सरदार पटेल पर खींचतान
सरदार पटेल पर खींचतान
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल बर्फ से ढके एक ज्वालामुखी की तरह थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे, राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
31 अक्टूबर 2013, देश के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की 138वीं जयंती। इस दिन देश में कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, लेकिन इस वर्ष मामला सामने आया भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रस्तावित प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी व गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुप्रतीक्षित योजना 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' का। बताया जा रहा है कि यह दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति होगी। चूंकि देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल दूरदर्शी नेता व कांगे्रस पार्टी के सदस्य थे और उन्होंने कांगे्रस पार्टी के मूल सिद्धांतों से हटकर कई कार्य किये, जिनमें भारत की स्वतंत्रता में अहम योगदान, प्रथम उपप्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री पद का त्याग, स्वतंत्रता के बाद देश को स्वायत्त प्रान्तों में बंटने से बचाया, करीब 500 से ज्यादा देशी रियासतों का भारत में अहिंसापूर्ण विलय करवाया, जूनागढ़, त्रावणकोर और भोपाल के जटिल विलय में सफल, 1948 में हैदराबाद का पुलिस कार्रवाई करके विलय करवाया, पाकिस्तान के मंसूबे नाकाम कर लक्षद्वीप का भारत में विलय, नेहरू ने जम्मू-कश्मीर मसले पर पटेल की सलाह नहीं मानी जिससे कश्मीर समस्या उपजी, नेहरू के खिलाफ जाकर सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। पटेल की इन्हीं उपलब्धियों को भारतीय जनता पार्टी देशहित में देखती है और उन्हें देशप्रेमी नेता की उपाधि से नवाजती है और कांगे्रसी होते हुए भी सरदार पटेल को आदर्श नेता के रूप में देखती है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात में विश्व की सबसे ऊंची 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' का शिलान्यास किया है। अब सवाल उठ रहा है कि सरदार बल्लभ भाई पटेल किसकी राजनीतिक विरासत हैं, भाजपा या कांगे्रस के? अखिल भारतीय कांगे्रस पार्टी का मानना है कि सरदार पटेल कांगे्रस पार्टी के सदस्य थे इसलिए वह धर्मनिरपेक्ष थे। लेकिन उनका ऐसा कोई कार्य नहीं दिखायी पड़ता जिससे उनकी धर्मनिरपेक्षता सिद्ध होती हो। भारतीय जनता पार्टी जिस तरह सरदार पटेल के आदर्शों पर चलती है उससे कांगे्रसियों में चिढ़ हैं। दलील यह दी जाती है कि भाजपा के लोग पटेल का अनुसरण करते हैं और सरदार पटेल धर्मनिरपेक्ष थे जबकि भाजपा साम्प्रदायिक। इन्हीं उपर्युक्त बातों का भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' का अनावरण करते समय जवाब देते हुए कहा कि देश को ऐसे ही धर्मनिरपेक्ष नेता की जरूरत है जो राष्टहित में कार्य करे। सरदार बल्लभ भाई पटेल धर्मनिरपेक्ष थे या नहीं यह विवादित विषय है लेकिन वह जो भी फैसला लेते थे वह राष्टहित में ही रहता था। सर्वविदित है कि नेहरू-पटेल के विचार एक-दूसरे के विपरीत थे। आजादी के बाद देश की शासन सत्ता संभालने के लिए तत्कालीन कांगे्रस पार्टी के मुखिया महात्मा गांधी ने देश के प्रधानमंत्री के लिए सिर्फ दो व्यक्तियों का समर्थन किया एक थे जिन्ना और दूसरा जवाहर लाल नेहरु। जिन्ना तो गांधी के व्यक्तिगत पसंद थे पर जब नेहरु के प्रधानमंत्री बनने पर मतदान हुआ तो नेहरु के पक्ष में सिर्फ एक मत पड़े थे, परन्तु फिर भी गांधी ने नेहरु को ही प्रधानमंत्री बनाया। वह इसलिए कि यह बात उस समय प्रसिद्ध थी कि नेहरू जन्म से तो हिंदू पर विचार से विदेशी और कर्म से मुसलमान हैं।
गांधी के समर्थक कहते हैं कि नेहरु ने गांधी जी को धमकी दी थी की अगर उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो वे कांग्रेस को भंग कर देंगे और भारत की आजादी का स्वप्न साकार नहीं हो पायेगा। महात्मा गांधी भी सरदार पटेल के विचारों से सहमत नहीं थे और जम्मू कश्मीर पर नेहरु की असफलता पर बार-बार उनकी सहयोग की बात करने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल पर हमेशा पदत्याग का दबाव बनाते रहते थे। नेहरू-गांधी ने जो व्यवहार सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ किया वही आज के कांगे्रसी भी कर रहे हैं। कांगे्रस या यूपीए सरकार द्वारा चलायी गयी योजनाओं में से सिर्फ गांधी-नेहरू परिवार का नाम है बाकी कांगे्रसी नेताओं का जिक्र भी नहीं होता। देश में जितनी योजनाएं जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा व राजीव गांधी के नाम पर हैं उतना किसी नेता के नाम पर योजनाएं नहीं होंगी। आज भाजपा एक कांग्रेसी सदस्य (पटेल) के राष्टहित विचारों का अवलोकन कर रही है तो इसमें कैसी आलोचना और कैसी बुराई?
