सनातन धर्म में महिलाओं का अहम स्थान, सबसे पहले होती है आदिशक्ति की पूजा
लखनऊ : भारत में स्त्रियों का अहम स्थान है। स्त्रियों की महिमा व बखान से शास्त्र भरे पड़े हैं। भारतीय परम्परा में सबसे पहले आदिशक्ति की पूजा की जाती है। किसी भी शुभ कार्य, पूजन, हवन में सबसे पहला मंत्र - ऊं सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्र्यम्बके नारायणी नमस्तुते।। इसके अलावा पवित्र गायत्री मंत्र (ऊं भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वर्णेयं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्) भी आदिशक्ति को समर्पित है। सनातन धर्म में युवक-युवतियों के विवाह के समय दोनों के गुण मिलाये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जितनी ज्यादा संख्या से गुण मिलेंगे उतना ही दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा। शास्त्रों के अनुसार स्त्री व पुरुष के प्रत्येक अंग के आकार-प्रकार, त्वचा की प्रकृति और उन पर मौजूद चिन्हों के माध्यम से उसके स्वभाव के बारे में बताया जा सकता है। सामुद्रिक शास्त्र में स्त्रियों की कुल 11 प्रजातियां बताई गई हैं। ये 11 प्रजातियां उनके स्वभाव, व्यवहार और आकार-प्रकार के अनुसार वर्गीकृत की गई हैं।
- पद्मिनी स्त्री के नाक, कान तथा होंठ छोटे होते हैं। शंख के समान गर्दन और कमल के समान चेहरा होता है। ऐसी स्त्री सौभाग्यशाली, कम संतान उत्पन्न करने वाली और पतिव्रता होती है। ऐसी स्त्री सभी के प्रति दया और स्नेह रखने वाली होती है। हंस के समान चलने वाली तथा माता-पिता की सेवा करने वाली होती है। इसके शरीर से कमल के समान सुगंध निकलती रहती है।
- चित्रणी स्त्रियां पतिव्रता और सब पर स्नेह रखने वाली होती हैं। श्रृंगार में इनकी विशेष रुचि रहती है। ये ज्यादा परिश्रमी नहीं होती लेकिन बुद्धिमान होती हैं। इनका मस्तिष्क गोल तथा नेत्र चंचल होते हैं। इनकी चाल हाथी के समान, स्वर मोर के समान होता है। ऐसी स्त्रियां कोमल अंगों वाली तथा लज्जावान होती हैं।
- हस्तिनी स्त्रियां पुरुषों को जल्दी मोहित कर लेती है और इनमें भोग की इच्छा प्रबल होती है। इनका शरीर मोटा और थोड़ा आलस भरा हुआ होता है। इनमें लज्जा और धार्मिक भावनाएं कम होती हैं। इनकी कपोल, नासिका, कान और गर्दन मोटी होती है। क्रोध से भरी होती हैं ये महिलाएं। आंखे छोटी और पीली होती हैं तथा होंठ मोटे और लंबे होते हैं।
- शंखिनी की लंबाई अधिक होती है तथा चलते समय पृथ्वी पर आवाज आती है। ये अपने कूल्हे हिला हिलाकर चलती है। इनकी आंखें टेढी और शरीर बेडौल होता है। ये कई बार मादक पदार्थों का सेवन करने से परहेज नहीं करती। इनमें क्रोध की भावना अधिक होती है तथा प्रत्येक क्षण भोग की इच्छा बनी रहती है।
- सद्मिनी ऐसी स्त्रियां सरल स्वभाव की तथा डरपोक होती है। हंसमुख और शर्मीली होती हैं। इनकी आवाज कोमल होती है तथा प्रत्येक दृष्टि से पति को प्रसन्न करने की कला इन्हें बखूबी आती है।
