार को घेरने के लिए 'पप्पू' अरे राहुल गांधी को लगाया है तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से टक्कर लेने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा को लगाया है। कांग्रेस की नजर में दोनों, नेता राहुल गांधी व नेत्री प्रियंका गांधी सरकारों को खूब टक्कर देने का नाटक तो कर रहे हैं, लेकिन अपने ही ठोकर से हमेशा मुंह की ही खा रहे हैं, जिस दिन भाजपा वाले पलटवार करेंगे, न जाने उस दिन क्या होगा। बहरहाल मामला उत्तर प्रदेश से है जहां पर कांग्रेस की दिग्गज नेत्री प्रियंका वाड्रा ने जेल में बंद गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज के निलम्बित डॉक्टर कफील खान की रिहाई को लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी भेजी है, जिसमें उन्होंने अपना हस्ताक्षर गलत किया है।  यानि प्रियंका वाड्रा अपना हस्ताक्षर सही से नहीं कर पाती हैं और योगी को नसीहत देत...

हस्त नक्षत्र के दुर्लभ योग में मनेगी नागपंचमी

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ज्योतिष : प्रकृति के साथ नजदीकियों वाला त्यौहार है नागपंचमी। नागपंचमी का पर्व सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 25 जुलाई शनिवार को है। इस साल नागपंचमी की पर्व उत्तरा फाल्गुनी और हस्त नक्षत्र के प्रथम चरण के दुर्लभ योग में आ रहा है। इस योग में कालसर्प योग की शांति के लिए पूजन का विधान शास्त्रों में बतलाया गया है। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन परिगणित और शिव नामक योग होने से नाग पूजन के लिए यह अत्यंत शुभ दिवस है। नागपंचमी को मंगल वृश्चिक लग्न में होंगे और कल्कि भगवान की जयंती भी इसी दिन है। सनातन संस्कृति में नाग महादेव के गले का हार है तो भगवान विष्णु की वह शय्या है। इसलिए इस दिन नागपूजन करने से महादेव और श्रीहरी दोनों प्रसन्न होते हैं। नाग पंचमी के शुभ मुहूर्त पंचमी तिथि प्रारंभ - 24 जुलाई दोपहर 2 बजकर 33 मिनट पर पूजा का मुहूर्त - 25 जुलाई, सुबह 5 बजकर 38 मिनट से 8 बजकर 22 मिनट तक पूजा की अवधि - 2 घंटे 43 मिनट पंचमी तिथि का समापन - 25 जुलाई 12 बजकर 1 मिनट पर नाग पंचमी के मंत्र सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले। ये च हेलिमरीचिस्था य...

सावन महीने में दो बार पड़ रहा है शनि प्रदोष, शिव भक्तों को मिलेगा उत्तम परिणाम

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ज्योतिष : इस बार सावन महीने में शनि प्रदोष का संयोग दो बार होगा। शनि प्रदोष व्रत से सुख, सम्पत्ति, सौभाग्य, धन-धान्य की प्राप्ति होती है। उत्तम संतान सुख की कामना से नियमपूर्वक व्रत किया जाए तो इच्छा पूरी होती है। शनि पीड़ा की शांति के उद्देश्य से किया जाए तो शनि की शांति होती है। कुंडली में बुरे प्रभाव दे रहे शनि की शांति होती है। इस दिन पीपल के वृक्ष में सुबह मीठा दूध अर्पित करने और सायंकाल के समय सरसों के तेल का दीपक लगाने से शनि के दोष दूर होते हैं। शनि प्रदोष के दिन कौड़ियों, नेत्रहीन और भिखारियों को भोजन करवाने से शिव और शनि दोनों प्रसन्न होते हैं। इस दिन शिवजी का अभिषेक काले तिल मिश्रित दूध से करने से पितरों की शांति होती है। शनि प्रदोष के दिन चावल का दान करने से स्वर्ण और चांदी के भंडार भर जाते हैं। कालसर्प दोष की शांति के लिए शनि प्रदोष के दिन शिवजी की जलाधारी पर अष्टधातु का नाग लगवाने से मनवांछित फल मिलता है। शनि प्रदोष व्रत कथा : किसी समय एक नगर में एक धनी सेठ रहता था। कारोबार से लेकर व्यवहार तक में सेठ का आचरण अच्छा था। वह दयालु प्रवृति का था। धर्म-कर्म के कार्यों मे...