मंगल अभियान की आलोचना

मंगल अभियान की आलोचना

5 साल पहले भारत ने जब अपना चंद्रयान सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में भेजा था तब भी यह कहा गया था कि जिस देश में करोड़ों लोग गरीब हों उस देश द्वारा अंतरिक्ष में इस तरह की हरकत अय्याशी कही जाएगी। लेकिन आलोचक यह बात भूल रहे हैं कि यदि देश ने 1970 के दशक में आर्यभट्ïट उपग्रह छोडऩे की हिम्मत न जुटाई होती तो सूचना-संचार क्रांति की पहुंच से हम दूर होते।

देश की अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने मंगल पर जीवन का अस्तित्व ढूंढने के उद्ïदेश्य से 'मार्स ऑर्बिटर' अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित किया। यह प्रक्षेपण पांच नवम्बर को किया गया। उम्मीद है कि 300 दिनों की लम्बी यात्रा के बाद यह अगले साल सितम्बर महीने तक मंगल के केंद्र में पहुंच जाएगा। वह मंगल के आसमान में एक चांद बन कर उसकी परिक्रमा करने लगेगा और महीनों उस दुनिया में ताक-झांक करेगा। मंगल की खोज-खबर के लिये मानव जाति ने पिछले 40 सालों में 51 मिशन भेजे हैं। भारत का यह अभियान इस सिलसिले की 52वीं श्रिंखला है।
आज की तारीख में यूरोपीय स्पेस एजेंसी का एक और नासा के दो अंतरिक्षयान मंगल के आकाश में विचरते हुए खोजबीन कर रहे हैं। नासा के छह पहियों वाले दो रोवर, आपुरचुनिटी और क्यूरॉसिटी, मंगल की सतह पर वहां की मिट्टी, पत्थरों की रासायनिक जांच कर रहे हैं। अहम सवाल यह है कि हम मंगल पर क्या खोज रहे हैं? इसी सवाल पर देश के कई मीडिया, बुद्धिजीवियों, समालोचकों, जानकारों ने मंगल अभियान को प्राथमिक जरूरत न बताते हुए आलोचना की। इन आलोचनाओं में कहा गया कि ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि में मंगल जीवन दाता नहीं जीवन में संकट पैदा करने वाला ग्रह है। मंगल को भी सूर्य, शनि, राहु और केतु के समान पाप ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। क्योंकि इसकी प्रकृति उग्र है। यह युद्घ और अलगाव बढ़ाता है। यह भी कहा जा रहा है कि जब देश गरीबी और भुखमरी की स्थिति का सामना कर रहा है। ऐसे हाल में मंगल अभियान पर 450.500 करोड़ रुपए खर्च करने का क्या औचित्य है? सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर का मानना है कि जब भारत में रोजाना 23 करोड़ लोग रात में भूखे पेट सोते हैं, इनमें से अधिकांश के पास आवास, दवा, साफ पानी और सफाई व्यवस्था की बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। ऐसे में मंगल मिशन पर भारी राशि खर्च करना, गरीबों की मान-सम्मान की उपेक्षा करना है। इसरो के पूर्व प्रमुख माधवन नायर ने भी मंगल मिशन की आलोचना की है। इसी परिप्रेक्ष्य में चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स और अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक स्वर से कहा है कि जिस देश में हर साल हजारों लोग भूख और मलेरिया, डेंगू जैसी मामूली बीमारियों से मर रहे हों, उसे आला दर्जे के स्पेस क्लब में शामिल होने के नाम पर की गई इस फिजूलखर्ची से बचना चाहिए था।
लेकिन इतिहास गवाह है कि 1970 के दशक में अमेरिका का कोप झेल रहे भारत ने अगर आर्यभट्ïट उपग्रह छोडऩे की हिम्मत न जुटाई होती तो आज जिस सूचना-संचार क्रांति से हम गुजर रहे हैं, वह या तो हमारी पहुंच से दूर होती या अमेरिका की फरमाबरदारी के बाद ही हमें इसके करीब आने का मौका मिल पाता। इसी तरह मंगल की ओर किसी भारतीय अंतरिक्ष यान के उड़ान भरने से ही न केवल अंतरिक्ष बल्कि सामरिक दुनिया में भारत का कद काफी ऊंचा होगा। 5 साल पहले भारत ने जब अपना चंद्रयान सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में भेजा था तब भी यह कहा गया था कि जिस देश में करोड़ों लोग गरीब हों उस देश द्वारा अंतरिक्ष में इस तरह की हरकत अय्याशी कही जाएगी। अंतरिक्ष की दुनिया में भारत को अभी कई मुकाम हासिल करने हैं लेकिन मंगल की ओर अपना अंतरिक्ष यान भेज कर भारत ने जरूर एशिया की अंतरिक्ष ताकतों को इस बात के लिए प्रेरित किया है कि वह मंगल की दौड़ में पीछे नहीं है। अगर भारत का मंगल मिशन कामयाब होता है तो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। यह समय बताएगा कि भारत का मंगल अभियान सिर्फ  कॉलर खड़ा करने की कसरत नहीं है। आने वाले दिनों में डीप स्पेस कम्यूनिकेशन और एक्सप्लोरेशन के कुछ और ही मायने निकलेंगे और ऐसे अभियानों के बल पर ही भारत उनमें बराबर का भागीदार होगा। भूख, गरीबी और बीमारियों से हमारी लड़ाई जारी है और जारी रहेगी। जहां तक अंतरिक्ष मिशन की बात है तो मानवीय जीवन व ग्रहों की स्थिति समझने के लिए अंतरिक्ष विज्ञान का अध्ययन जरूरी है इसके लिए ज्ञान-विज्ञान  को भी एजेण्डे में प्रमुखता से शामिल किया जाये।

अभिषेक त्रिपाठी
8765587382

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