- मेत्रायणि प्रकृति की स्त्रियां सुंदर, रूपवती, गौर वर्ण होती है लेकिन इन्हें पति दुष्ट और कमजोर मिलते हैं। इस कारण इनका गृहस्थ जीवन ज्यादा सुखी नहीं रहता। इनके रूप को देखकर दूसरे पुरुष अवश्य मोहित हो जाते हैं, लेकिन ये परपुरुष से दूर ही रहती है। द्वेष रखने वाली होती हैं ये महिलाएं
- कलहकारिणी स्त्री की भौहें हमेशा चढ़ी हुई रहती है। इनके दांत ऊंचे-नीचे होते हैं। रास्ते में चलते समय इनके पैरों से धूल उड़ती रहती है। यह द्वेष रखने वाली तथा धोखे से पति को मारने वाली होती हैं। यह परपुरुष से निडर होकर संबंध जोड़ लेती हैं।
- गृहस्थिनी स्त्रियां गृहस्थ जीवन के लिए आदर्श मानी जाती है। न तो यह अधिक बोलती है और न किसी को धोखा देती है। यह अपने सुकर्मों से मायके और ससुराल दोनों का नाम ऊंचा उठाती है। पुरुषों में इनकी कोई रुचि नहीं रहती और सिर्फ अपने पति को ही चाहती है।
- आतुरा स्त्रियां प्रत्येक कार्य को तुरत-फुरत करने में विश्वास रखती है। इनका रंग-रूप साधारण ही होता है और पति को बहुत प्रेम करती है। हालांकि कभी-कभी अधिक क्रोध भी आ जाता है। लज्जावान होती हैं ऐसी महिलाएं। अगर देखा जाए तो इस प्रकार की स्त्री को समझना मुश्किल होता है।
- भयातुरा स्त्री गौर वर्ण, नाजुक, लज्जावान होती है। जरा संकट आने पर डर जाती है। यह कभी अकेली नहीं रहती। सभी से प्रेम करती है, मधुर बोलने वाली तथा अपने धर्म को निभाने वाली होती है।
- डाकिनी स्त्री ऊपर से सभी के प्रति बहुत प्यार दिखाती है लेकिन अंदर से इसमें छल-कपट और शत्रुता भरी रहती है। यह हंसकर बात करने वाली तथा धोखा देने में माहिर होती है। इनसे प्रेम करना और सांप से प्रेम करना बराबर है। उपरोक्त 11 के अलावा स्त्रियों की अन्य प्रकृतियां भी सामुद्रिक शास्त्र में बताई गई हैं। इनमें हंसिनी, बहुवंशिनी, कुलच्छेदिनी, नारकी, स्वर्गिणी, कृपणी, घातिनी, प्रेमिणी, कृशतन्वी, मदमस्तिनी, शामिल हैं।
- पद्मिनी स्त्री के नाक, कान तथा होंठ छोटे होते हैं। शंख के समान गर्दन और कमल के समान चेहरा होता है। ऐसी स्त्री सौभाग्यशाली, कम संतान उत्पन्न करने वाली और पतिव्रता होती है। ऐसी स्त्री सभी के प्रति दया और स्नेह रखने वाली होती है। हंस के समान चलने वाली तथा माता-पिता की सेवा करने वाली होती है। इसके शरीर से कमल के समान सुगंध निकलती रहती है।
- चित्रणी स्त्रियां पतिव्रता और सब पर स्नेह रखने वाली होती हैं। श्रृंगार में इनकी विशेष रुचि रहती है। ये ज्यादा परिश्रमी नहीं होती लेकिन बुद्धिमान होती हैं। इनका मस्तिष्क गोल तथा नेत्र चंचल होते हैं। इनकी चाल हाथी के समान, स्वर मोर के समान होता है। ऐसी स्त्रियां कोमल अंगों वाली तथा लज्जावान होती हैं।