अभिषेक त्रिपाठी
8765587382
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल बर्फ से ढके एक ज्वालामुखी की तरह थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे, राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
31 अक्टूबर 2013, देश के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की 138वीं जयंती। इस दिन देश में कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, लेकिन इस वर्ष मामला सामने आया भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रस्तावित प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी व गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुप्रतीक्षित योजना 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' का। बताया जा रहा है कि यह दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति होगी। चूंकि देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल दूरदर्शी नेता व कांगे्रस पार्टी के सदस्य थे और उन्होंने कांगे्रस पार्टी के मूल सिद्धांतों से हटकर कई कार्य किये, जिनमें भारत की स्वतंत्रता में अहम योगदान, प्रथम उपप्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री पद का त्याग, स्वतंत्रता के बाद देश को स्वायत्त प्रान्तों में बंटने से बचाया, करीब 500 से ज्यादा देशी रियासतों का भारत में अहिंसापूर्ण विलय करवाया, जूनागढ़, त्रावणकोर और भोपाल के जटिल विलय में सफल, 1948 में हैदराबाद का पुलिस कार्रवाई करके विलय करवाया, पाकिस्तान के मंसूबे नाकाम कर लक्षद्वीप का भारत में विलय, नेहरू ने जम्मू-कश्मीर मसले पर पटेल की सलाह नहीं मानी जिससे कश्मीर समस्या उपजी, नेहरू के खिलाफ जाकर सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। पटेल की इन्हीं उपलब्धियों को भारतीय जनता पार्टी देशहित में देखती है और उन्हें देशप्रेमी नेता की उपाधि से नवाजती है और कांगे्रसी होते हुए भी सरदार पटेल को आदर्श नेता के रूप में देखती है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात में विश्व की सबसे ऊंची 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' का शिलान्यास किया है। अब सवाल उठ रहा है कि सरदार बल्लभ भाई पटेल किसकी राजनीतिक विरासत हैं, भाजपा या कांगे्रस के? अखिल भारतीय कांगे्रस पार्टी का मानना है कि सरदार पटेल कांगे्रस पार्टी के सदस्य थे इसलिए वह धर्मनिरपेक्ष थे। लेकिन उनका ऐसा कोई कार्य नहीं दिखायी पड़ता जिससे उनकी धर्मनिरपेक्षता सिद्ध होती हो। भारतीय जनता पार्टी जिस तरह सरदार पटेल के आदर्शों पर चलती है उससे कांगे्रसियों में चिढ़ हैं। दलील यह दी जाती है कि भाजपा के लोग पटेल का अनुसरण करते हैं और सरदार पटेल धर्मनिरपेक्ष थे जबकि भाजपा साम्प्रदायिक। इन्हीं उपर्युक्त बातों का भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' का अनावरण करते समय जवाब देते हुए कहा कि देश को ऐसे ही धर्मनिरपेक्ष नेता की जरूरत है जो राष्टहित में कार्य करे। सरदार बल्लभ भाई पटेल धर्मनिरपेक्ष थे या नहीं यह विवादित विषय है लेकिन वह जो भी फैसला लेते थे वह राष्टहित में ही रहता था। सर्वविदित है कि नेहरू-पटेल के विचार एक-दूसरे के विपरीत थे। आजादी के बाद देश की शासन सत्ता संभालने के लिए तत्कालीन कांगे्रस पार्टी के मुखिया महात्मा गांधी ने देश के प्रधानमंत्री के लिए सिर्फ दो व्यक्तियों का समर्थन किया एक थे जिन्ना और दूसरा जवाहर लाल नेहरु। जिन्ना तो गांधी के व्यक्तिगत पसंद थे पर जब नेहरु के प्रधानमंत्री बनने पर मतदान हुआ तो नेहरु के पक्ष में सिर्फ एक मत पड़े थे, परन्तु फिर भी गांधी ने नेहरु को ही प्रधानमंत्री बनाया। वह इसलिए कि यह बात उस समय प्रसिद्ध थी कि नेहरू जन्म से तो हिंदू पर विचार से विदेशी और कर्म से मुसलमान हैं।
गांधी के समर्थक कहते हैं कि नेहरु ने गांधी जी को धमकी दी थी की अगर उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो वे कांग्रेस को भंग कर देंगे और भारत की आजादी का स्वप्न साकार नहीं हो पायेगा। महात्मा गांधी भी सरदार पटेल के विचारों से सहमत नहीं थे और जम्मू कश्मीर पर नेहरु की असफलता पर बार-बार उनकी सहयोग की बात करने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल पर हमेशा पदत्याग का दबाव बनाते रहते थे। नेहरू-गांधी ने जो व्यवहार सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ किया वही आज के कांगे्रसी भी कर रहे हैं। कांगे्रस या यूपीए सरकार द्वारा चलायी गयी योजनाओं में से सिर्फ गांधी-नेहरू परिवार का नाम है बाकी कांगे्रसी नेताओं का जिक्र भी नहीं होता। देश में जितनी योजनाएं जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा व राजीव गांधी के नाम पर हैं उतना किसी नेता के नाम पर योजनाएं नहीं होंगी। आज भाजपा एक कांग्रेसी सदस्य (पटेल) के राष्टहित विचारों का अवलोकन कर रही है तो इसमें कैसी आलोचना और कैसी बुराई?
अभिषेक त्रिपाठी
8765587382
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