चार मार्च को है महाशिवरात्रि : वर्षों बाद बन रहा है शुभ व दुर्लभ संयोग
लखनऊ : इस साल 4 मार्च को महाशिवरात्रि है। हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं। महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा।
ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं। महाशिवरात्रि पर्व में भूतभावन चंद्रमौलिश्वर भगवान शिव का अभिषेक-पूजन करना श्रेयस्कर माना गया है। इस दिन भक्तगण भगवान शिव का दुग्धाभिषेक, रसाभिषेक व जलाभिषेक कर पुण्य प्राप्त करते हैं। वर्ष 2019 संवत 2075 में शिवरात्रि के दिन सोमवार होने के साथ-साथ त्रयोदशी व चतुर्दशी का संयोग बन रहा है। कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को 'प्रदोष' होता है। 4 मार्च को उदयकालीन तिथि त्रयोदशी एवं रात्रिकालीन तिथि चतुर्दशी रहेगी। चूंकि 4 मार्च को त्रयोदशी तिथि प्रदोषकाल से पूर्व ही समाप्त हो रही है इसलिए 'प्रदोष व्रत' 3 मार्च को रहेगा किंतु उदयकालीन तिथि की मान्यता के अनुसार 4 मार्च को त्रयोदशी व चतुर्दशी तिथि का संयोग रहेगा जो अत्यंत शुभ है एवं वर्षों बाद ऐसा दुर्लभ संयोग बनता है। महाशिवरात्रि पर बन रहे इस शुभ व दुर्लभ संयोग में भगवान शिव का दुग्धाभिषेक, रसाभिषेक एवं जलाभिषेक करना पुण्यप्रद रहता है। जो व्यक्ति ऋण से ग्रस्त हैं उन्हें इस शुभ संयोग में शिवलिंग पर मसूर चढ़ाने से कर्ज से मुक्ति प्राप्त होने लगती है। जो व्यक्ति आर्थिक संकटों से पीड़ित हैं उन्हें इस शुभ संयोग में भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करना लाभप्रद रहेगा। भगवान शिव का रसाभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति मोक्ष के आकांक्षी है उन्हें महाशिवरात्रि पर बने इस शुभ संयोग में भगवान आशुतोष का गाय के दूध से दुग्धाभिषेक करना शुभदायक।
अभिषेक त्रिपाठी
दूरभाष : 8765587382
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