- हस्तिनी स्त्रियां पुरुषों को जल्दी मोहित कर लेती है और इनमें भोग की इच्छा प्रबल होती है। इनका शरीर मोटा और थोड़ा आलस भरा हुआ होता है। इनमें लज्जा और धार्मिक भावनाएं कम होती हैं। इनकी कपोल, नासिका, कान और गर्दन मोटी होती है। क्रोध से भरी होती हैं ये महिलाएं। आंखे छोटी और पीली होती हैं तथा होंठ मोटे और लंबे होते हैं।
- शंखिनी की लंबाई अधिक होती है तथा चलते समय पृथ्वी पर आवाज आती है। ये अपने कूल्हे हिला हिलाकर चलती है। इनकी आंखें टेढी और शरीर बेडौल होता है। ये कई बार मादक पदार्थों का सेवन करने से परहेज नहीं करती। इनमें क्रोध की भावना अधिक होती है तथा प्रत्येक क्षण भोग की इच्छा बनी रहती है।
- सद्मिनी ऐसी स्त्रियां सरल स्वभाव की तथा डरपोक होती है। हंसमुख और शर्मीली होती हैं। इनकी आवाज कोमल होती है तथा प्रत्येक दृष्टि से पति को प्रसन्न करने की कला इन्हें बखूबी आती है।
- मेत्रायणि प्रकृति की स्त्रियां सुंदर, रूपवती, गौर वर्ण होती है लेकिन इन्हें पति दुष्ट और कमजोर मिलते हैं। इस कारण इनका गृहस्थ जीवन ज्यादा सुखी नहीं रहता। इनके रूप को देखकर दूसरे पुरुष अवश्य मोहित हो जाते हैं, लेकिन ये परपुरुष से दूर ही रहती है। द्वेष रखने वाली होती हैं ये महिलाएं
- कलहकारिणी स्त्री की भौहें हमेशा चढ़ी हुई रहती है। इनके दांत ऊंचे-नीचे होते हैं। रास्ते में चलते समय इनके पैरों से धूल उड़ती रहती है। यह द्वेष रखने वाली तथा धोखे से पति को मारने वाली होती हैं। यह परपुरुष से निडर होकर संबंध जोड़ लेती हैं।
- गृहस्थिनी स्त्रियां गृहस्थ जीवन के लिए आदर्श मानी जाती है। न तो यह अधिक बोलती है और न किसी को धोखा देती है। यह अपने सुकर्मों से मायके और ससुराल दोनों का नाम ऊंचा उठाती है। पुरुषों में इनकी कोई रुचि नहीं रहती और सिर्फ अपने पति को ही चाहती है।
- आतुरा स्त्रियां प्रत्येक कार्य को तुरत-फुरत करने में विश्वास रखती है। इनका रंग-रूप साधारण ही होता है और पति को बहुत प्रेम करती है। हालांकि कभी-कभी अधिक क्रोध भी आ जाता है। लज्जावान होती हैं ऐसी महिलाएं। अगर देखा जाए तो इस प्रकार की स्त्री को समझना मुश्किल होता है।
- भयातुरा स्त्री गौर वर्ण, नाजुक, लज्जावान होती है। जरा संकट आने पर डर जाती है। यह कभी अकेली नहीं रहती। सभी से प्रेम करती है, मधुर बोलने वाली तथा अपने धर्म को निभाने वाली होती है।
- डाकिनी स्त्री ऊपर से सभी के प्रति बहुत प्यार दिखाती है लेकिन अंदर से इसमें छल-कपट और शत्रुता भरी रहती है। यह हंसकर बात करने वाली तथा धोखा देने में माहिर होती है। इनसे प्रेम करना और सांप से प्रेम करना बराबर है। उपरोक्त 11 के अलावा स्त्रियों की अन्य प्रकृतियां भी सामुद्रिक शास्त्र में बताई गई हैं। इनमें हंसिनी, बहुवंशिनी, कुलच्छेदिनी, नारकी, स्वर्गिणी, कृपणी, घातिनी, प्रेमिणी, कृशतन्वी, मदमस्तिनी, शामिल हैं।
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