आजादी के बाद से हम कर्तव्यविमुख हो गये, सिर्फ अधिकारों के लिये लड़े : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

विचार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर' का शुभारम्भ किया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने मन को छू लेने वाला उद्बोधन दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भाषा में कहें तो श्रीमान नरेंद्र मोदी का बौद्धिक उत्तम रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक-एक बात गौर करने लायक है। उन्होंने कहा कि आज करोड़ों भारतवासी स्वर्णिम भारत की आधारशिला रख रहे हैं। हमारी प्रगति राष्ट्र की प्रगति में निहित है। राष्ट्र का अस्तित्व हम से है और राष्ट्र से ही हमारा अस्तित्व है। यह अहसास नए भारत के निर्माण में भारतीयों की सबसे बड़ी ताकत बन रहा है। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने ब्रह्म कुमारियों की सात पहलों को बटन दबाकर हरी झंडी दिखाई। इनमें मेरा भारत स्वस्थ भारत, आत्मानिर्भर भारत : आत्मनिर्भर किसान, 'महिलाएं : भारत की ध्वजवाहक', अनदेखा भारत साइकिल रैली, एकजुट भारत मोटर बाइक अभियान और स्वच्छ भारत अभियान के तहत हरित पहलें शामिल हैं। बता दें कि ब्रह्म कुमारी विश्वव्यापी आध्यात्मिक आंदोलन है। यह आंदोलन व्यक्तिगत परिवर्तन और विश्व नवीनीकरण को समर्पित है। भारत में इसकी स्थापना 1937 में हुई थी, यह आंदोलन 130 से अधिक देशों में फैला है। बता दें कि देश आजाद हुए 75 वर्ष हो गये, 75 वर्ष यानि प्लैटिनम जयंती। देश में इस समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, भाजपा एक राजनीतिक दल है। चूंकि अक्सर समाज में सुनने को मिलता है कि भाजपा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चलाता है, भाजपा में सब संघी भरे पड़े हैं, भाजपा संघ के अनुसार चलती है आदि-आदि न जाने कितनी बातें समाज में प्र​चलित हैं। लेकिन सही तो यह है कि संघ के स्वयंसेवक जहां-जहां यानि जिस भी क्षेत्र में हैं तो अव्वल हैं। चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या फिर हमारे लखनऊ के स्वयंसेवक शिवराज तिवारी वाहन चालक हों, सभी अपना-अपना काम बखूबी करते हैं। यानि जिसमें भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संस्कार गया है, वह निश्चित ही कम से कम अपना काम दुरुस्त रखेगा। यही आशय आज (20 जनवरी 2022) के उद्बोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का था, जिसमें उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम अपने कर्तव्य का बोध तो हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अमृत काल का यह समय सोते समय सपने देखने के लिए नहीं, अपितु जागकर संकल्पों को पूरा करने का है। आने वाले 25 साल कड़ी मेहनत, त्याग और तपस्या की पराकाष्ठा हैं। हमारे समाज ने सैकड़ों वर्षों की गुलामी में जो खोया है उसे वापस पाने के लिए यह 25 साल की अवधि है। अमृत काल का यह समय हमारे ज्ञान, शोध और इनोवेशन का समय है। हमें एक ऐसा भारत बनाना है जिसकी जड़ें प्रचीन परम्पराओं और विरासत से जुड़ी होगी और जिसका विस्तार आधुनिकता के आकाश में अनंत तक होगा। हम एक ऐसे भारत को उभरते देख रहे हैं, जिसकी सोच और अप्रोच नई है और जिसके निर्णय प्रगतिशील हैं। दुनिया जब अंधकार के गहरे दौर में थी, महिलाओं को लेकर पुरानी सोच में जकड़ी थी, तब भारत मातृशक्ति की पूजा, देवी के रूप में करता था। हमारे यहां गार्गी, मैत्रेयी, अनुसूया, अरुंधति और मदालसा जैसी विदुषियां समाज को ज्ञान देती थीं। कठिनाइयों से भरे मध्यकाल में भी इस देश में पन्नाधाय और मीराबाई जैसी महान नारियां हुईं। अमृत महोत्सव में देश जिस स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को याद कर रहा है, उसमें भी कितनी ही महिलाओं ने अपने बलिदान दिये हैं। कित्तूर की रानी चेनम्मा, मतंगिनी हाजरा, रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना झलकारी बाई से लेकर सामाजिक क्षेत्र में अहिल्याबाई होल्कर और सावित्रीबाई फुले तक, इन देवियों ने भारत की पहचान बनाए रखी। आज देश लाखों स्वाधीनता सेनानियों के साथ नारी शक्ति के योगदान को याद कर रहा है। लोकतंत्र में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। 2019 के चुनाव में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने मतदान किया। आज देश की सरकार में बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियां महिला मंत्री संभाल रही हैं। अब समाज इस बदलाव का नेतृत्व खुद कर रहा है। हमें अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता, अपने संस्कारों को जीवंत रखना है, अपनी आध्यात्मिकता को, अपनी विविधता को संरक्षित और संवर्धित करना है और साथ ही, टेक्नोलाजी, इन्फ्रास्ट्रक्चर, एजुकेशन, स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को निरंतर आधुनिक भी बनाना है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आजादी के बाद के 75 वर्षों में, हमारे समाज में, हमारे राष्ट्र में, एक बुराई सबके भीतर घर कर गई है। यह बुराई है, अपने कर्तव्यों से विमुख होना, अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि न रखना। बीते 75 वर्षों में हमने सिर्फ अधिकारों की बात की, अधिकारों के लिए झगड़े, जूझे, समय खपाते रहे। अधिकार की बात, कुछ हद तक, कुछ समय के लिए, किसी एक परिस्थिति में सही हो सकती है लेकिन अपने कर्तव्यों को पूरी तरह भूल जाना, इस बात ने भारत को कमजोर रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। देश ने अपना बहुत बड़ा समय इसलिए गंवाया, क्योंकि कर्तव्यों को प्राथमिकता नहीं दी गई।

75 वर्षों में कर्तव्यों को दूर रखने की वजह से जो खाई पैदा हुई, अधिकारों की ही बात करने की वजह से समाज में जो कमी आई है, उसकी भरपाई हम मिलकर कर्तव्य की साधना करके कर सकते हैं। हम सभी को, देश के हर नागरिक के हृदय में एक दीया जलाना है-कर्तव्य का दीया। हम सभी मिलकर, देश को कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ाएंगे, तो समाज में व्याप्त बुराइयां भी दूर होंगी और देश नई ऊंचाई पर भी पहुंचेगा। आप सभी इस बात के साक्षी रहे हैं कि भारत की छवि को धूमिल करने के लिए किस तरह अलग-अलग प्रयास चलते रहे, इसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत कुछ चलता रहता है। इससे हम यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि ये सिर्फ राजनीति है, यह राजनीति नहीं है, यह हमारे देश का सवाल है। 

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